Wednesday 9 November 2016

Bhim geet

बहुत  हो  चुकी  है  बर्बादी  l
सोच भुला दो अब मनुवादी ll
मंदिर और शिवालय छोड़ो l
विद्यालय  से  नाता  जोड़ो ll
संविधान को सब अपनाओ l
बाबा की धुनि मे धुनि लाओ ll

बाबा  ने उपहार  दिये  हैं l
जीने के अधिकार दिये हैं ll
नारी को सम्मान  दिया है l
भारत को संविधान दिया है ll
भाषण की आजादी दी है ।
आरक्षण  व खादी दी है ll
हम बाबा को भूल गये हैं l
अपने मद मे झूल गये हैं ll
भीम मिशन से मुख मोड़े हैं l
बाबा  के  सपने  तोड़े  हैं    ll
हम कितने खुद कामी निकले l
कितने नमक  हरामी निकले ll

बाबा ने थी जॉब दिलायी l
हमने  रामायण  पढ़वायी ll
अमरनाथ यात्रा कर आये l
घर में वामन खूब जिमाये ll
घूम के आये वैष्णों माता  l
घर पर करवाया जगराता ll
हर महीना गंगा पर जाते l
हर पूर्णिमा हवन  कराते ll
हाथ कलावा  बांधे फिरते l
लंम्बा तिलक लगाके चलते ll
सत्संगों मे लुटने जाते l
मंदिर में हैं धक्के खाते ll
ये अपनों को भूल गये हैं l
खुदगर्जी मे  झूल गये हैं ll

पाखंडो   से   नाता   तोड़ो  l
बौद्ध धम्म से खुद को जोड़ो ll
बच्चों को अच्छी शिक्षा दो l
उनको बौद्धधम्म दीक्षा दो ll
आधिकारों को लड़ना सीखो l
अब दुश्मन से भिड़ना सीखो ll
शेरों   से   दुनिया   डरती  है l
बकरों   पर   छूरी  चलती  है ll
अब   शेरों  साहस  दिखा दो l
अपना भी इतिहास  बना दो ll
भीम  मिशन साकार बना दो l
दिल्ली  में  सरकार  बना  दो ll

  क्रांतिकारीजय भीम जय भारत

☝🏻मंजिल वही सोच नई✊🏻

Thursday 27 October 2016

🌹🌹दिवाली और बुद्धिज़्म🌹🌹

🌹🌹दिवाली और बुद्धिज़्म🌹🌹


भारत के बौद्धों में हर वर्ष दिवाली अर्थात दीपावली को लेकर बड़ा ही संदेह निर्माण हुआ पाया जाता है.  कुछ लोग प्रचार कर रहे है कि दिवाली बौद्धों का त्योंहार है. उन्होंने  उसे बड़ा ही उमदा सा नाम दिया है -"दीपदानोत्सव".
मेरे अल्प अभ्यास में किसी बौद्ध साहित्य में इस तरह का नाम नहीं मिला. नाही मेरे अल्प अभ्यास से यह साबित हो पाया कि दिवाली यह बौध्दों का त्यौहार है. कुछ लोगों ने जोड़ जाड कर गलत संदर्भो के आधार पर दिवाली को बौद्धों पर थोपने का प्रयास किया है. मैंने जो अभ्यास किया उससे इस नतीजे पर पहुँचा हूँ कि बौद्धों ने दिवाली किसी भी स्वरुप में नहीं मनानी चाहिए.

.........   नीचे दिये विवरण से स्पष्ट होगा कि दिवाली का दावा पुर्णतः गलत और बेबुनियाद है -

(१) यदि दीपदानोत्सव का त्यौहार अशोक ने शुरू किया होता या बौद्ध परम्पराओं में अस्तित्व में होता तो वह भारत के बाहर बौद्ध देशों में जैसे श्रीलंका, चाइना, जापान, इंडोनेशिया आदि में आज भी पाया जाता, लेकिन ऐसा नहीं है. (परन्तु थाईलैंड में ब्राहमणों की घुसपैठ के कारण वहां कुछ गिने चुने विहारों में ही गणपति और लक्ष्मी की मूर्ति भी बनाई गयी है और दिवाली भी मनाई जाने लगी है). ..............  विशेष यह है कि उन देशों ने अशोक जयंती और सभी पूर्णिमा उत्सव मनाये जाने की सत्यता के साथ ही ऐसे किसी उत्सव को मनाये जाने को नकारा है. तथपि विजयादशमी और सारी पोर्णिमाये, अमावस्यये, अष्टमी, चतुर्थी सारे बौद्ध देशों में मनाए जाते है. और इन सारे तिथियों पर बड़ी संख्या में दिप जलाये जाते है. भारत के तिब्बतन बौद्ध विहारों में यह देखने को मिलेगा. अचरज तो तब होता है कि अशोक ने बौद्ध धर्म की सारी घटनाओं की तिथिओं का उल्लेख किया है लेकिन जिसने ८४००० हजार स्तूप सारी दुनिया में बनवाये, उसने उनपर दिए जलाने का आदेश भी दिया, वह अशोक उस दिन की तिथि का उल्लेख करना कैसे भूल गया. ऐसा हो ही नहीं सकता. ८४००० स्तूपों का निर्माण अशोक का सर्वाधिक महत्वपूर्ण सपना या उद्देश था. अगर उसने वहां पर किसी विशिष्ट दिन दिए जलाने का आदेश दिया होता तो उसने उसका उल्लेख किसी ना किसी शिलालेख में अवश्य करवाया होता. जैसे की सातवे स्तंभ के शिलालेख पर  हर पोर्णिमा, अमावस्या को पवित्र मानने के आदेश का उल्लेख है. पाकिस्तान में स्थित शाहबाज गढ़ी के स्तूप के शिलालेख पर धम्मविजय दिवस का उल्लेख है.

