Friday 25 January 2019

गणतंत्र के नाम पर षडयंत्र ?

गणतंत्र के नाम पर षडयंत्र ?

आखिर वास्तविक रूप में गणतंत्र का देश क्यों नही बना भारत देश ?

साथियों गणतंत्र का अर्थ होता है कि ऐसा राष्ट्र जिसकी सत्ता जनसाधारण में समाहित हो । साथियों क्या  उस जनसाधारण को ये अधिकार मिले ? उस जनसाधारण को यह अधिकार आज तक क्यों नहीं मिले ?

आप लोगों का ये उत्तर हो सकता है कि जनसाधारण ही वोट डालकर सरकारों को चुनता है तो फिर उसके द्वारा चुनी गई सरकारें ,उस जनसाधारण के लिए काम क्यों नहीं करती ?

मेरा ये भी सवाल है कि क्या इस देश का जनसाधारण अपनी बुद्धि के अनुसार, अपने विवेक के अनुसार वोट डालने में सक्षम है ? आप भले ही यह कहे कि हां सक्षम है , लेकिन व्यवहारिक रूप में ये बात सत्य नहीं है । आखिर व्यवहारिक रूप में ये बात सत्य क्यों नहीं है ? क्योंकि इस देश की सरकारों ने जनसाधारण के पक्ष में इस देश का माहौल पैदा ही नहीं होने दिया ।

इस देश का जनसाधारण अपने वोट का इस्तेमाल प्रचार-प्रसार, पैसा,बहाव, कौन जीतेगा , कौन जीत रहा है आदि पर निर्भर करता है और यह माहौल इस देश के राजनेता, पत्रकार,पुंजीपती, सामंतवादी, मुफ्तखोर, मुनाफाखोर,राजचोर, ब्राह्मणवादी आदि मिलकर तैयार करते है , इस माहौल से देश की सरकारें तय होती है ।

क्या हमारे संविधान निर्माताओं का यही लक्ष्य और उद्देश्य था ? उनका लक्ष्य यदि ये नहीं था तो फिर क्या था ? वह लक्ष्य देश की आजादी के 72 वर्षों में भी क्यों नहीं हासिल हो पाया ? इन 72 वर्षों में देश के साथ गद्दारी किस किस ने की और क्यों की ? वह देश का दुश्मन कौन है जिसने देश के जनसाधारण को आजादी की सांस नहीं लेने दी ? फिर कैसे कह सकते है कि देश में गणतंत्र है ?

सबसे ज्यादा बेरोजगार और सबसे ज्यादा भूखे यहीं पर है फिर कैसे कह सकते है कि गणतंत्र है ? गणतंत्र का अर्थ है , जनता के लिए, जनता के द्वारा, जनता का शासन। यदि गणतंत्र का यही अर्थ है तो इस देश में छोटी छोटी बच्चियों के साथ क्यों बलात्कार हो रहे है और वो भी उनकी इच्छा के विरुद्ध ? क्या उनके लिए इस देश का गणतंत्र मर गया है ? यदि यह गणतंत्र मर गया है तो फिर गणतंत्र गणतंत्र क्यों चिल्लाया जा रहा है ? यह षडयंत्र क्यों जारी है ? क्या गणतंत्र जैसे शब्दों से ही संतुष्ट हो जाना उचित है ?

इस देश में न्याय पाने के लिए आम आदमी अपनी पूरी जिंदगी लगा देता है तो भी उसे न्याय नहीं मिल पाता और बहुत से तो ऐसे लोग हैं कि वे न्याय लेने की सोच भी नहीं सकते ,न्याय तो उनके लिए बहुत ही दूर की बात है । आखिर अभी भी इस देश में ऐसा हाल क्यों है ? बहुत से लोगों एफ आई आर भी दर्ज नहीं होती , इस देश में जब एफआईआर भी जब सही तरीके से लिखी नहीं जाती , तो फिर गणतंत्र का क्या अर्थ रह जाता है ?

