Tuesday 2 January 2018

कोरेगांव की महार क्रांति

*शौर्य दिन की हार्दिक शुभकामनाएं*
*(1जनवरी 1818)*

संसार के इतिहास में पहली बार

*हमारे पुरखों द्वारा एक ऐसा घमासान युद्ध लड़ा गया, जिसमेेें बाप और बेटा एक साथ जंग लड़े और जंग जीती है।*

और अन्यायकारी - आतंकी पेशवाई का खत्म कर दिया

*🎯 कोरेगांव का परिचय:*

कोरेगांव महाराष्ट्र प्रदेश के अन्तर्गत......

*पूना जनपद की शिरूर तहसील में पूना नगर रोड़ पर भीमा नदी के किनारे बसा हुआ एक छोटा सा गांव है, इस गांव को नदी के किनारे बसा होने के कारण ही इसको भीमाकोरे गांव कहते हैं।*

इस गांव से गुजरने वाली नदी को भीमा नदी कहते हैं। इस गांव की पूना शहर से दूरी 16 मील है।

*🎯पेशवाई शासकों का अमानवीय अत्याचार:*

इनके शासन में अछूतों पर अमानवीय अत्यारों की बाढ थी।

_1: "पेशवाओं ( ब्राह्मणों) के शासन काल में यदि कोई सवर्ण हिन्दू सड़क पर चल रहा हो तो वहां अछूत को चलने की आज्ञा नहीं होती थी ताकि उसकी छाया से वह हिन्दू भ्रष्ट न हो जाय। अछूत को अपनी कलाई या गले में निशान के तौर पर एक काला डोरा बांधना पडंता था। ताकि हिन्दू भूल से स्पर्श न कर बैठे।"_

_2: "पेशवाओं की राजधानी पूना में अछूतों के लिए राजाज्ञा थी कि वे कमर में झाडू बांधकर चलें।चलने से भूमि पर उसके पैरों के जो चिन्ह बनें उनको उस झाडू से मिटाते जायें, ताकि कोई हिन्दू उन पद चिन्हों पर पैर रखने से अपवित्र न हो जाय। पूना में अछूतों को गले में मिट्टी की हाड़ी लटका कर चलना पड़ता था ताकि उसको थूकना हो तो उसमें थूके। क्योंकि भूमि पर थूकने से यदि उसके थूक से किसी हिन्दू का पांव पड़ गया तो वह अपवित्र हो जायेगा।"_

*पेशवाओं के घोर अत्याचारों के कारण महारों में अन्दर ही अन्दर असन्तोष व्याप्त था। वे पेशवाओं से इन जुल्मों का बदला लेने के लिए मौके की तलाश में थे।*

और

*जब महारों का स्वाभिमान जागा,तब पूना के आस-पास के महार लोग पूना आकर अंग्रेजों की सेना में भर्ती हुए।*

इसी का प्रतिफल कोरेगांव की लडाई का गौरवशाली इतिहास है।

*🎯कोरेगांव की लडा़ई का गौरवशाली इतिहास:*

अंग्रेजों की बम्बई नेटिव इंफैंट्री (महारों की पैदल फौज) फौज अपनी योजना के अनुसार 31दिसम्बर 1817 ई. की रात को कैप्टन स्टाटन शिरूर गांव से पूना के लिए अपनी फौज के साथ निकला।

*उस समय उनकी फौज "सेकेंड बटालियन फसर्ट रेजीमेंट" में मात्र 500 महार थे। 260 घुड़सवार और 25 तोप चालक थे। उन दिनों भयंकर सर्दियों के दिन थे।*

यह फौज 31दिसम्बर 1817 ई.की रात में 25 मील पैदल चलकर दूसरे दिन प्रात: 8 बजे कोरेगांव भीमा नदी के एक किनारे जा पहुंची।

*1जनवरी सन 1818 ई.को बम्बई की नेटिव इंफैन्टरी फौज( पैदल सेना) अंग्रेज कैप्टन स्टाटन के नेत्रत्व में नदी के एक तरफ थी।*