(२) दिपदानोत्सव के विषय पर जिन्होंने किताब लिखी है उन लेखकों से मैंने खुद बात करके अश्विन या कार्तिक अमावस्या को उत्सव मनाये जाने के सबूत माँगे, तब उनहोंने स्वीकार किया कि कही पर भी ऐसा उल्लेख नहीं है.

(३) मेरे पास अशोकवदान के दो संस्करण है, लेकिन उसमे भी कही पर भी अशोक ने अश्विन अथवा कार्तिक अमावस्या को ऐसे किसी उत्सव को मनाने की बात अंकित नहीं है .................  और यह सब जानते है कि अशोक ने अपने हर आदेश को शिलालेखों ने स्वरुप में लिख रखा है. ........... तब उसने इतने महत्वपूर्ण उत्सव की बात कैसे छोड़ दी.

(४) कई लोगों ने भावनावश दिवाली के मजबूत समर्थन में वाराणसी के एक बौद्ध विद्वान की पोस्ट सब जगह फॉरवर्ड की है.  ......... लेकिन सच तो यह है कि ऐसे डिग्रीहोल्डर लोग समाज को गुमराह करने के लिए अपनी प्रतिष्ठा का दुरुपयोग करते है.  ............. वाराणसी के विद्वान द्वारा दिए गए सभी उद्धरण झूठ और गलत है, केवल एक ही सच के कि, सम्राट अशोक ने ८४००० स्तूप बनवाये थे और वहाँ दीप प्रज्वलित करने का आदेश दिया था. उनके पोस्ट में वर्णित झूठ इस प्रकार है -

- राजा हर्षवर्धन लिखित 'नागानन्द' में कही पर भी दिपदानोत्सव आश्विन या कार्तिक अमावस्या को ऐसे किसी उत्सव को मनाये जाना का लिखा नहीं है.

- दीपवंश, महावंश में भी कही पर भी अश्विन या कार्तिक अमावस्या को दीपदानोत्सव (दिवाली) मनाये जाने का उल्लेख नहीं है.

- साथ ही उनके द्वारा वर्णित यह भी झूठ है कि भगवान् बुद्ध बुद्धत्व प्राप्ति के बाद पहली बार जब कपिलवस्तु आये थे वह दिन अश्विन अमावस्या का था ......... जब कि सामान्य से सामान्य बौद्ध उपासक भी जानता है कि भगवान् बुद्ध 'फाल्गुन पूर्णिमा' (होली वाला दिन) को पहली बार कपिलवस्तु आये थे.

(५) अतएव, .......  मै अपने सर्वप्रथम विचार का पुनः उल्लेख करना चाहूँगा कि अगर आप दीपदानोत्सव मनाना चाहते हो, तो जैसे कि इन सभी लेखकों ने स्पष्टरूप से लिखा है की अशोक ने स्तूपों पर दीप प्रज्वलित करने का आदेश दिया था (जिस तथ्य को मै भी स्वीकार करता हूँ) ............ उस तथ्य को मान कर हम लोगों ने अपने शहर गाँव के समीप के बुद्ध स्तूप, शिलालेख, अशोक कालीन प्राचीन विहार, अशोक स्तंभ या बौद्ध लेणी (बौद्ध गुफा) पर अश्विन अथवा कार्तिक अमावस्या को ५ दिन जाकर बुद्ध वंदना के साथ दीपप्रज्वलित या दीप-अर्पित करने चाहिए ........... (अपनी बस्ती या घर या बस्ती के विहार में दीपदानोत्सव ना करे).  कूछ लोगों ने  अपनी बस्ती में दिए हाथ में लेकर  जुलुस निकालना निकालना चालू किया है.