गण शब्द का अर्थ है संख्या या समूह, गणतंत्र या गणराज्य का शाब्दिक अर्थ है बहुसंख्यक का शासन , लेकिन इस देश का बहुसंख्यक हर जगह उत्पीड़न का शिकार है । देश में सुई से लेकर जहाज बनाने के श्रमिक के तौर पर यह बहुसंख्यक वर्ग ही योगदान देता है , लेकिन इस वर्ग के लिए न अच्छे स्कूल है और ना ही चिकित्सा के अच्छे प्रबन्ध है । इसके साथ यह भेदभाव क्यों है ? क्या गणतंत्र में यह भेदभाव उचित है ? इस भेदभाव वाले तंत्र को गणतंत्र कहा जा सकता है ? नहीं, नहीं कदापि नहीं । आइए सच्चे अर्थों में , वास्तविक रूप में गणतंत्र स्थापित करें ।

इस देश का बहुसंख्यक बहुजन समाज आज भी इस देश का हुक्मरान नहीं है , जबकि संख्या में वह बहुसंख्यक हैं । बहुसंख्यक वर्ग के हाथ में देश की शासन सत्ता होनी चाहिए। इस बहुसंख्यक वर्ग को किसने अलाचर और बेबस किया है और क्यों किया है ?  इस शैतानी करने वाले को कब दण्ड मिलेगा ? इस देश का बहुसंख्यक वर्ग अनुसूचित जाति, जनजाति, और अन्य पिछड़ा वर्ग आज भी भेदभाव का शिकार है , इस देश में संविधान में मौजूद अधिकार भी उसे नहीं मिल पा रहे । इनके अधिकारों से इस लोकतंत्र में कौन खिलवाड़ कर रहा है ? यह शैतानी करने वाला कौन है ? क्या गणतंत्र में यह शैतानी जायज है ?

गणतंत्र का मतलब सरकार के उस रुप से है जहां राष्ट्र का मुखिया राजा नहीं होता , लेकिन भारत में सत्तापक्ष के लोग निरंकुश हो रहे है ? संविधान के नीति नियमों से खिलवाड़ करके संविधान विरोधी निर्णय दे रहे है ? क्या गणतंत्र में ये जायज है ? मुझे नहीं लगता कि ऐसे नौटंकी टाईप गणतंत्र की हमें जरूरत है । संविधान को पूर्ण रूप से लागू करने से ही गणतंत्र स्थापित हो सकता है ।

भारत के प्रधानमंत्री से मेरा आग्रह है कि कल इस बात की चर्चा करिए कि कहां कहां पर संविधान को मौजूदा सरकार ने फेल किया है ? कहां कहां पर इस देश के बहुसंख्यक बहुजन समाज के अधिकारों से धोखाधड़ी की गई है ? इस धोखाधड़ी से देश में गणतंत्र स्थापित नहीं हो सकता ।

देश में बहुत सारी राजनैतिक पार्टियां भी गणतंत्र में बाधा है , वहां मठाधीश, सुप्रीमों, परिवारवाद की पराकाष्ठा जोरों पर है , लोकतंत्र के नाम पर एक फुटी कौड़ी भी नहीं है , ऐसे लोगों से क्या उम्मीद कर सकते है गणतंत्र की ?

देश की बहुसंख्यक जनता से अपील है कि आइए इस नौटंकीबाज गणतंत्र का पर्दाफाश करें और सच्चे अर्थों में, वास्तविक रूप में गणतंत्र स्थापित करने का प्रयास करें और इसके लिए लोगों को कन्विन्स करें , लामबंद करें । इस लामबंदी के लिए अधिक से अधिक त्याग और समर्पण करें ।

Sunday 13 January 2019

मूलनिवासी एकता की जरुरत क्यों?

    😊राज की बात😊

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🙏मूलनिवासी एकता की जरुरत कयों? 🙏

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😊सवर्णों को मिलने जा रही 10 % "आरक्षण बिल" या "आरक्षण विधेयक" को लोकसभा में 300 से भी ज़्यादा मतों से भारी भरकम कामयाबी मिली है एवं राज्यसभा में भी पारित हो गई ।

😊इस संबंध में यदि "संविधान संशोधन" भी करना पड़े तो वह भी शायद कर ही लेगा ।

😊सवर्णों के लिए आरक्षण का प्रावधान के मायने एवं दूरगामी प्रभाव आनेवाले समय में भारत की जातीय - सामाज़िक राजनीति में कुछ भी क्यों न हो , किंतु एक बात बिल्कुल सत्य है कि इस देश के SC , ST , OBC एवं MINORITIES समाज़ के प्रायः सभी राजनेता क्षेत्रीय दलों में या राष्ट्रीय दलों में राजनीति में आने के बाद से सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने एवं अपने परिवार के राजनीतिक भविष्य , महत्वाकांक्षा एवं उत्थान की बातों को ही सर्वाधिक प्रधानता व प्राथमिकता हमेशा दी गई है।

