Tuesday 23 August 2016

मूलनिवासी

⛅ *बहुत सुँदर पंक्तियाँ* ☺👌
👉पशु को गोद खिलाने वाले,
मुझको छूने से बचते थे।
मेरी छाया पड जाने पर,
'गोमूत्र का छीँटा' लेते थे।।
👉पथ पर पदचिन्ह न शेष रहेँ
झाडू बाँध निकलना होता।
धरती पर थूक न गिर जाये,
हाथ सकोरा रखना होता।।
👉जान हथेली पर रखकर,
मैँ गहरे कुआँ खोदता था।
चाहे प्यासा ही मर जाऊँ,
कूपजगत ना चढ सकता था
👉मलमूत्र इकट्ठा करके मैँ,
सिर पर ढोकर ले जाता था।
फिकी हुई बासी रोटी,
बदले मेँ उसके पाता था।।
👉मन्दिर मैँ खूब बनाता था,
जा सकता चौखट पार नहीँ।
मूरत गढता मैँ ठोक-ठोक,
था पूजा का अधिकार नहीँ।
👉अनचाहे भी यदि वेदपाठ,
कहीँ कान मेरे सुन लेते थे।
तो मुझे पकडकर कानोँ मेँ,
पिघला सीसा भर देते थे।।
👉गर वेद शब्द निकला मुख से
तो जीभ कटानी पड जाती।
वेद मंत्र यदि याद किया,
तो जान गँवानी पड जाती।।
👉था बेशक मेरा मनुजरूप,
जीवन बदतर था पशुओँ से।
खा ठोकर होकर अपमानित,
मन को धोता था अँसुओँ से।
👉फुले पैरियार ललई साहू,
ने मुझे झिँझोड जगाया था।
संविधान के निर्माता ने,
इक मार्ग नया दिखाया था।।
👉उसी मार्ग पर मजबूती से,
आगे को कदम बढाया है।
होकर के शिक्षित और सजग,
खोया निज गौरव पाया है।।
👉स्वाभिमान जग जाने से,
स्थिति बदलती जाती है।
मंजिल जो दूर दीखती थी,
लगरहा निकट अब आती है।
👉दर से जो दूर भगाते थे,
दर आकर वोट माँगते हैँ।
छाया से परे भागते थे,
वो मेरे चरण लागते हैँ।।
👉वो मुझसे पढने आते हैँ,
जो मुझे न पढने देते थे।
अब पानी लेकर रहैँ खडे,
तब कुआँ न चढने देते थे।।
👉"बाबा" तेरे उपकारोँ को,
मैँ कभी भुला ना पाऊँगा।
"भीम" जो राह दिखायी है,
उस पर ही बढता जाऊँगा।।
⛅ *बहुत सुँदर पंक्तियाँ* ☺👌
👉पशु को गोद खिलाने वाले,
मुझको छूने से बचते थे।
मेरी छाया पड जाने पर,
'गोमूत्र का छीँटा' लेते थे।।
👉पथ पर पदचिन्ह न शेष रहेँ
झाडू बाँध निकलना होता।
धरती पर थूक न गिर जाये,
हाथ सकोरा रखना होता।।
👉जान हथेली पर रखकर,
मैँ गहरे कुआँ खोदता था।
चाहे प्यासा ही मर जाऊँ,
कूपजगत ना चढ सकता था
👉मलमूत्र इकट्ठा करके मैँ,
सिर पर ढोकर ले जाता था।
फिकी हुई बासी रोटी,
बदले मेँ उसके पाता था।।
👉मन्दिर मैँ खूब बनाता था,
जा सकता चौखट पार नहीँ।
मूरत गढता मैँ ठोक-ठोक,
था पूजा का अधिकार नहीँ।
👉अनचाहे भी यदि वेदपाठ,
कहीँ कान मेरे सुन लेते थे।
तो मुझे पकडकर कानोँ मेँ,
पिघला सीसा भर देते थे।।
👉गर वेद शब्द निकला मुख से
तो जीभ कटानी पड जाती।
वेद मंत्र यदि याद किया,
तो जान गँवानी पड जाती।।
👉था बेशक मेरा मनुजरूप,
जीवन बदतर था पशुओँ से।
खा ठोकर होकर अपमानित,
मन को धोता था अँसुओँ से।
👉फुले पैरियार ललई साहू,
ने मुझे झिँझोड जगाया था।
संविधान के निर्माता ने,
इक मार्ग नया दिखाया था।।
👉उसी मार्ग पर मजबूती से,
आगे को कदम बढाया है।
होकर के शिक्षित और सजग,
खोया निज गौरव पाया है।।
👉स्वाभिमान जग जाने से,
स्थिति बदलती जाती है।
मंजिल जो दूर दीखती थी,
लगरहा निकट अब आती है।
👉दर से जो दूर भगाते थे,
दर आकर वोट माँगते हैँ।
छाया से परे भागते थे,
वो मेरे चरण लागते हैँ।।
👉वो मुझसे पढने आते हैँ,
जो मुझे न पढने देते थे।
अब पानी लेकर रहैँ खडे,
तब कुआँ न चढने देते थे।।
👉"बाबा" तेरे उपकारोँ को,
मैँ कभी भुला ना पाऊँगा।
"भीम" जो राह दिखायी है,
उस पर ही बढता जाऊँगा।।