दूसरी तरफ

*बाजीराव की विशाल फौज दो सेनापतियों रावबाजी और बापू गोखले के नेत्रत्व लगभग 28 हजार सैनिकों के साथ जिसमें दो हजार अरब सैनिक भी थे,सभी नदी के दूसरे किनारे पार काफी दूर-दूर तक फैले हुए थे।"1जनवरी सन 1818को प्रात:9.30 बजे युद्ध शुरू हुआ।*

भूखे-थके महार अपने सम्मान के लिए बिजली की गति से लड़े।

अपनी वीरता और बुद्धि बल से 'करो या मरो' का संकल्प के साथ समय-समय पर ब्यूह रचना बदल कर बड़ी कड़ाई के साथ उन्होंने पेशवा सेना का मुकाबला किया।युद्ध चल रहा था।

*कैप्टन स्टाटन ने पेशवाओं की विशाल सेना को देखते हुएअपनी सेना को पीछे हटने के लिए याचना की। महार सेना ने अपने कैप्टन के आदेश की कठोर शब्दों में भर्तसना करते हुए कहा हमारी सेना पेशवाओं से लड़कर ही मरेगी किन्तु उनके सामने आत्म समर्पण नहीं करेगी, न ही पीछे हटेगी,हम पेशवाओं को पराजित किए बिना नहीं हटेंगे। मर जायेंगे।यह महारों का आपसे वादा है।"*

महार सेना अल्पतम में होते हुए भी पेशवा सेनिकों पर टूट पड़े, तबाई मच गयी।लड़ाई निर्णायक मोड पर थी। पेशवा सेना एक-एक कदम पीछे हट रही थी।

*लगभग सांय 6 बजे महार सैनिक नदी के दूसरे किनारे पेशवाओं को खदेड़ते-खदेड़ते पहुंच गये और पेशवा फौज लगभग 9 बजे मैदान छोड़कर भागने लगी। इस लड़ाई में मुख्य सेनापति रावबाजी भी मैदान छोड़ कर भाग गया परन्तु दूसरा सेनापति बापू गोखले को भी मैदान छोड़कर भागते हुए को महारों ने पकड़ कर मार गिराया।*

इस प्रकार लड़ाई एक दिन और उसी रात लगभग 9.30 बजे लगातार 12 घंटे तक लड़ी गयी जिसमें महारों ने अपनी शूरता और वीरता का परिचय देकर विजय हांसिल की।

*महारों की इस विजय ने इतिहास में जुल्म करने वाले पेशवाओं के पेशवाई शासन का हमेशा के लिए खात्मा कर दिया।*

भारतीय इतिहास की यह घटना मूलनिवासियों के लिए एक अनूठी मिशाल बनकर हमेशा ऊर्जा प्रदान करती रहेगी।

*🎯कोरेगांव का क्रान्ति स्तम्भ:*

कोरेगांव के मैदान में.....

*जिन महार सैनिकों ने वीरता से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त किया। उनकी याद में अंग्रेजों ने उनके सम्मान में सन 1822 ई.में कोरेगांव में भीमा नदी के किनारे काले पत्थरों का क्रान्ति स्तम्भ का निर्माण किया। सन 1822 ई. में बना यह स्तम्भ आज भी महारों की वीरता की गौरव गाथा गा रहा है।*

महारों की वीरता के प्रतीक के रूप में अंग्रेजों ने जो विजय स्तम्भ बनवाया है, वहां उन्होंने महारों की वीरता के सम्बन्ध में अंग्रेजों ने स्तुति युक्त वाक्य लिखा-

*"One of the proudest traimphs of the British Army in the east "ब्रिटिश सेना को पूरब के देशों में जो कई प्रकार की जीत हांसिल हुई उनमें यह अदभुत जीत है।*

इस स्तम्भ को हर साल 1 जनवरी को देश की सेना अभिवादन करने जाती थी। इसे सर्व प्रथम "महार स्तम्भ" के नाम से सम्बोधित किया जाता था। बाद में इसे विजय या फिर "जय स्तम्भ" के नाम से जाना गया।