😊बहुजनों की 85 % आबादी की आर्थिक उन्नति , शैक्षणिक उन्नति , सामाज़िक उन्नति , राजनीतिक उन्नति , प्रशासनिक उन्नति ,  न्यायिक उन्नति या अन्यान्य उन्नति के लिए हमारे कथित व तथाकथित मूलनिवासी बहुजन नेताओं व राजनेताओं ( कोईरी , कुर्मी , यादव , जाटव , मराठा , पासवान , गुर्जर , जाट , मुस्लिम नेतागण ) ने गंभीरता से कभी भी ध्यान नहीं दिया।

😊जिसके कारण आज़ इस देश की विशाल मूलनिवासी बहुजन जनता की स्थिति भयावह बनी हुईं है।

😊मूलनिवासी बहुजन  समाज़ एवं मूलनिवासी बहुजन राजनीतिक नेताओं का नेतृत्व बिल्कुल समाज के प्रति गद्दारी भरा रहा है ।

😊सारे के सारे मूलनिवासी बहुजन समाज अपनी - अपनी जाति के बहुजन नेताओं के साथ अलग - अलग राजनीतिक पार्टियों से जुड़े हुए हैं।

😊जाति के आधार पर अलग - अलग समर्थक बने हुए हैं।

सभी मूलनिवासी बहुजन समाज़ के लोगों एवं मूलनिवासी बहुजन नेताओं का अपना अलग - अलग जातीय एवं राजनीतिक दलगत  कुनबा है।

😊वे सभी लोग ( चाहे जनता हों या नेता ) आपस में सामाज़िक रूप से एवं राजनैतिक रुप से एकताबद्ध नहीं है और होना भी नहीं चाहते हैं ।

🙏जिससे मूलनिवासी बहुजन समाज को हासिए पर खड़ा कर दिया है।🙏

😊मूलनिवासी बहुजन के नेताओं - राजनेताओं को अपना राजनैतिक अस्तित्व के लिए ब्राह्मणवाद का गोद ही प्यारा लग रहा है।

🤝 इसके विपरीत , इस देश के सवर्ण जाति की आम जनता एवं सवर्ण जाति के नेता - राजनेता गण विभिन्न राजनीतिक पार्टियों में अलग - अलग रहने एवं राजनीति करने  बावज़ूद भी अपनी सवर्ण जाति व समाज़ के हितों का पोषण करने में लगे रहते हैं।

😊इन सारी बातों से मूलनिवासी बहुजन समाज एवं मूलनिवासी बहुजन समाज के नेताओं के लिए एक बड़ी सीख , सबक एवं शिक्षा लेनी चाहिए थी, किंतु मूलनिवासी बहुजन समाज एवं मूलनिवासी बहुजन समाज के नेताओं को इससे कोई मतलब या सरोकार ही नहीं है। सिवाय अपना काम बनता भाड़ में जाए बहुजन जनता।

😊इसीलिए मूलनिवासी बहुजन समाज को अभी और दुर्दिन देखना पड़ेगा।

😊इस देश के SC , ST , OBC एवं MINORITIES समाज़ के सभी मूलनिवासी बहुजन समाज के लिए कितनी शर्म की बात है।

😊मूलनिवासी बहुजन समाज के नेताओं के लिए मानो खुशखबरी भरा कामयाबी मिला हो।  लोकसभा एवं राज्यसभा , दोनों सदनों में सवर्णों का "आरक्षण बिल" या "आरक्षण विधेयक" बहुमत , ध्वनिमत एवं करतल ध्वनि से पारित हो जातीं है एवं उस "बिल" या "विधेयक" के पक्ष में मूलनिवासी बहुजन समाज के नेता गण भी वोटिंग करते हैं !

😊राजनीतिक रूप से एवं राजनीतिक शक्ति के दृष्टिकोण से विभिन्न दलों के हमारे बहुजन नेता गण कितने मक्कार , गद्दार , स्वर्ण वफादार एवं समाज को दिग्भ्रमित करने वाला है।

अब बस ! बहुत हो गया गंदी राजनीति भरा खेल !