(६) दिवाली के दिन पंचशील ध्वज और दिए हाथ में लेकर जुलुस निकालने की प्रक्रिया बड़ी ही बचकानी प्रतीत होती है. देखने वाले हिन्दू लोग तो इन बौद्धों की इस हरकत पर मन ही मन हँसते होंगे और आपस में ऐसे बौद्धों की खिल्ली उड़ाते होगे. वे अवश्य सोचते होंगे ये दलित लोग या बौद्ध लोग आज तक फटाके फोड़कर दिवाली मनाते थे, लेकिन अब बौद्ध बन जाने के बाद अपने मन के दिवाली मनाने की इच्छा को दबाने के लिए (और साथ में भारत के महत्वपूर्ण त्यौहार का विरोध करने के लिए) ऐसे उटपटांग हाथ में ध्वज और दिए लेकर रास्ते पर चल रहे है.

    जुलुस निकालने की इस प्रक्रिया के बारे में विशेष् रूप से ध्यान देने योग्य बात यह है कि भले ही बौद्ध लोग जुलुस निकालकर ब्राह्मणी दिवाली का विरोध प्रदर्शन करने का प्रयत्न करते हो, मात्र वास्तव में इस प्रक्रिया द्वारा इस त्यौहार का विरोध ना होकर, दिवाली त्यौहार को समरस बनाने की प्रक्रिया है, जो बेहद घातक ही है. इसे समझना जरूरी है.

(७) सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि, कोई भी सामाजिक क्रांति प्रस्थापित व्यवस्था को विरोध की भावना या प्रक्रिया के द्वारा ही संपन्न होती है. ......... अर्थात कोई भी परिवर्तन समरसता या मिलावट के विचार या मिलावटी संस्कृति द्वारा संपन्न नहीं होता. ..............  इसलिए हमारे लोग यदि दिवाली को किसी अन्य तरीके से मनाने का प्रयास करे तो हिंदुओं द्वारा यह कहा जायेगा कि 'हम लक्ष्मी की पूजा करते है, तो उसके बजाय ये लोग बुद्ध की पूजा करते है'.  .................  और इसप्रकार से बाबासाहब को अपेक्षित किसी भी सामाजिक परिवर्तन की कल्पना नहीं की जा सकती. (बाबासाहब भी अगर चाहते तो सावरकर की बात मानकर हिन्दू धर्म में थोड़े बहुत सुधार मानकर हिन्दू धर्म को ही अपनाए रख सकते थे लेकिन उन्होंने हिन्दू धर्म को पूरी तरह से त्यागकर बौद्ध धर्म को अपनाया है).

(८) अभी हम लोगों ने होली के त्यौहार के विरोध में, अपने लोगों द्वारा नजदीकी प्राचीन स्तूप, लेणी, अशोक स्तंभ, शिलालेख, मूर्ति पर जाकर दिनभर धम्म संगोष्टी करना शुरू किया है. क्योंकि बौद्धों ने होली नहीं मनाना है. लेकिन हम अगर अपनी बस्ती या घर में रहे तो कोई ना कोई आकर रंग लगाकर जायेगा ही और इस तरह आप होली खेल ही लोगे. बच्चों को तो रोका ही नहीं जा सकता. वास्तव में होली के दिन फाल्गुन पोर्णिमा होती है. और बौद्ध धम्म की सबसे पवित्र और प्राचीन परंपरा के अनुसार हर पोर्णिमा को नजदीकी बुद्ध स्तूप, लेणी पर जाकर बुद्ध वंदना अर्पण करना बौद्धों का कर्तव्य है. इसलिए अब बौद्धों ने होली के दिन इस परंपरा को निभाकर होली नहीं खेलने का अपना कर्तव्य पूरा करना शुरू किया है.

(९) दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि कुछ हिन्दू कैलेन्डर में दिवाली 'कार्तिक अमावस्या' को दर्शाई जाती है तो कुछ हिन्दू कैलेन्डर में 'अश्विन अमावस्या' को. वास्तव में मध्य और दक्षिणी भारत में 'विक्रम संवत' के हिसाब से कैलेन्डर तयार किये जाते है तो उत्तरी भारत में 'शक संवत' के हिसाब से. इसलिए उत्तरी भारत के कैलेन्डर में दिवाली कार्तिक अमावस्या को दर्शाई जाती है तो दक्षिणी भारत के कैलेन्डर में वह अश्विन अमावस्या को. कुछ भाग में तो पूरा संभ्रम है. इतना ही नहीं तो दिवाली के अंत में एक देव दिवाली भी मनाई जाती है जो उत्तरी भारत के कैलेन्डर में कार्तिक माह के अंत में तो अन्य भाग विशेषत महाराष्ट्र कैलेन्डर में मार्गशीर्ष महीने के प्रतिपदा को मनाई जाती है. इसतरह विक्रम संवत और शक संवत में १३५ साल का अंतर है. शक संवत बौध्द शक राजा कनिष्क ने शुरू किया था तो विक्रम संवत वैदिक राजा विक्रमादित्य ने. इसतरह तिथियों में भी संभ्रम है और राम के वापस आने के दिन में भी. तो फिर कौनसी तिथि को हिन्दू अर्थात ब्राह्मणों के गुलाम पवित्र मानते है, यह वे खुद भी नहीं जानते ?