*आज इसे क्रान्ति स्तम्भ के नाम से पुकारा जाता है, जो सही दृष्टि में ऐतिहासिक क्रान्ति स्तम्भ है। यह स्तम्भ 25 गज लम्बे 6गज चौडे और 6गज ऊंचे एक प्लेट फार्म पर स्थापित 30 गज ऊंचा है तथा जैसे-जैसे ऊपर जायेगा ,उसकी चौड़ाई कम होती जायेगी। जिसको सुरक्षा की दृष्टि से लोहे की ग्रिल से कवर किया गया है।*

इस लड़ाई में पेशवाओं की हार हुई और महार सैनिकों के दमखम की वजय से अंग्रेज विजयी हुए।

*कोरे गांव के युद्ध में 20 महार सैनिक और 5 अफसर शहीद हुए। शहीद हुए महारों के नाम, उनके सम्मान में बनाये गये स्मारक(स्तम्मभ) पर अंकित हैं। जो इस प्रकार हैं-*

1:गोपनाक मोठेनाक
2:शमनाक येशनाक
3:भागनाक हरनाक
4:अबनाक काननाक
5:गननाक बालनाक
6:बालनाक घोंड़नाक
7:रूपनाक लखनाक
8:बीटनाक रामनाक
9:बटिनाक धाननाक
10:राजनाक गणनाक
11:बापनाक हबनाक
12:रेनाक जाननाक
13:सजनाक यसनाक
14:गणनाक धरमनाक
15:देवनाक अनाक
16:गोपालनाक बालनाक
17:हरनाक हरिनाक
18जेठनाक दीनाक
19:गननाक लखनाक

इस लड़ाई में महारों का नेत्रत्व करने वालों के नाम निम्न थे-

रतननाक
जाननाक
और भकनाक आदि

इनके नामों के आगे सूबेदार, जमादार, हवलदार और तोपखाना आदि उनके पदों का नाम लिखा है।

इस संग्राम में जख्मी हुए योद्धाओं के नाम निम्न प्रकार हैं-
1:जाननाक
2:हरिनाक
3:भीकनाक
4:रतननाक
5:धननाक

आज भी महार रेजीमेंट के सैनिकों बैरी कैप पर कोरेगांव की लड़ाई की याद में बनाए इस स्तम्भ की निशानी को अंकित किया गया है।

*बाबासाहेब डा. आम्बेडकर हर साल 1जनवरी को अपने शहीद हुए पूर्वजों को श्रद्धार्पण करने कोरेगांव जाते थे।*

आज इस पवित्र स्मारक पर लाखों की संख्या में लोग अपने पुरखों को श्रद्धा सुमन अर्पित करने आते हैं।

सन्दर्भ: कोरेगांवकी महार क्रान्ति.

कोरेगांव की महार क्रांति

*शौर्य दिन की हार्दिक शुभकामनाएं*
*(1जनवरी 1818)*

संसार के इतिहास में पहली बार

*हमारे पुरखों द्वारा एक ऐसा घमासान युद्ध लड़ा गया, जिसमेेें बाप और बेटा एक साथ जंग लड़े और जंग जीती है।*

और अन्यायकारी - आतंकी पेशवाई का खत्म कर दिया

*🎯 कोरेगांव का परिचय:*

कोरेगांव महाराष्ट्र प्रदेश के अन्तर्गत......