😊अब तो यह होना चाहिए एवं करना चाहिए कि इस देश के SC , ST , OBC , MINORITIES जाति एवं समाज़ के आम बहुजन नागरिक काँग्रेस , बीजेपी , राजद , सपा , बसपा , जदयू या अन्यान्य सभी राष्ट्रीय पार्टियों एवं क्षेत्रीय पार्टियों के अपने बहुजन नेताओं ( कोईरी , कुर्मी , यादव , जाटव , पटेल , मराठा , जाट , गुर्जर , पासवान , दलित , आदिवासी नेताओं ) से मोहभंग कर लें एवं मूलनिवासी बहुजन समाज़ ( SC , ST , OBC , MINORITIES ) के बुद्धिजीवियों को व्यवस्था परिवर्तन के लिए नया विकल्प पर गौर करने की आवश्यकता है।

😊"जिसमें केवल और केवल मूलनिवासी बहुजन समाज के ही नेतृत्व कर्ता हो " राष्ट्रीय स्तर की पार्टी स्थापित करने के दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए।

😊इस तरह की पार्टी ही मूलनिवासी बहुजन समाज को अपना हक व हकूक दिला पायेगा। इस राष्ट्रीय स्तर की पार्टी के नेता गण इतने ईमानदार , कर्मठ , स्वार्थरहित , ज़िम्मेदार , संवेदनशील , योग्य , पारदर्शी , नीतिवान , नैतिक साहसी , निर्भीक, ज़िम्मेवार एवं लोकतांत्रिक हो कि उनका एकमात्र उद्देश्य समस्त बहुजनों एवं राष्ट्र का समग्र विकास व उत्थान करना हो।

😊मूलनिवासी बहुजनों का "राष्ट्रीय स्तर की राजनीतिक दल " होने का सबसे बड़ा लाभ व फ़ायदा यह होगा कि देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में लोकसभा चुनाव , विधानसभा चुनाव या अन्यान्य  जन प्रतिनिधि चुनाव में वोटिंग या मतदान के दौरान बहुजन मतों या वोट का बिखराव भी नहीं होगा एवं बहुजन नेताओं का अलग - अलग कुनबा भी कुकुरमुत्ते की तरह नहीं पनपेंगी।

😊यह समय की मांग है। इस देश की मूलनिवासी बहुजन ( SC , ST , OBC , MINORITIES ) समाज ,  मूलनिवासी बहुजन नेताओं , बहुजन बुद्धिजीवियों , बहुजन सामाज़िक कार्यकर्त्ताओं , बहुजन विचारकों , बहुजन चिंतकों को इन विषयों पर गभीर , सार्थक एवं तार्किक बौद्धिक चिंतन करना ही होगा।

😊"मूलनिवासी बहुजन समाज का राष्ट्रीय राजनीतिक दल" को मजबूत रुप से खड़ा करने के अवधारणा को धरातल पर मूर्त्त रूप देना ही पड़ेगा।

ऐसा नहीं करने से इस देश की मूलनिवासी बहुजन जनता एवं बहुजन नेता भविष्य में भी काँग्रेस - काँग्रेस , बीजेपी - बीजेपी , राजद - राजद , जदयू - जदयू  , सपा - सपा , बसपा - बसपा , लोजपा - लोजपा , झामुमो - झामुमो , आजसू - आजसू , अपना दल - अपना दल , तृणमूल - तृणमूल , अगप - अगप , डीएमके - डीएमके , अन्ना द्रमुक - अन्ना द्रमुक , सीपीआई - सीपीआई , सीपीएम - सीपीएम इत्यादि दलों का फुटबॉल बनकर किक खाने को तैयार रहना पड़ेगा।

😊उन्हीं सभी दलों का महज़ राजनीतिक खेल खेलते रह जाऐंगे एवं उन्हीं में उलझकर रह जाऐंगे ।

😊इस देश की मूलनिवासी बहुजन समाज एवं बहुजन नेताओं के लिए यही एक आख़िरी एवं मज़बूत जातीय , सामाज़िक एवं  राजनीतिक विकल्प है कि वे यथाशीघ्र वक़्त की नज़ाकत को समझते हुए एवं भाँपते हुए  इस ओर मजबूती से कदम बढ़ायें।

😊राष्ट्रीय स्तर पर अपनी मज़बूत सामाज़िक - राजनीतिक हैसियत एवं उपस्थिति दर्ज़ करायें ।