(१०) जैन धर्म में दिवाली का अलग महत्व है. इस दिन भगवान् महावीर का निर्वाण हुआ था. (इस बात पर ध्यान दें कि महावीर की मृत्यु को मात्र 'निर्वाण' कहा जाता है, जबकि बुद्ध के संबंध में उसे 'महापरिनिर्वाण' से संबोधित किया जाता है. यह एक अलग विषय है). वे इस दिन को पवित्र मानकर दिए जलाते है और अपने व्यवसाय का नया बहीखाता तयार करते है.

(१०) इस बात का मै पूर्ण समर्थन करता हूँ कि बौद्ध अर्थात मूल भारतीय उत्सवों का विकृतिकरण ब्राह्मणों ने किया था, लेकिन इसका यह मतलब नही होता कि उस त्यौहार का विरोध करने के लिए हम कोई विकृत नयी परम्परा शुरू करे. जैसे कि कुछ लोग दिवाली के दिन सफ़ेद कपड़े पहनकर, हाथ में पंचशील ध्वज और दिए लेकर, बुद्धं शरणं का घोष करते हुए रास्तों पर जुलुस निकालते है. कुछ लोग अपने घर के पास के विहार में जाकर वंदना या ध्यान विपस्सना करते है. वे तर्क देते है कि हमारे विहार भी तो लेणी ही है. अब इन्हें कौन समझाए कि भाई आपके पास अपने प्राचीन स्थलों को भेट देने का कोई प्रोग्राम है भी या नहीं. विहार में तो पुरे साल भर जाते ही रहते है. साल में एक या दो बार तो अपने प्राचीन स्थलों पर भी भेंट देना चाहिए या नहीं. वैसे भी "हर रविवार को बुद्ध विहार में जाकर बुद्ध वंदना करने के" बाबासाहब के अंतिम आदेश का पालन भी हमारे लोग कहाँ करते है. मुझे बड़ा ही आश्चर्य होता है बौद्धों के आलस और उदासीनता को देखकर.

खैर, दिवाली का हमें विरोध तो करना है, लेकिन इस बात का ध्यान रखना होगा कि हमारी क्रिया हास्यापद ना लगे. हमारा सुझाव यह है कि इस दिन या इन दिनों में छुट्टिया होती है. हम लोग इन दिनों में बुद्ध लेणी और स्तूप पर  यात्रा का आयोजन करे. वैसे भी हम दिवाली या दीपावली को लेकर सम्राट अशोक और बुद्ध स्तूपों को याद करते है, तो फिर क्यों ना हम प्रतिवर्ष भिन्न भिन्न जगहों पर स्थित बुद्ध स्तूपों और लेणियों को भेंट देकर वहां जाकर बुद्ध वंदना अर्पण करने की सबसे पवित्र परम्परा का निर्वाह करे. इस तरह हमारे बच्चों को भारत के वैभवशाली बौद्ध इतिहास का परिचय होगा और साथ ही बौद्ध धरोहरों का संगोपन भी. जैनों में जिसतरह से उनके प्राचीन स्थलों पर भेंट और पूजा पाठ का प्रयोजन होता है. उसीतरह से हम लोग भी दिवाली की छुट्टियों का उपयोग अपने प्राचीन बुद्ध स्तूपों को भेंट देने के लिए करे. भारत के हर राज्य में प्राचीन वैभवशाली बौद्ध स्तूप और लेणीयाँ है. इससे बौद्दों का बौद्ध स्थलों पर आवागमन बढेगा और बौद्ध लोगों का उन जगहों पर अस्तित्व भी. आवागमन यह एक आंदोलन (पेंडुलम के क्रियाशील रहने की प्रक्रिया) का भाग है. इस आवागमन के आंदोलन का ही उपयोग हिन्दू और जैन धर्म में बखूभी निभाया जाता है. हमें भी आवागमन के आंदोलन को समझना होगा.

साथ ही पढ़े-
(१) बौद्ध व्यक्ति की परिभाषा
(२) www.ashokajayanti.blogspot.in
(३) www.mahashivratri-buddhist-festival.blogspot.in

नमो बुद्धाय .... जयभीम

Hindu celebration of Diwali beliefs:

Hindu celebration of Diwali beliefs:

Hindu festival of Diwali why people believe ??
Guys, do not let any one of them in the north of the Hindus believe,

One day the god Vishnu, Indra the king of Hades sacrifice (King) had made public his Dew escaped unscathed. The mill of the gods Vishnu and Indra and the joy of Diwali is celebrated by burning them to survive in the happiness of heaven Singashn was launched shortly after the festival has become a celebration.