*पूना जनपद की शिरूर तहसील में पूना नगर रोड़ पर भीमा नदी के किनारे बसा हुआ एक छोटा सा गांव है, इस गांव को नदी के किनारे बसा होने के कारण ही इसको भीमाकोरे गांव कहते हैं।*

इस गांव से गुजरने वाली नदी को भीमा नदी कहते हैं। इस गांव की पूना शहर से दूरी 16 मील है।

*🎯पेशवाई शासकों का अमानवीय अत्याचार:*

इनके शासन में अछूतों पर अमानवीय अत्यारों की बाढ थी।

_1: "पेशवाओं ( ब्राह्मणों) के शासन काल में यदि कोई सवर्ण हिन्दू सड़क पर चल रहा हो तो वहां अछूत को चलने की आज्ञा नहीं होती थी ताकि उसकी छाया से वह हिन्दू भ्रष्ट न हो जाय। अछूत को अपनी कलाई या गले में निशान के तौर पर एक काला डोरा बांधना पडंता था। ताकि हिन्दू भूल से स्पर्श न कर बैठे।"_

_2: "पेशवाओं की राजधानी पूना में अछूतों के लिए राजाज्ञा थी कि वे कमर में झाडू बांधकर चलें।चलने से भूमि पर उसके पैरों के जो चिन्ह बनें उनको उस झाडू से मिटाते जायें, ताकि कोई हिन्दू उन पद चिन्हों पर पैर रखने से अपवित्र न हो जाय। पूना में अछूतों को गले में मिट्टी की हाड़ी लटका कर चलना पड़ता था ताकि उसको थूकना हो तो उसमें थूके। क्योंकि भूमि पर थूकने से यदि उसके थूक से किसी हिन्दू का पांव पड़ गया तो वह अपवित्र हो जायेगा।"_

*पेशवाओं के घोर अत्याचारों के कारण महारों में अन्दर ही अन्दर असन्तोष व्याप्त था। वे पेशवाओं से इन जुल्मों का बदला लेने के लिए मौके की तलाश में थे।*

और

*जब महारों का स्वाभिमान जागा,तब पूना के आस-पास के महार लोग पूना आकर अंग्रेजों की सेना में भर्ती हुए।*

इसी का प्रतिफल कोरेगांव की लडाई का गौरवशाली इतिहास है।

*🎯कोरेगांव की लडा़ई का गौरवशाली इतिहास:*

अंग्रेजों की बम्बई नेटिव इंफैंट्री (महारों की पैदल फौज) फौज अपनी योजना के अनुसार 31दिसम्बर 1817 ई. की रात को कैप्टन स्टाटन शिरूर गांव से पूना के लिए अपनी फौज के साथ निकला।

*उस समय उनकी फौज "सेकेंड बटालियन फसर्ट रेजीमेंट" में मात्र 500 महार थे। 260 घुड़सवार और 25 तोप चालक थे। उन दिनों भयंकर सर्दियों के दिन थे।*

यह फौज 31दिसम्बर 1817 ई.की रात में 25 मील पैदल चलकर दूसरे दिन प्रात: 8 बजे कोरेगांव भीमा नदी के एक किनारे जा पहुंची।

*1जनवरी सन 1818 ई.को बम्बई की नेटिव इंफैन्टरी फौज( पैदल सेना) अंग्रेज कैप्टन स्टाटन के नेत्रत्व में नदी के एक तरफ थी।*

दूसरी तरफ

*बाजीराव की विशाल फौज दो सेनापतियों रावबाजी और बापू गोखले के नेत्रत्व लगभग 28 हजार सैनिकों के साथ जिसमें दो हजार अरब सैनिक भी थे,सभी नदी के दूसरे किनारे पार काफी दूर-दूर तक फैले हुए थे।"1जनवरी सन 1818को प्रात:9.30 बजे युद्ध शुरू हुआ।*

भूखे-थके महार अपने सम्मान के लिए बिजली की गति से लड़े।

अपनी वीरता और बुद्धि बल से 'करो या मरो' का संकल्प के साथ समय-समय पर ब्यूह रचना बदल कर बड़ी कड़ाई के साथ उन्होंने पेशवा सेना का मुकाबला किया।युद्ध चल रहा था।