आंदोलन

आधुनिक भारत में  आजादी के दो आंदोलन

📚📚📚📚📚📚📚📚🤔
आधुनिक भारत में काँग्रेस (ब्राह्मणों के संगठन ) के माध्यम से अंग्रेजों कि  गुलामी से आजादी पाने का गोखले, तिलक  , गांधी , नेहरू के माध्यम से एक आंदोलन चला।
दुसरा ब्राह्मणों की गुलामी से आजादी पाने का आंदोलन 1848 से 1956 तक चलाया गया। यह आंदोलन ज्योतिराव जी फुले (OBC), शाहुजीमहाराज (OBC) बाबा साहब आंबेडकर इनके दवारा बहुजन मूलनिवासियों कि आजादी के लिए चलाया गया।
काँग्रेस ने चलाए आजादी के आंदोलन गोखले, तिलक, गांधी, नेहरू के साथ फूले, शाहू, आंबेडकरने नही चलाया बल्कि उनका अलग आजादी याने की गोखले, टिलक, गांधी, नेहरू के गुलामी से मुक्त होने का आंदोलन चलाया । यानि कि  भारत मेँ आजादी के दो आंदोलन चले। याने  ज्योति राव फुले जी शाहूजी महाराज , बाबा साहब आंबेडकर काँग्रेस मेँ शामिल नही हुए।
क्योंकि यह ब्राह्मणों का
ब्राह्मणों कि आजादी के लिए बनाया गया संगठन था
उससे  विदेशी ब्राह्मण आजाद हुए और मुलनिवासी बहुजन विदेशी ब्राह्मणों  के गुलाम हो गये।
यानि

आजादी का आंदोलन मुलनिवासी बहुजनों कि आजादी का आंदोलन नही था,
 बल्कि विदेशी ब्राह्मणों के आजादी का आंदोलन था।
हमें  पाठ्यक्रम में एक ही आजादी का आंदोलन पढाया जाता है जो काँग्रेस(ब्राह्मणों का संगठन ) के माध्यम से गोखले, तिलक , गांधी, नेहरूद्वारा चलाया जाता है।
 तो दुसरा आन्दोलन  ज्योतिराव फूले, शाहुजी ,बाबा साहब  आंबेडकर इनके द्वारा ब्राम्हणोँ के गुलामी से चलाया गया आजादी का आंदोलन पढाया नही जाता। अगर भारत मेँ आजादी के दो आंदोलन चले तो लोग विचार करेंगे की भारत में दो आंदोलन क्यों चले?
 इस पर मुलनिवासी विचार विमर्श करेगें उनके साथ की जा रही धोखेबाजी  का भांडोफोड हो जाएगा इसलिए  आजादी दुसरा आंदोलन पढाया नही जाता।
 इसलिए बहुजन मूलनिवासियों की समस्या जैसे की जैसी है।
मूलनिवासी बहुजन बुध्दिजीवी वर्ग इस आंदोलन को समझने की कोशिश करेगें  इसके ऊपर विचार विमर्श करेंगे।
बहुजन महापुरुषों का अधुरा कार्य पुरा करने का कार्य बामसेफ भारत मुक्ति मोर्चा कर रहा है आप इसमे शामिल हो जाओ। —
        15 August मूलनिवासियों की आजादी का दिन नही है , बल्कि ब्राह्मणो की आजादी का दिन है , भारत का मुलनीवासी आज भी गुलाम है ।

1848 में , ज्योतिराव फुले जीे ने मूलनिवासियों  कि आजादी का आंदोलन शुरू  किया था ,
तब गांधी पैदा भी नहीं हुए  थे ।

ज्योतिराव फुले जी नें 1848 में  मूलनिवासियों कि आजादी का आंदोलन शुरू  किया था , उसके 21 साल बाद गांधी पैदा हुए थे 1869 में ।

