Thursday 9 February 2017

अन्धविश्वास के उपर व्यगय

नई नवेली दुल्हन जब
ससुराल में आई तो उसकी
सास बोली : बींदणी कल
माता के मन्दिर में
चलना है।

बहू ने पूछा : सासु माँ एक
तो ' माँ ' जिसने मुझ जन्म
दिया और एक ' आप ' हो
और कोन सी माँ है ?

सास बडी खुश हुई कि मेरी
बहू तो बहुत सीधी है ।

सास ने कहा - बेटा पास के मन्दिर में दुर्गा माता है
सब औरतें जायेंगी हम भी चलेंगे ।

सुबह होने पर दोनों एक साथ मन्दिर जाती है ।

आगे सास पीछे बहू ।

जैसे ही मन्दिर आया तो बहू ने मन्दिर में गाय की मूर्ति को देखकर
कहा : माँ जी देखो ये गाय का बछड़ा दूध पी रहा है ,
मैं बाल्टी लाती हूँ और दूध निकालते है ।

सास ने अपने सिर पर हाथ पीटा कि बहू तो " पागल "  है और

बोली :-  बेटा ये स्टेच्यू है और ये दूध नही दे सकती।

चलो आगे ।

मन्दिर में जैसे ही प्रवेश किया तो एक शेर की मूर्ति दिखाई दी ।
फिर बहू ने कहा - माँ आगे मत जाओ ये शेर खा जायेगा।


सास को चिंता हुई की मेरे बेटे का तो भाग्य फूट गया ।

और बोली - बेटा पत्थर का शेर कैसे खायेगा ?

चलो अंदर चलो मन्दिर में, और
सास बोली - बेटा ये माता है

 और इससे मांग लो , यह माता तुम्हारी मांग पूरी करेंगी ।

बहू ने कहा - माँ ये तो पत्थर की है ये क्या दे सकती है ? ,
जब पत्थर की गाय दूध नही दे
सकती ?
पत्थर का बछड़ा दूध पी नही सकता ?
पत्थर का शेर खा नही सकता ?
तो ये पत्थर की मूर्ति क्या दे सकती है ?

*"अगर कोई दे सकती है तो आप ......... है"*

*" आप मुझे आशीर्वाद दीजिये "*।

तभी सास की आँखे खुली !
वो बहू पढ़ी लिखी थी,

तार्किक थी, जागरूक थी ,
तर्क और विवेक के सहारे बहु ने सास को जाग्रत कर दिया !

अगर मानवता की प्राप्ति करनी है तो पहले असहायों , जरुरतमंदों, गरीबो की सेवा करो
परिवार, समाज में लोगो की मदद करे ।

*"अंधविश्वास और पाखण्ड को हटाना ही मानव सेवा है "* ।

*"बाकी मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, चर्च तो मानसिक गुलामी के केंद्र हैं"*

ना कि ईश्वर प्राप्ति के

........ *"मानव का सफर पत्थर से शुरु हुआ था। पत्थरों को ही महत्व देता है और आज पत्थर ही बन कर रह गया"*।--------

------------------------

1. चूहा अगर *पत्थर* का तो उसको पूजता है। (गणेश की सवारी मानकर)

लेकिन जीवित चूहा दिख जाये तो पिंजरा लगाता है और चूहा मार दवा खरीदता है।

2.सांप अगर *पत्थर* का तो उसको पूजता है। (शंकर का कंठहार मानकर)

लेकिन जीवित सांप दिख जाये तो लाठी लेकर मारता  है और जबतक मार न दे, चैन नही लेता।

3.बैल अगर *पत्थर* का तो उसको पूजता है। (शंकर की सवारी मानकर)

लेकिन जीवित बैल(सांड) दिख जाये तो उससे बचकर चलता है ।

4.कुत्ता अगर *पत्थर* का तो उसको पूजता है। (शनिदेव  की सवारी मानकर)

लेकिन जीवित कुत्ता दिख जाये तो 'भाग कुत्ते' कहकर अपमान करता है।

5. शेर अगर *पत्थर* का तो उसको पूजता है। (दुर्गा  की सवारी मानकर)

लेकिन जीवित शेर दिख जाये तो जान बचाकर भाग खड़ा होता है।

हे मानव!