*कैप्टन स्टाटन ने पेशवाओं की विशाल सेना को देखते हुएअपनी सेना को पीछे हटने के लिए याचना की। महार सेना ने अपने कैप्टन के आदेश की कठोर शब्दों में भर्तसना करते हुए कहा हमारी सेना पेशवाओं से लड़कर ही मरेगी किन्तु उनके सामने आत्म समर्पण नहीं करेगी, न ही पीछे हटेगी,हम पेशवाओं को पराजित किए बिना नहीं हटेंगे। मर जायेंगे।यह महारों का आपसे वादा है।"*

महार सेना अल्पतम में होते हुए भी पेशवा सेनिकों पर टूट पड़े, तबाई मच गयी।लड़ाई निर्णायक मोड पर थी। पेशवा सेना एक-एक कदम पीछे हट रही थी।

*लगभग सांय 6 बजे महार सैनिक नदी के दूसरे किनारे पेशवाओं को खदेड़ते-खदेड़ते पहुंच गये और पेशवा फौज लगभग 9 बजे मैदान छोड़कर भागने लगी। इस लड़ाई में मुख्य सेनापति रावबाजी भी मैदान छोड़ कर भाग गया परन्तु दूसरा सेनापति बापू गोखले को भी मैदान छोड़कर भागते हुए को महारों ने पकड़ कर मार गिराया।*

इस प्रकार लड़ाई एक दिन और उसी रात लगभग 9.30 बजे लगातार 12 घंटे तक लड़ी गयी जिसमें महारों ने अपनी शूरता और वीरता का परिचय देकर विजय हांसिल की।

*महारों की इस विजय ने इतिहास में जुल्म करने वाले पेशवाओं के पेशवाई शासन का हमेशा के लिए खात्मा कर दिया।*

भारतीय इतिहास की यह घटना मूलनिवासियों के लिए एक अनूठी मिशाल बनकर हमेशा ऊर्जा प्रदान करती रहेगी।

*🎯कोरेगांव का क्रान्ति स्तम्भ:*

कोरेगांव के मैदान में.....

*जिन महार सैनिकों ने वीरता से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त किया। उनकी याद में अंग्रेजों ने उनके सम्मान में सन 1822 ई.में कोरेगांव में भीमा नदी के किनारे काले पत्थरों का क्रान्ति स्तम्भ का निर्माण किया। सन 1822 ई. में बना यह स्तम्भ आज भी महारों की वीरता की गौरव गाथा गा रहा है।*

महारों की वीरता के प्रतीक के रूप में अंग्रेजों ने जो विजय स्तम्भ बनवाया है, वहां उन्होंने महारों की वीरता के सम्बन्ध में अंग्रेजों ने स्तुति युक्त वाक्य लिखा-

*"One of the proudest traimphs of the British Army in the east "ब्रिटिश सेना को पूरब के देशों में जो कई प्रकार की जीत हांसिल हुई उनमें यह अदभुत जीत है।*

इस स्तम्भ को हर साल 1 जनवरी को देश की सेना अभिवादन करने जाती थी। इसे सर्व प्रथम "महार स्तम्भ" के नाम से सम्बोधित किया जाता था। बाद में इसे विजय या फिर "जय स्तम्भ" के नाम से जाना गया।

*आज इसे क्रान्ति स्तम्भ के नाम से पुकारा जाता है, जो सही दृष्टि में ऐतिहासिक क्रान्ति स्तम्भ है। यह स्तम्भ 25 गज लम्बे 6गज चौडे और 6गज ऊंचे एक प्लेट फार्म पर स्थापित 30 गज ऊंचा है तथा जैसे-जैसे ऊपर जायेगा ,उसकी चौड़ाई कम होती जायेगी। जिसको सुरक्षा की दृष्टि से लोहे की ग्रिल से कवर किया गया है।*

इस लड़ाई में पेशवाओं की हार हुई और महार सैनिकों के दमखम की वजय से अंग्रेज विजयी हुए।

*कोरे गांव के युद्ध में 20 महार सैनिक और 5 अफसर शहीद हुए। शहीद हुए महारों के नाम, उनके सम्मान में बनाये गये स्मारक(स्तम्मभ) पर अंकित हैं। जो इस प्रकार हैं-*