       😊😊

👍👍👍👍👍👍👍👍👍👍👍

Saturday 12 January 2019

वैचारिक आंदोलन

_*🙏🧠🙏वैचारिक आंदोलन🙏🧠🙏*_

_लेख बहुत महत्वपूर्ण है,इसीलिए जरूर पढ़िएगा_

*👉समस्त झगड़ों की जड़ है= ब्राह्मण👈*

*"जानिए ब्राह्मण के चाल, चरित्र और चेहरे को"*

01. अपने पक्ष में *वेद* लिखने वाले = *ब्राह्मण*
02. धर्म के भ्रमजाल पर *पुराण* लिखने वाले = *ब्राह्मण*
03. धर्म के विस्तार के लिए *उपनिषद* लिखने वाले = *ब्राह्मण*
04. आपसी झगड़ों पर *ग्रंथ* लिखने वाले = *ब्राह्मण*
05. खुद की श्रेष्ठता के लिए *मनुस्मृति* लिखने वाला = *ब्राह्मण*
06. अंधविश्वास में फंसाने के लिए *पंचांग* लिखने वाला = *ब्राह्मण*
07. अपने रोजगार के लिए *मंदिर* बनवाने वाला = *ब्राह्मण*
08. काल्पनिक *भगवान* बनाने वाला = *ब्राह्मण*
09. मिथ्या *पूजापाठ* कराने वाला = *ब्राह्मण*
10. मूर्ख बनाने के लिए *कर्मकांड* करने वाला = *ब्राह्मण*
11. गरीबों में *पाखंड* फैलाने वाला = *ब्राह्मण*
12. अशिक्षितों में *अंधविश्वास* फैलाने वाला = *ब्राह्मण*
13. चमत्कार के नाम पर *ढोंग* फैलाने वाला = *ब्राह्मण*
14. अपनी जाति से दूसरी जातियों को *छोटी* बनाने वाला = *ब्राह्मण*
15. जातियों में *ऊँच-नीच* की भावना फैलाने वाला = *ब्राह्मण*
16. जातियों के *टुकड़ें* करने वाला = *ब्राह्मण*
17. जातियों को काम *बांटने* वाला = *ब्राह्मण*
18. जाति के आधार पर *भेदभाव-छुआछूत* करवाने वाला = *ब्राह्मण*
19. इंसानों को *अछूत* बनाने वाला = *ब्राह्मण*
20. छोटी जातियों पर *अत्याचार* कराने वाला = *ब्राह्मण*
21. जाति देखकर *सजा* देने वाला = *ब्राह्मण*
22. शूद्रों को *नीच* बताने वाला = *ब्राह्मण*
23. महिलाओं को *उपभोग की वस्तु* बताने वाला = *ब्राह्मण*
24. *महिलाओं* को बराबर नहीं मानने वाला = *ब्राह्मण*
25. *कांग्रेस* को बनाने वाले = *ब्राह्मण*
26. *आरएसएस* को बनाने वाले = *ब्राह्मण*
27. *जनसंघ* को बनाने वाले = *ब्राह्मण*
28. *जनता पार्टी* को बनाने वाले = *ब्राह्मण*
29. *भाजपा* को बनाने वाले = *ब्राह्मण*
30. *माकपा-भाकपा-तृणमूल कांग्रेस* को बनाने वाले = *ब्राह्मण*
31. सबसे ज्यादा *प्रधानमंत्री* बनने वाले = *ब्राह्मण*
32. सबसे ज्यादा *राष्ट्रपति* बनने वाले = *ब्राह्मण*
33. सबसे ज्यादा *एमपी-एमएलए* बनने वाले = *ब्राह्मण*
34. सबसे ज्यादा *राज्यपाल, मुख्यमंत्री, मंत्री बनने* वाले = *ब्राह्मण*
35. सबसे ज्यादा *जज* बनने वाले = *ब्राह्मण*
36. सबसे ज्यादा *एसपी-कलेक्टर* बनाने वाले = *ब्राह्मण*
37. *एससी-एसटी* से नफरत करने वाले = *ब्राह्मण*
38. *मुसलमानों* से नफरत करने वाले = *ब्राह्मण*
39. *हिंदू-मुसलमानों* को लड़वाने वाले = ब्राह्मण
40. *आरक्षण* का विरोध करने वाले = *ब्राह्मण*
41. *पदोन्नति में आरक्षण* का विरोध करने वाले = *ब्राह्मण*
42. *एससी-एसटी कानून* का विरोध करने वाले = *ब्राह्मण*
43. *टीवी न्यूज चैनल* चलाने वाले = *ब्राह्मण*
44. *अखबार* छापने वाले = *ब्राह्मण*
45. सबसे ज्यादा *संवाददाता-पत्रकार* बनने वाले = *ब्राह्मण*
46. सबसे बड़े *गायों के कत्लखानें* चलाने वाले = *ब्राह्मण*
47. *सुअरों के कत्लखानें* चलाने वाले = *ब्राह्मण*
48. सबसे ज्यादा *गाय का मीट* खाने वाले = *ब्राह्मण*
49. सबसे ज्यादा *बलात्कार* करने वाले = *ब्राह्मण*
50. सबसे ज्यादा *भ्रष्टाचार* फैलाने वाले = *ब्राह्मण*
51. विदेशों में सबसे ज्यादा *कालाधन* जमा करने वाले = *ब्राह्मण*
52. *ज्योतिबा फुले* को शूद्र कहकर अपमानित करने वाले = *ब्राह्मण*
53. *सावित्रीबाई फुले* पर कीचड़ फेंकने वाले = *ब्राह्मण*
54. बड़ौदा दरबार में *डॉ अंबेडकर* को पानी नहीं पिलाने वाला = *ब्राह्मण*
55. महाड़ तालाब के पानी को छूने पर *बाबा साहब पर हमला* करने वाले : *ब्राह्मण*
56. कालामंदिर में घुसने पर *बाबा साहब पर हमला* करने वाले = *ब्राह्मण*
57. *बाबा साहब की मूर्तियों* को तोड़ने वाले = *ब्राह्मण*
58. अजमेर-मालेगांव(मुम्बई) में *विस्फोट* करने वाले = *ब्राह्मण*
59. *हिंदू आतंकवाद* फैलाने वाले = *ब्राह्मण*
60. *संविधान का विरोध* करने वाले = *ब्राह्मण*
61. पूरे देश में 11.12.1949 को *डॉ अंबेडकर के पुतलें* जलाने वाले = *ब्राह्मण*
62. दिल्ली में 09.08.2018 को *संविधान जलाने* वाले = *ब्राह्मण*
63. *एकलव्य का अंगूठा कटवाने* वाला = *ब्राह्मण*
64. *शंभूक ऋषि की हत्या* कराने वाला = *ब्राह्मण*
65. *बौद्ध राजा बृदहस्त की हत्या* करने वाला = *ब्राह्मण*
66. *महात्मा गांधी की हत्या* करने वाला = *ब्राह्मण*
67. *पत्रकार गौरी लंकेश* की हत्या करने वाले = ब्राह्मण
68. *डाभोलकर की हत्या* करने वाले = *ब्राह्मण*
69. *रोहित वेमुला की हत्या* करने वाले = *ब्राह्मण*
70. *डॉ अंबेडकर की हत्या* करने वाली = *ब्राह्मण*
71. धर्म के नाम पर *लूटने* वाले = *ब्राह्मण*
72. मंदिरों में सबसे ज्यादा *कालाधन* एकत्रित करने वाले = *ब्राह्मण*
73. भगवान के *भय* से डराने वाले = *ब्राह्मण*
74. भगवान के नाम पर *दान* मांगने वाले = *ब्राह्मण*
75. मंदिर के नाम पर *अनुदान* मांगने वाले = *ब्राह्मण*
76. सांसद, विधायक, मेयर, पार्षद, प्रधान, सरपंच बनने के लिए सबसे ज्यादा *मतदान मांगने* वाले = *ब्राह्मण*