*"पत्थर से इतना लगाव क्यों और जीवित से इतनी नफरत क्यो ???????????"*

Friday 3 February 2017

बसंत पंचमी के अवसर पर

बसंत पंचमी के अवसर पर

#कुछ_सवाल_है_जो_आपको_हमको_सभी_को_पूछने_चाहिए

1. सरस्वती ने कितनी और कौन सी किताबे लिखी?

2. सरस्वती का शिक्षा के क्षेत्र में योगदान क्या है?

3. सरस्वती ने कितने लोगो को कब और कैसे शिक्षित किया?

4. सरस्वती को ज्ञान (मतलब विद्द्या या जो भी आप समझते है) कहाँ से प्राप्त हुआ?

5. क्या ब्रह्मा को ज्ञान सरस्वती ने दिया?
अगर नहीं तो ब्रह्मा को ज्ञान कहाँ से मिला?
या सरस्वती से पहले ब्रह्मा के पास कोई ज्ञान नहीं था?

6. क्या गैर ब्राह्मणों को शिक्षा के अधिकार से सरस्वती ने वंचित किया? अगर नहीं तो फिर किसने किया?

7. क्या सरस्वती सिर्फ प्राइवेट स्कुल में ही शिक्षा बांटती है या सरकारी स्कूल भी सरस्वती के प्रभाव क्षेत्र में है?

8. जिन शिक्षण संस्थानों में सरस्वती की पूजा नहीं होती वहीँ से ही सबसे अधिक होनहार छात्र क्यों निकलते है?

9. सरस्वती अगर शिक्षा (विद्द्या) देती है तो आखिर किस तरह?

10. सरस्वती कौन कौन से क्षेत्र में शिक्षा देती है? (जैसे कि विज्ञान, संगीत, चिकित्सा या पुरातत्व आदि)।

11. सरस्वती शिक्षा (ज्ञान/ बुद्धि जो भी आप बेहतर समझे) क्या जाति, धर्म या रंग देखकर देती है?

12. आखिर सरस्वती और बाकियों को पुजवाने से फायदा किसको हुआ?

13. देवी सरस्वती एक महिला है तो महिलाओ को शिक्षा के अधिकार से क्यों वंचित रखा।सावित्री फुले ने महिलाओ को शिक्षा का अधिकार दिलाने के लिए समाज से क्यों लड़ना पड़ा।

14. देवी सरस्वती भगवान है तो सभी लोगो को शिक्षा का अधिकार क्यों नही मिला। शुद्र, आदिवासी और दलितों को शिक्षा से वंचित क्यों रखा गया। भगवान भी मानव में जाती पाती के आधार पर शिक्षा प्रदान करते थे।

(वेदों में सरस्वती के समकालीन और सरस्वती से पूर्व भी कई लोगो का जिक्र हुआ है। ये सभी लोग आपस में एक दूसरे को देव और देवी शब्द से संबोधित करते थे।
ऋग्वेद में यज्ञो में परोसी जाने वाली मदिरा का जिक्र है और यज्ञो के बाद पैदा होने वाले देवी देवताओ का जिक्र है। लोगो की हत्याओ के प्रयोजन के लिए होने का जिक्र
भी मिलेगा।)

सवाल आसान है। पर उम्मीद तो नहीं है कि किसी..... मनुवादी या मठाधीश (जो ज्ञान का ठेका सिर्फ अपने पास ही रखते थे या है) में इतनी बुद्धि होगी फिर भी
जवाब दे सके तो दे जरूर।

बाकी अभी तक सरस्वती ब्रह्मा के रिश्तों पर कोई सवाल नहीं किया है तो कृपया मनुवाद से ग्रसित लोग गाली ज्ञान का प्रदर्शन न ही करें। शांति पूर्वक विदा ले या जवाब दे।