1:गोपनाक मोठेनाक
2:शमनाक येशनाक
3:भागनाक हरनाक
4:अबनाक काननाक
5:गननाक बालनाक
6:बालनाक घोंड़नाक
7:रूपनाक लखनाक
8:बीटनाक रामनाक
9:बटिनाक धाननाक
10:राजनाक गणनाक
11:बापनाक हबनाक
12:रेनाक जाननाक
13:सजनाक यसनाक
14:गणनाक धरमनाक
15:देवनाक अनाक
16:गोपालनाक बालनाक
17:हरनाक हरिनाक
18जेठनाक दीनाक
19:गननाक लखनाक

इस लड़ाई में महारों का नेत्रत्व करने वालों के नाम निम्न थे-

रतननाक
जाननाक
और भकनाक आदि

इनके नामों के आगे सूबेदार, जमादार, हवलदार और तोपखाना आदि उनके पदों का नाम लिखा है।

इस संग्राम में जख्मी हुए योद्धाओं के नाम निम्न प्रकार हैं-
1:जाननाक
2:हरिनाक
3:भीकनाक
4:रतननाक
5:धननाक

आज भी महार रेजीमेंट के सैनिकों बैरी कैप पर कोरेगांव की लड़ाई की याद में बनाए इस स्तम्भ की निशानी को अंकित किया गया है।

*बाबासाहेब डा. आम्बेडकर हर साल 1जनवरी को अपने शहीद हुए पूर्वजों को श्रद्धार्पण करने कोरेगांव जाते थे।*

आज इस पवित्र स्मारक पर लाखों की संख्या में लोग अपने पुरखों को श्रद्धा सुमन अर्पित करने आते हैं।

सन्दर्भ: कोरेगांवकी महार क्रान्ति.

Monday 1 January 2018

सम्राट अशोक की हत्या क्योँ की गई और किसने की?

सम्राट अशोक ने अपने राज्य में पशु हत्या पर पाबन्दी लगा दी थी, जिसके कारन ब्राह्मणों की रोजगार योजना बंद को गई थी, उसके बाद सम्राट अशोक ने तीसरी धम्म संगती में ६०,००० ब्राह्मणों को बुद्ध धम्म से निकाल बाहर किया था, तो ब्राह्मण १४० सालों तक गरीबी रेखा के नीचे का जीवन जी रहे थे, उस वक़्त ब्राह्मण आर्थिक दुर्बल घटक बनके जी रहे थे, ब्राह्मणों का वर्चस्व और उनकी परंपरा खत्म हो गई थी, उसे वापस लाने के लिए ब्राह्मणों के पास बौद्ध धम्म के राज्य के विरोध में युद्ध करना यही एक मात्र विकल्प रह गया था, ब्राह्मणों ने अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा वापस लाने के लिए
*👇👇 अखण्ड भारत में मगध की राजधानी पाटलिपुत्र में अखण्ड भारत के निर्माता चक्रवर्ती सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य और सम्राट अशोक महान के पौत्र , मौर्य वंश के 10 वें न्यायप्रिय सम्राट राजा बृहद्रथ मौर्य  की हत्या धोखे से उन्हीं के ब्राह्मण सेनापति पुष्यमित्र शुंग के नेतृत्व में ईसा.पूर्व. १८५ में रक्त रंजिस साजिश के तहत प्रतिक्रांति की और खुद को मगध का राजा घोषित कर लिया था ।*
और इस प्रकार ब्राह्मणशाही का विजय हुआ।
👆🏻 *उसने राजा बनने पर पाटलिपुत्र से श्यालकोट तक सभी बौद्ध विहारों को ध्वस्त करवा दिया था तथा अनेक बौद्ध भिक्षुओ का खुलेआम कत्लेआम किया था। पुष्यमित्र शुंग, बौद्धों व यहाँ की जनता पर बहुत अत्याचार करता था और ताकत के बल पर उनसे ब्राह्मणों द्वारा रचित मनुस्मृति अनुसार वर्ण (हिन्दू) धर्म कबूल करवाता था*।