*यह है ब्राह्मणों का काला इतिहास। अर्थात एक बार सांप पर विश्वास कर लेना, परंतु किसी भी हालत में ब्राह्मणों पर विश्वास मत करना....*

*ब्राह्मण* भारत की कुल जनसंख्या के *मात्र 3.5%* हैं, परंतु ब्राह्मण का भारत की कार्यपालिका, व्यवस्थापिका, न्यायपालिका, चुनाव आयोग, भारतीय रिजर्व बैंक आदि की *80% व्यवस्था* पर कब्जा है....

*कुल मिलाकर समस्त झगड़ों की जड़ है = ब्राह्मण*
*समस्त जातियों के पिछड़ेपन की जड़ है = ब्राह्मण*

इसीलिए जनता को अपने हक और अधिकारों के लिए जागरूक होना बहुत जरूरी है, अन्यथा भारत की गैरब्राह्मण जनसंख्या यानि भारत के मूलनिवासी कभी भी विकास नहीं कर पाएंगे।

_*इसीलिए ब्राह्मण को ब्राह्मण के द्वारा रचित धार्मिक व्यवस्था के जातीय मकड़जाल में फंसाना बहुत जरूरी है....*_

*1. ब्राह्मण* को सिर्फ पूजापाठ, कर्मकांड, हवन, यज्ञ आदि करने चाहिए, इसके अलावा कुछ नहीं....
*2. क्षत्रिय* को सिर्फ देश की सुरक्षा करनी चाहिए, इसके अलावा कुछ नहीं....
*3. वैश्यों* को सिर्फ व्यापार करना चाहिए, इसके अलावा कुछ नहीं....