Second vote: -
The same day, the time of the churning sea of ​​latex Sea Goddess Laxmi and Lord Vishnu was born, which gladly accepted her husband came to celebrate Diwali.

Third vote: -
 Nrka initiated a non-Aryan name was king for about 16 thousand noble warriors was kept in his bus, including the Aryan women. But the community of Krishna Yddip malevolent and he was non-Aryan Aryan Nrka counterpoint to the liberation of women and the matriarch Sngrs by cheating spree that took netted in his Mohpash became celebrated Diwali.

And fourth, do not: -
.

What is the reality to friends: -

         

helps in the Vikshit.

 belong

Guys, this is Vaishyas more profit for them on the occasion of Diwali Diwali is an auspicious festival of the remaining people have what ??
Truly nothing !! What is their role in this festival Chaiye to what they said, especially those who only consider necessary to discharge any tradition
 "These are the people who come in which we called the BSP and you, who are the country's indigenous society"

Friends, in the sense it can be said Owl !! Yes ! This no doubt makes the Diwali the indigenous society owl.

  For clarification can minded "people who earn the most money Diwali ?? ?? whose possession the largest in the world trade market in large Dukkno indigenous community will have no means of finding shops all shops are in the sweet shop Vysya Wyparion dishes ranging from home textiles and jewelery shops all the stuff, but shopping habits of caste Aboriginal community is the largest group of BSP. Diwali shopping society arranges to buy some of the Diwali. and earned money is the name of Lakshmi, the goddess of wealth Lakshmi is said that people of wealth Lakshmi Hindu says, "Lakshmi", ie your "money".
So guys, see Lakshmi Diwali vehicle owl and our funds of funds or the BSP (Lakshmi) through BSP, be walking through that house of your ride goes owl thus sitting Vysya sitting Bahujan society on the occasion of Diwali derives earnings than us and who could be so described owl ??

  Guys, be fair to Lakshmi riding Otherwise what is the true meaning of these goddess of wealth Lakshmi riding like an owl got to ride ??

The goddess of wealth is worshiped on the scale of the country's economic situation even pity, the number of beggars in India are the same.
Folks, we all know that the owl is a bird that does not appear in the light, and the other ugly, too horrible not know how owls like Laxmi's ??

So folks, though, according to Hinduism, "Rama, Sita and Lakshman to his 14 years of exile were cut when the lamp in the happiness of the people of the city were decorated since the beginning of Diwali," according to a story on the same Hindu scriptures not fit sits on top of the upside-Pulte activities Hindus make her even more baseless.

but it is not here ..... reverse Lakshmi Ganesh is worshiped Hoti

 ... After all these things behind wrest Rhysy what ?????

  Diwali loses ... folks good morning to both gain and everything to lose in gambling but also to the auspicious Diwali will be made ??

Lakshmi earning gaming purpose but to think the thing to make money on the occasion of the Hindu festival tells Biklp gambling

 Tathagata Buddha's eightfold path Sikh ..... Oh ,,, they'd be earning the right to livelihood Tathagata Buddha is a very simple and clear manner described .. So guys, Diwali Lakshmi (Wealth Pitt Pitt pulls soup from home penniless they consider to be the abode of Lakshmi in the house of the poor work. ??

poverty is not ....

  So what Lakshmi Puja and banging soup led to improvements in the economic situation of the country ?? no !!.

If there is an improvement in the economic situation and the mere Vashyo auspicious Diwali is the same for those benefits only - is good.

  Guys, really the story of Ram on Deepawali name has been added, whereas no association with Ram Diwali and the Hindu Vedas texts ,,,,, unknown renowned scholar Ji Surendra writes about Diwali Valmiki Ramayana Rama's return to Ayodhya, which is described in it even once "Deep" has not used the word written there meets the "Ram Ayodhya had come during the day in his honor Ayodhyawasion sweet incense sprinkled on his route and showered flowers and lively - atmosphere initiative. (see -walmiki Ramayana, battle canto canto 127)



   Chet Moss falgun arrival time at Ayodhya and in Kartik's not proven (see -pandit green Shankar integrated "method festival ') in such far away from Ram Diwali remains no link ....

And also is the worship of Ganesh and Lakshmi
For Hindus, Diwali is just mere worship Lakshmi and Ganesha is the Hindu puzzle ...

got to get a vision for the Shudhdodn Buddha and Buddha summoned Warshawas approved after arrival. Warshawas after news of their arrival and when they leave, they got Shudhdodn Tathagata Buddha to receive light from Deepo his city began Diwali decorated and since then "

 

    ............ Bim- Jai Jai Ram is not an enlightened India, Namo Buddhay !!