👆🏻 *उत्तर-पश्चिम क्षेत्र पर यूनानी राजा मिलिंद का अधिकार था। राजा मिलिंद बौद्ध धर्म के अनुयायी थे। जैसे ही राजा मिलिंद को पता चला कि पुष्यमित्र शुंग, बौद्धों पर अत्याचार कर रहा है तो उसने पाटलिपुत्र पर आक्रमण कर दिया। पाटलिपुत्र की जनता ने भी पुष्यमित्र शुंग के विरुद्ध विद्रोह खड़ा कर दिया, इसके बाद पुष्यमित्र शुंग जान बचाकर भागा और उज्जैनी में जैन धर्म के अनुयायियों की शरण ली*।

*जैसे ही इस घटना के बारे में कलिंग के राजा खारवेल को पता चला तो उसने अपनी स्वतंत्रता घोषित करके पाटलिपुत्र पर आक्रमण कर दिया*। *पाटलिपुत्र से यूनानी राजा मिलिंद को उत्तर पश्चिम की ओर धकेल दिया*।
👆🏻 *इसके बाद ब्राह्मण पुष्यमित्र शुंग राम ने अपने समर्थको के साथ मिलकर पाटलिपुत्र और श्यालकोट के मध्य क्षेत्र पर अधिकार किया और अपनी राजधानी साकेत को बनाया। पुष्यमित्र शुंग ने इसका नाम बदलकर अयोध्या कर दिया। अयोध्या अर्थात-बिना युद्ध के बनायीं गयी राजधानी*...

👆🏻 *राजधानी बनाने के बाद पुष्यमित्र शुंग राम ने घोषणा की कि जो भी व्यक्ति, बौद्ध भिक्षुओं का सर (सिर) काट कर लायेगा, उसे 100 सोने की मुद्राएँ इनाम में दी जायेंगी। इस तरह सोने के सिक्कों के लालच में पूरे देश में बौद्ध भिक्षुओ  का कत्लेआम हुआ। राजधानी में बौद्ध भिक्षुओ के सर आने लगे । इसके बाद कुछ चालक व्यक्ति अपने लाये  सर को चुरा लेते थे और उसी सर को दुबारा राजा को दिखाकर स्वर्ण मुद्राए ले लेते थे। राजा को पता चला कि लोग ऐसा धोखा भी कर रहे है तो राजा ने एक बड़ा पत्थर रखवाया और राजा, बौद्ध भिक्षु का सर देखकर उस पत्थर पर मरवाकर उसका चेहरा बिगाड़ देता था । इसके बाद बौद्ध भिक्षु के सर को घाघरा नदी में फेंकवा दता था*।
*राजधानी अयोध्या में बौद्ध भिक्षुओ  के इतने सर आ गये कि कटे हुये सरों से युक्त नदी का नाम सरयुक्त अर्थात वर्तमान में अपभ्रंश "सरयू" हो गया*।
👆🏻 *इसी "सरयू" नदी के तट पर पुष्यमित्र शुंग के राजकवि वाल्मीकि ने "रामायण" लिखी थी। जिसमें राम के रूप में पुष्यमित्र शुंग और "रावण" के रूप में मौर्य सम्राटों का वर्णन करते हुए उसकी राजधानी अयोध्या का गुणगान किया था और राजा से बहुत अधिक पुरस्कार पाया था। इतना ही नहीं, रामायण, महाभारत, स्मृतियां आदि बहुत से काल्पनिक ब्राह्मण धर्मग्रन्थों की रचना भी पुष्यमित्र शुंग की इसी अयोध्या में "सरयू" नदी के किनारे हुई*।