और

*4. शूद्रों* को राष्ट्रपति से लेकर चपरासी तक के पदों पर चयनित होकर सिर्फ देश की सेवा करनी चाहिए, इसक अलावा कुछ नहीं....

आइए, देश के शासन-प्रशासन से ब्राह्मणों के 80% अनावश्यक कब्जे को खाली करवाते हैं....

_*हमें चाहिए आजादी।*_
_*ब्राह्मणवाद से आजादी।।*_

_*मताधिकार हमारा संवैधानिक अधिकार है जो ब्राह्मणवादी अत्याचारों से लड़ने का सबसे कारगर और जबरदस्त हथियार है जिसका प्रयोग करके हम अपनी संवैधानिक आजादी प्राप्त कर सकते हैं....*_

नजरिया: आरक्षित सीटों से आने वाले नेता निकम्मे साबित होते है।

*नज़रिया: ‘आरक्षित सीटों से आने वाले नेता निकम्मे साबित हुए हैं’*

*Part-1*

*संसद और विधानसभाओं में आरक्षित सीटों की वजह से चुनकर आने वाले लगभग बारह सौ जनप्रतिनिधियों ने* अपने समुदाय को लगातार निराश किया है. दलित और आदिवासी हितों के सवाल उठाने में ये जनप्रतिनिधि बेहद निकम्मे साबित हुए हैं.

लेकिन इसमें उनकी कोई ग़लती नहीं है उनका ऐसा करना एक संरचनात्मक मजबूरी है *क्योंकि उनका चुना जाना उनके अपने समुदाय के वोटों पर निर्भर ही नहीं है.*

मिसाल के तौर पर *जिग्नेश मेवानी वडगाम सीट पर 15 प्रतिशत दलित वोटर की वजह से नहीं, 85 प्रतिशत ग़ैर-दलित वोटरों के समर्थन से चुने गए हैं.*

*उस सीट के सारे दलित मिलकर भी कभी किसी को जिता नहीं सकते.*

*सुरक्षित सीटों पर कोई भी ऐसा जनप्रतिनिधि चुनकर नहीं आ सकता,* जो दलित या आदिवासी हितों के लिए आक्रामक तरीके से संघर्ष करता हो, और ऐसा करने के क्रम में अन्य समुदायों को नाराज़ करता हो. *रिज़र्व सीटें हमेशा दुर्बल जनप्रतिनिधि ही पैदा कर सकती हैं.*

*संसद और विधानसभा में सीटों के रिज़र्वेशन की व्यवस्था पर सवाल उठाने का समय आ गया है.*

बेहतर होगा कि ये *सवाल ख़ुद अनुसूचित जाति और जनजाति के अंदर से आएं.* इस सवाल पर राष्ट्रीय बहस होनी चाहिए.

*समुदाय के लिए करते क्या हैं?*

2009 में भारतीय संसद ने हर दस साल पर होने वाली एक औपचारिकता फिर निभाई. *वही औपचारिकता, अगर कोई ग़ज़ब न हुआ तो, 2019 में फिर निभाई जाएगी.*

*हर दस साल पर, संसद एक संविधान संशोधन विधेयक पारित करती है, जिसके तहत लोकसभा और विधानसभाओं में अनुसुचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षण को दस साल के लिए बढ़ा दिया जाता है और फिर राष्ट्रपति इस विधेयक को अनुमोदित करते हैं. संविधान का अनुच्छेद 334, हर दस साल पर दस और साल जुड़कर बदल जाता है.*

*इसी प्रावधान की वजह से लोकसभा की 543 में से 79 सीटें अनुसूचित जाति और 41 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए रिज़र्व हो जाती हैं. वहीं, विधानसभाओं की 3,961 सीटों में से 543 सीटें अनुसूचित जाति और 527 सीटें जनजाति के लिए सुरक्षित हो जाती हैं.*