इसका मतलब है कि , अंग्रेज़ों से आजादी का आंदोलन मूलनिवासियों  की आजादी का आंदोलन नही था ,
मूलनिवासियों  कि आजादी का आंदोलन तो ज्योतिराव फुल जीे नें  1848 में ही शुरू  कर दिया था ।
ऐक बात सोचो कि जब  अंग्रेज  भारत में आये ही नहीं थे , मुगल भारत में आये ही नहीं थे , तब भारत किसका गुलाम था , .?
तब हम किसके गुलाम थे
तब हमारे पर अत्याचार शोषण कौन कर रहा था ।
यह बात हमारे लोगों को सोचनी चाहिए ,
अंग्रेज  भारत छोडकर चले गये . इस बात को आजादी मानकर चलना यही गलत बात है ,क्योंकि ज्योतिराव फुले , शाहुजी महाराज ,ओर
 बाबासाहेब आंबेडकर जी  यह मानते थे कि अंग्रजों  ने हमको गुलाम नहीं बनाया हमको गुलाम ब्राह्मणों  ने बनाया है ।
अंग्रेजों कि गुलामी केवल राजनितिक थी ।
परन्तु ब्राह्मणों कि गुलामी
सामाजिक
राजनितिक
शैक्षणिक
आर्थिक एंव
शोषण व अमानवीय अत्याचार से भरी पडी है ।

इसलिए अग्रेजो से आजादी का आंदोलन , ब्राह्मणो का हो सकता है , हम मूलनिवासियों  का नहीं , क्योंकि  अंग्रेजों के   भारत में आने से पहले से ही हम गुलाम थे ।

ज्योतिराव फुले ने कहा था कि अंग्रेज  भारत में है तब तक हमें अवसर है , अपनी आजादी हासिल करने का अग्रेज भारत से चल चले जायेंगें ओर ब्राह्मण भारत का शासक  बन गया तो तुम्हारे पास जो अवसर है , वह भी नही रहेगा


इसलिए बाबा साहब नें कहा था गुलाम भारत में जिसकी बातें भी सहन नहीं होती है
आजाद भारत में उनकी लातें खानी पडेगी ।

इसलिए साथियों 15 अगस्त मूलनिवासियों  की आजादी का दिन नही है , भारत के मुलनीवासी आज भी गुलाम ही है ।
अगर आजादी का आन्दोलन हमारा आन्दोलन था
तो सारी समस्याएँ हमारे समाज कि ही  क्यों हैं
सारे अत्याचार शोषण जो आजादी से पहले थे
वो जस के तस क्यों हैं
3.5% ब्राह्मणों के 367 सांसद क्यों हें
3.5% ब्राह्मणों के ही लगभग 90% केबीनेट मंञी क्यों हैं
3.5% ब्राह्मणों के ही
देश में हाईकोर्ट और सुप्रिम कोर्ट में कुल जजों में से 98% क्यों है
3.5% ब्राह्मणों के ही देश में 79% IAS क्यों है
100% मिडिया ब्राह्मण बानियों का है
परन्तु हमारे पञकार
टिवी एंकर कितने हैं बाबा साहब का सबसे अधिक विरोध कांग्रेस नें किया था ।क्यों किया था
क्या बाबा साहब
इतने विद्वान थे वो आजादी के आन्दोलन में शामिल नहीं थे तो वो किसकी लड़ाई लड रहे थे
बाबा साहब नें क्यों कहा था मेरा अधुरा आन्दोलन  पुरा करो
तो हमें कौनसा आन्दोलन बता कर गयें हैं
जब हम आजाद हो गये थे तो बाबा साहब क्यों कह कर गये थे
विचार करो
बाबा साहब
शिक्षा के बाद
ऐसा क्यों कहा संगठित हो
क्यों संगठित हो
किसके खिलाफ संगठित हो
फिर कहा संघर्ष करो
जब हम आजाद हैं
तो किसके खिलाफ संगठित हो और किससे संघर्ष करो
जागो
🙏🌷जय मूलनिवासी

शुभ प्रभात

जय मूलनिवासी साथियो शुभ प्रभात।

मूलनिवासी

मूलनिवासी भारत ब्लॉग पर आये हुए सभी मूलनिवासी साथियो का मै धन्यवाद करता हु। और आज बहुत दिनों के बाद मेरी इंटरनेट पर पेज बनाने की इच्छा पूरी हुई है। अतः आज मै बहुत अधिक नहीं लिख रहा हु लेकिन वादा है की में निरंतर मूलनिवासी समाज की जागरूकता के विषय पर लिखता रहूँगा जिससे की मूलनिवासी समाज में नई क्रांति का संचार होगा।

धन्यवाद

मूलनिवासी इतिहास

sir Manohar barkade ji ki wall se मूलनिवासी इतिहास *ये है भारत का असली इतिहासl बाकि सब झूठ हैl* इस पोस्ट के अन्दर दबे हुए इतिहास के प...