दीपावली मनाने की हिन्दू मान्यताएं :

दीपावली मनाने की हिन्दू मान्यताएं :

हिन्दू लोग दीपावली का त्यौहार क्यों मानते हैं ??
दोस्तों, इसके उत्तर में इनका कोई एक मत नही है कुछ हिंदुओं का मानना है के,

एक दिन देवता विष्णु ने राजा बलि को पाताल लोक का इंद्र (राजा) बनाया था और उनका देव् लोक सुरक्षित  बच गया  था. तब विष्णु और इंद्र आदि देवताओं ने मिल के ख़ुशी के दिए जला कर दिवाली मनाई उनके स्वर्ग का सिंघाशन बचे रहने की ख़ुशी में शुरू किया गया यह उत्सव कुछ समय बाद त्यौहार बन गया .

दूसरा मत:-
इसी दिन समुद्र मंथन   के समय  क्षीर सागर   से लक्ष्मी जी पैदा हुई थी और भगवान् विष्णु को अपना पति स्वीकार किया जिसकी ख़ुशी में दिवाली मनाई जाने लगी.

तीसरा मत :-
 नरका  शुर नाम का एक अनार्य राजा था उसने लगभग 16 हजार आर्य योध्दाओं सहित आर्य स्त्रियों को अपने बस में कर रक्खा था . कृष्ण यद्दीप  अनार्य था परंतु वह कौम का द्रोही था और उसने आर्यों   की स्त्रियों की मुक्ति  हेतु  नरका सुर  से संघर्स  किया और सत्यभामा  को धोका  देकर  अपने मोहपाश  में फसा ले गए   जिसकी ख़ुशी में दिवाली मनाई जाने लगी.

और चौथा मत: -
ये ही इनका सबसे प्रचलित हैं की राम चंद्र जी 14 वर्ष का बनवास बिता कर लंका के महा राजा रावण की हत्या करके इसी दिन अयोध्या वापस आये उनके आने की ख़ुशी में स्वागत में अयोध्यावासियों ने दीप जला के नगर को सजाया तभी से दिवाली मनाई जाने लगी .

दोस्तों वास्तविकता क्या है जाने:-

           दिवाली हिंदुओं का बहोत खर्चीला त्यौहार है इस त्यौहार के बाद कुछ लोग तो मालामाल हो जाते हैं लेकिन अधिकतर लोग तंगी के शिकार भी हो जाते हैं    इस लिए हमें सावधान हो जाने की जरुरत है .

त्यौहार के नाम पे कई करोड़ रुपयों के बारूद आतिशबाजी के रूप में नष्ट कर दिए  जाते हैं यह किसी भी विकास शील देश के लिए समझदारी का काम नही हो सकता है,  यदि इन्ही रुपयों को राष्ट्रीय विकास के लिए खर्च किया जाता तो निशिचत रूप से देश के विकशित होने में मदद मिलती.

 पर दोस्तों, इन वैश्य (व्यपारियों) को देश के हित की किसी बात से क्या लेना देना है इनको तो अपने लिए अधिक से अधिक धन इकठ्ठा  करने से मतलब  है, इस  बात  से कोई विवाद नही के दिवाली का त्यौहार धन और वयापार से ही खास सम्बन्ध रखता है

दोस्तों, वैश्यों को अधिक लाभ दिवाली के अवसर पर होता है इस लिए उनके लिए दिवाली शुभ हो जाती है बाकि लोगो को इस त्यौहार से क्या मिलता है ??
सही मायने में कुछ नही !! तो इस त्यौहार में उनकी क्या भूमिका है उन्हें क्या  कहा  जाना चाइये खास कर उन लोगो को जो केवल किसी भी तरह परंपरा का निर्वाह करना आवश्यक मानते हैं  
 " ये वे ही लोग हैं जिन्हें कहा जाता है बहुजन समाज जिसमे आते हैं हम और आप , जो इस देश के मूलनिवासी समाज हैं "

दोस्तों , इस दृष्टि   से उसे उल्लू कहा जा सकता है !! जी हाँ ! इस में कोई संदेह नही के दिवाली के दिन यही मूलनिवासी समाज उल्लू बनता है .