*इन सीटों पर वोट तो सभी डालते हैं, लेकिन कैंडिडेट सिर्फ एससी या एसटी का होता है.*

लोकसभा और विधानसभाओं में *आज़ादी के समय से ही* अनुसूचित जाति और जनजाति का उनकी *आबादी के अनुपात में प्रतिनिधित्व रहा है.*

*सवाल यह उठता है कि इतने सारे दलित और आदिवासी सांसद और विधायक अपने समुदाय के लिए करते क्या हैं?*

नेशनल क्राइम रेकॉर्ड्स ब्यूरो के इस साल जारी आंकड़ों के मुताबिक *इन समुदायों के उत्पीड़न के साल में 40,000 से ज़्यादा मुकदमे दर्ज हुए.* यह आंकड़ा साल दर साल बढ़ रहा है. जाहिर है कि *इन आंकड़ों के पीछे एक और आंकड़ा उन मामलों का होगा, जो कभी दर्ज ही नहीं होते हैं.*

*क्या दलित उत्पीड़न की इन घटनाओं के ख़िलाफ़ दलित सांसदों या विधायकों ने कोई बड़ा, याद रहने वाला आंदोलन किया है?*

*ऐसे सवालों पर, संसद कितने बार ठप की गई है और ऐसा रिज़र्व कैटेगरी के सांसदों ने कितनी बार किया है?*

हमने देखा है कि तेलंगाना से आने वाले *दसेक सांसदों ने कई हफ़्ते तक संसद की गतिविधियों को बाधित रखा.*

*कोई वजह नहीं है कि लगभग सवा सौ एससी और एसटी सांसद अगर चाह लें तो संसद में इससे कई गुना ज़्यादा असर पैदा कर सकते हैं.* लेकिन भारतीय संसद के इतिहास में ऐसा कभी हुआ नहीं है.

इसी तरह, *सरकारी नौकरियों और शिक्षा में अनुसूचित जाति और जनजाति को आबादी के अनुपात में आरक्षण मिला हुआ है*

लेकिन *केंद्र और राज्य सरकारें अक्सर यह सूचना देती हैं कि इन जगहों पर कोटा पूरा नहीं हो रहा है.*

*ख़ासतौर पर उच्च पदों पर, अनुसूचित जाति और जनजाति के कोटे का हाल बेहद बुरा है.* जैसे कि हम देख सकते हैं कि *देश की 43 सेंट्रल यूनिवर्सिटी में एक भी वाइस चांसलर अनुसूचित जाति का नहीं है या कि केंद्र सरकार में सेक्रेटरी स्तर के पदों पर अक्सर एससी या एसटी का कोई अफसर नहीं होता.*

*शासन के उच्च स्तरों पर अनुसूचित जाति और जनजाति की अनुपस्थिति क्या अनुसूचित जाति और जनजाति के सांसदों के लिए चिंता का विषय है?* अगर वे इसके लिए चिंतित हैं, तो उन्होंने सरकार पर कितना दबाव बनाया है? *क्या इस सवाल पर कभी संसद के अंदर कोई बड़ा आंदोलन या हंगामा हुआ?* ज़ाहिर है कि ऐसा कुछ नहीं हुआ.

चूंकि सरकारी नौकरियों की संख्या लगातार घट रही है और हाल के वर्षों में *निजी क्षेत्र में आरक्षण की मांग उठी है,*

*लेकिन क्या अनुसूचित जाति और जनजाति के सांसदों और विधायकों के लिए यह कोई मुद्दा है?*

इसी तरह की एक मांग *उच्च न्यायपालिका में आरक्षण की भी है. ख़ासकर संसद की कड़िया मुंडा कमेटी की रिपोर्ट में न्यायपालिका में सवर्ण वर्चस्व की बात आने के बाद से यह मांग मज़बूत हुई है. लेकिन क्या अनुसूचित जाति और जनजाति के सांसदों ने कभी इस मुद्दे पर संसद में पुरज़ोर तरीक़े से मांग उठाई है?*

*120 से ज़्यादा एससी और एसटी सांसदों के लिए किसी मुद्दे पर संसद में हंगामा करना और दबाव पैदा करना मुश्किल नहीं है. इन सांसदों का एक ग्रुप भी है और जो अक्सर मिलते भी हैं लेकिन देश ने कभी इन सांसदों को अपने समुदायों के ज़रूरी मुद्दों पर आंदोलन छेड़ते नहीं देखा है.*

मूलनिवासी इतिहास

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