👆🏻 *बौद्ध भिक्षुओ के कत्लेआम के कारण सारे बौद्ध विहार खाली हो गए। तब आर्य ब्राह्मणों ने सोचा' कि इन बौद्ध विहारों का क्या करे की आने वाली पीढ़ियों को कभी पता ही नही लगे कि बीते वर्षो में यह क्या थे*
*तब उन्होंने इन सब बौद्ध विहारों को मन्दिरो में बदल दिया और इसमे अपने पूर्वजो व काल्पनिक पात्रों,  देवी देवताओं को भगवान बनाकर स्थापित कर दिया और पूजा के नाम पर यह दुकाने खोल दी*।
साथियों, इसके बाद ब्राह्मणों ने मूलनिवासियो से बदला लेने के लिए षडयन्त्र पूर्वक (रंग-भेद) वर्णव्यवस्था का निर्माण किया गया, वर्णव्यवस्था के तहत, जाती व्यवस्था में ६००० जातीया बनाई, और उसमे ७२००० उप जातीया बनाई। और इसे ब्राह्मणों ने इश्वर निर्मित बताया ताकि इसे सहजता से स्वीकार कर ले। मूलनिवासियो को इतने छोटे-छोटे जातियों के टुकड़ो में बाँटा ताकि मूलनिवासी ब्राह्मणों से फिर से युद्ध न कर सके और ब्राह्मणों पर फिर से विजय प्राप्त न कर सके।
👆🏻 *ध्यान रहे उक्त बृहद्रथ मौर्य की हत्या से पूर्व भारत में मन्दिर शब्द ही नही था, ना ही इस तरह की संस्कृती थी। वर्तमान में ब्राह्मण धर्म में पत्थर पर मारकर नारियल फोड़ने की परंपरा है ये परम्परा पुष्यमित्र शुंग के बौद्ध भिक्षु के सर को पत्थर पर मारने का प्रतीक है*।

👆🏻 *पेरियार रामास्वामी नायकर ने भी " सच्ची रामायण" पुस्तक लिखी जिसका इलाहबाद हाई कोर्ट केस नम्बर* *412/1970 में वर्ष 1970-1971 व् सुप्रीम कोर्ट 1971 -1976 के बीच में केस अपील नम्बर 291/1971 चला* ।
*जिसमे सुप्रीमकोर्ट के जस्टिस पी एन भगवती जस्टिस वी आर कृषणा अय्यर, जस्टिस मुतजा फाजिल अली ने दिनाक 16.9.1976 को निर्णय दिया की सच्ची रामायण पुस्तक सही है और इसके सारे तथ्य सही है। सच्ची रामायण पुस्तक यह सिद्ध करती है कि "रामायण" नामक देश में जितने भी ग्रन्थ है वे सभी काल्पनिक है और इनका पुरातात्विक कोई आधार नही है*।
👆🏻 *अथार्त् 100% फर्जी व काल्पनिक है*।
👆🏻 *एक ऐतिहासिक सत्य जो किसी किसी को पता है...*
जागो मुलनिवासियों, बहुजनों, अपने मुल इतिहास को जानों, पाखण्डि ब्राह्मणवादियों के बहकावे में न आयें। अन्यथा वो दिन जब हमें पानी पीने, तन में  कपड़ा पहनने का, पढ़ने-लिखने, अधिकार नहीं था, एक जानवरों से भी बत्तर जिंदगी जीने पर मजबूर किया करते थे, ऐसा दिन आने में दूर नहीं। को दूसरे बाबासाहेब हमें बचाने नहीं आयेंगें।
👆🏻 *जागरूक रहें, जागरूक करें और अधिक से अधिक अधिक शेयर करें...*
भवतु सब्ब मंगलम् रक्खनतु सब्ब देवता।
सब्ब बुद्धानुभावेन सदा सोत्थि भवन्तु सब्ब।।
मेरे महानुभाव, बुद्धिजीवी, जागरूक, परम कल्याण मित्रों आप सब को 🙏🙏
आप सब का सदैव शुभमंगल हो...
आप का परम कल्याण मित्र...

मूलनिवासी इतिहास

sir Manohar barkade ji ki wall se मूलनिवासी इतिहास *ये है भारत का असली इतिहासl बाकि सब झूठ हैl* इस पोस्ट के अन्दर दबे हुए इतिहास के प...