  स्पष्टीकरण के लिए  बिचार कर सकते हैं की " दिवाली के दिन सबसे अधिक पैसा कौन लोग कमाते हैं ?? व्यपार जगत में सबसे बड़ा कब्ज़ा किसका है ?? बाजार की बड़ी बड़ी दुक्कनो में अपने मूलनिवासी समाज के लोगों की दुकाने ढूंढने से भी न मिलेंगी यानि के वे सभी दुकाने वैश्य   व्यपारियों की होती हैं मिठाई की दुकान से लेकर कपडा बर्तन घरेलू सभी सामान जेवर आदि की दुकाने सभी सवर्णो की हैं परंतु खरीदारी करने वाला सबसे बड़ा समूह बहुजन समाज  मूलनिवासी समाज करता  है.  दिवाली के दिन खरीदारी करने के लिए यह समाज व्यवस्था  करता  है  की दिवाली पर कुछ ख़रीद सके . और इसी कमाए गए धन का नाम है लक्ष्मी, लक्ष्मी को धन की देवी कहा जाता है , इसी से हिन्दू लोग धन को लक्ष्मी कहते हैं " लक्ष्मी " यानि की आपका "धन" .
तो दोस्तों , देखिये  लक्ष्मी का वाहन उल्लू है और दिवाली के दिन हमारा धन यानि बहुजन समाज का धन (लक्ष्मी)  बहुजन समाज  के माध्यम से अर्थात अपनी सवारी उल्लू के माध्यम से चलकर बनिए के घर चला जाता है इस प्रकार से वैश्य बैठे ही बैठे बहुजन समाज की कमाई दिवाली के अवसर पर प्राप्त  कर लेता है तो बताये उल्लू हमारे अलावा और कौन हो सकता है ??

  दोस्तों , सच कहें तो लक्ष्मी के सवारी का सही अर्थ भी ये ही है अन्यतः लक्ष्मी जैसी धन की देवी को सवारी सवारी करने के लिए एक उल्लू ही मिला ??

इस धन की देवी की इतने बड़े पैमाने पर पूजा की जाती है फिर भी इस देश की आर्थिक हालात पर तरस आता है , सबसे अधिक भिखारियों की संख्या भारत में ही हैं .
दोस्तों,  हम सभी जानते  हैं उल्लू  एक ऐसा पक्षी है जिसे उजाले में दिखाई नही पड़ता है और दूसरा भयानक  बदसूरत   भी लक्ष्मी जी को पता नही कैसे उल्लू पसन्द आ गया ??

तो दोस्तों, वैसे तो हिन्दू मत के अनुसार " राम, सीता और लक्ष्मण 14 वर्ष का बनवास काट कर जब  आये  तो उनके आने की ख़ुशी में नगर वासियों  ने दीप सजाया तब से दिवाली की शुरुवात हुई " पर कहानी उन्ही हिन्दू ग्रंथो के अनुसार फिट नही बैठती है ऊपर से इन हिंदुओं के उलटे-पुल्टे क्रिया-कलाप  उसे और भी आधारहीन बना देते हैं.

तो यदि यह मान भी लिया जाये की दिवाली अयोध्या से शुरू हुई तो उस दिन राम पूरे 14 वर्ष जंगल में बिताने के बाद अपने घर   आये   थे  तो अयोध्या वासियों    ने   राम   की पूजा    अर्चना    की  होगी और आज भी दिवाली पर राम की पूजा होनी    चाहिए   थी,  लेकिन ऐसा नही है यहाँ तो उलटे लक्ष्मी गणेश की पूजा होति है.....

 ...आखिर इन सब उलट पलट बातों के पीछे रहयस्य क्या है ?????

  अधिक से अधिक धन को प्राप्त करने की चाहत में व्यपार   के माध्यम से लोगो को ठगने तक  की बात समझ में आती है लेकिन एक त्यौहार के अवसर पर अधिक धन पाने के लिए जुए जैसा निकृष्ट कार्यक्रम भी चलता है और अधिकतर तो अपने पास की लक्ष्मी को गवां देते है ...दोस्तों शुभ-लाभ और सुबह दिवाली दोनों के लिए है लेकिन क्या जुए में सब कुछ हार जाने वाले के लिए भी दिवाली शुभ कही जाएगी ??

जुआ खेलने का उद्देश्य भी लक्ष्मी अर्जन करने से ही है किन्तु सोचने की बात यह है के हिन्दू धर्म में त्यौहार के अवसर पर धन कमाने का बिकल्प जुआ बताता है

 .....अरे,,, इन्हें  तथागत बुद्ध के आष्टांगिक मार्ग से सिख लेनी चाहिए ,सम्यक आजीविका कैसे कमाई जाये यह तथागत बुद्ध ने बड़े ही सरल और स्पष्ट ढंग से बताया है.. .तो दोस्तों, दीपावली के दिन लक्ष्मी (धन) की कामना करने वाले लक्ष्मी की पूजा करते हैं ..सभी लोगो को धन प्राप्त हो न हो  किन्तु व्यापारियों के यहाँ तो लक्ष्मी आ ही जाती हैं और जिनके पास लक्ष्मी नही आयीं वह यह मान के प्रसन्न होता है के उसके घर में भले ही धन नही आया किन्तु  रात में धन की देवी लक्ष्मी जरूर आयी होंगी जिस से उसका घर धन्य हो गया होगा और उसी  रात से सम्पन्नता का वास मान लेते हैं...और दोस्तों , गावँ व देहात में दिवाली की  रात के बाद भोर के अँधेरे में महिलाएं सुप पिट पिट कर घर से दरिद्र को बाहर निकलती हैं वे मानती हैं के घर में लक्ष्मी का वास हो गया तो दरिद्र का क्या काम .??