मुझे ये लिखना पड़ रहा है क्योंकि सरस्वती को शिक्षण संस्थानों में जबरदस्ती थोपा जा रहा है। जो शिक्षण संस्थान सरस्वती के बारे में कुछ नहीं जानते बच्चों को गलत और अवैज्ञानिक बाते सीखा कर देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे है।

आज शिक्षा के नाम पर सब कुछ विदेशो से आयत किया ही पढ़ रहे है। आज तक एक भी डॉक्टर, इंजीनियर या वैज्ञानिक नहीं देखा सुना जिसने सिर्फ वेदों के अध्ययन से शिक्षा प्राप्त की हो। यहाँ तक कि खुदको कट्टर ब्राह्मण कहने मानने वालो तक के बच्चे भी अंग्रेजी स्कुलो में पढ़ रहे है।

विचार को सभी लोगो तक पहुंचाए ताकि अन्धविश्वास और ब्राह्मणवाद के काले बादल इस देश से हट जा

🌻 *धम्म प्रभात* 🌻




      त्रिपिटक  में उन सहस्त्रों अर्हत भिक्खुओं का उल्लेख आता हैं, जिन्होंने चित्त के सभी आस्रवों एवं विकारों का समूल नाश कर डाला । उनके लिए राग, द्वेष, वैर, मोह, क्रोध आदि चित्त मलों का कोई अर्थ नहीं रह गया । उनकी समस्त दूषित भावनाएं एवं विकार विनाश को प्राप्त हुए । उनमें से एक ऐसे अर्हत्व प्राप्त भिक्खु हैं  पूर्ण  ।

     पूर्ण का जन्म सुनापरांत ( वर्तमान नाला सोपारा,मुंबई, महाराष्ट्र) के  सुप्पारक नगर में  व्यपारी परिवार में हुआ था ।
     एक बार पूर्ण को श्रावस्ती में तथागत बुद्ध की देशना सुनने का अवसर मिला । बुद्ध के धम्मोपदेश सुनने से पूर्ण को गृहस्थ जीवन से वैराग्य हो गया और  प्रव्रज्या ले ली । प्रव्रज्या के उपरांत पूर्ण ने कुछ समय तक भगवान के पास रहकर धम्म का गहन ज्ञान प्राप्त किया और विपश्यना में पक गया ।
       तथागत के सानिध्य में वह प्रज्ञावान, शीलवान भिक्खु हो गया । सही अर्थ में वह पूर्ण हो गया । तब उसे अपनी जन्मभूमि की याद आई और मैत्रीपूर्ण चित्त से सोचने लगा --"क्यों तथागत का सद्धधम्म मेरे वतन में न बाँटु  ? *तथागत का धम्म सदैव कल्याणकारी हैं, सब के लिए हैं, मैं सुनापरांत जाऊँ और लोक कल्याण के लिए धम्म को बाँटु ।"*

       मन में कल्याण भावना लेकर पूर्ण तथागत के पास आया और अभिवादन कर वह एक ओर बैठ गया ।
पूर्ण ने कहा - " भन्ते भगवान ! आप मुझे आज्ञा दिजिये, मैं सुनापरांत जाकर भगवान का धम्म बाँटना चाहता हूँ ।"
भगवान ने कहा - पूर्ण  ! सुनापरांत के लोग चण्ड, कठोर भाषी होते हैं ।वे लोग तुम्हें गाली देंगे, मारेंगे -पीटेंगे, जान से भी मार डालें, तो तुझे कैसा लगेगा  ?"

पूर्ण के उत्तर सुनकर तथागत संतुष्ट हुए और पूर्ण को अनुमति दी ।

थेर पूर्ण की चेतना को नमन ।💐💐💐

नमो बुद्धाय👏👏👏

🌷 *सबका मंगल हो* 🌷

समय



मूलनिवासी इतिहास

sir Manohar barkade ji ki wall se मूलनिवासी इतिहास *ये है भारत का असली इतिहासl बाकि सब झूठ हैl* इस पोस्ट के अन्दर दबे हुए इतिहास के प...