दोस्तों , गरीब घर की महिलाएं जो अपने  घर में दरिद्रता एक अनुभव करती हैं और अशिक्षा और धर्मान्धता  के करण दरिद्र के असली रूप को नही जान पाती हैं और प्रत्येक वर्ष घर की दरिद्रता को भागने के लिए अंधरे में सुप पिट पीटकर थक जाती हैं किन्तु उनकी दरिद्रता नही जाती है ....

  तो क्या ये लक्ष्मी पूजन और सुप पीटने से देश की आर्थिक स्थिति में कोई सुधर हुआ ?? नही !!.

यदि किसी के आर्थिक स्थिति में सुधर होता है तो मात्र वैश्यो का और उन्ही के लिए ये दिवाली शुभ है उन्ही को होने वाला लाभ - शुभ है .

  दोस्तों , वास्तव में दीपावली  के नाम पे राम नाम की कहानी जोड़ दी गयी है , जबकि राम का दिवाली के साथ कोई सम्बन्ध नही है,,,,,वेदों और हिन्दू ग्रंथो   के प्रसिद्ध   विद्वान सुरेंद्र अज्ञात जी दिवाली के बारे में लिखते हैं वाल्मीकि रामायण में राम के अयोध्या लौटने में जो वर्णन   किया गया है उसमे एक बार भी " दीप " शब्द का प्रयोग नही किया हुआ है वहां लिखा हुआ मिलता है के " राम दिन के समय अयोध्या आये थे उनके स्वागत में अयोध्यावासियों ने उनके रस्ते पे सुगन्धित द्रव्य बिखेरे और फूलों की वर्षा की  और चहल  - पहल का माहौल था .( देखें -वाल्मीकि रामायण ,युद्ध काण्ड सर्ग १२७)

और दूसरे पुरे  रामायण में भी राम के स्वागत में रात आयोजित   किये   गए   किसी भी समारोह  का कोई जिक्र  उपलब्ध नही होता इससे यह अस्पष्ट हो जाता है के राम का दिवाली कोई समंब्ध नही है.

   दोस्तों , एक बात   और देखते   हैं के राम अयोध्या कब   वापस  आये यानि के किस महीने में ,,,,भारतीय गणना   के अनुसार  दीपावली कार्तिक मॉस की अमावस्या के दिन होती है परंतु वाल्मीकि रामायण और पदम पुराण आदि ग्रंथो के अनुसार गणना करने पर राम के अयोध्या में आने का समय फाल्गुन व चैत मॉस सिद्ध  होता है न के कार्तिक में (देखें   -पंडित हरी शंकर कृत  ' त्यौहार पद्धति '  ) ऐसे में दिवाली का राम से दूर  दूर  तक  कोई सम्बन्ध नही रह  जाता है....

और साथ में गणेश और लक्ष्मी की पूजा भी की  जाती  है
हिंदुओं के लिए दीपावली मात्र लक्ष्मी और गणेश की पूजा मात्र है यही हिंदुओं की पहेली है ...

दोस्तों ,    किन्तु  दीपावली  का  दूसरा  पहलू  प्रकाश  अथवा  ज्ञान  से  है    कुछ बौद्ध बिचारको का मानना है की " जब सिद्धार्थ बुद्ध हो गए और लोगो  को  ज्ञान और उपदेश देने लगे तो लाखो की संख्या में लोग उनके धम्म में दीक्षित होने लगे और यह समाचार जब शुध्दोदन को मिला तो शुध्दोदन ने दर्शन पाने के लिए बुद्ध को बुलावा भेजा और बुद्ध ने वर्षावास के पश्चात आगमन की स्वीकृति दी . वर्षावास के बाद जब वे चले और उनके आने का समाचार जब   शुध्दोदन को मिला तो उन्होंने तथागत बुद्ध की अगवानी में दीपो के प्रकाश से अपने नगर को सजाया और तब से ही दिवाली शुरू हुई "

  इस सम्बन्ध में इतना ही कहा जा सकता है के हो सकता है के बुद्ध के कपिलवस्तु आने के अवसर पर उत्सव की ख़ुशी मनाई गयी......ख़ुशी के स्मरण में कई सालों तक वैसा ही जश्न मनाया हो किन्तु उसे त्यौहार के रूप में  विशाल भारत के सभी वर्ण के लोगो द्वारा स्वीकार करना मुश्किल लगता है  क्योंकि जो उच्च वर्णीय लोग हर पल तथागत बुद्ध की जड़ ही काटने पर लगे रहते हैं  वे लोग बुद्ध के कपिलवस्तु आने की ख़ुशी में अपने घर में दीपोत्सव क्यों मनाएंगे ???

    दोस्तों, तथागत बुद्ध से जुडी उपरोक्त घटना ने कपिलवस्तु के शाक्यों   के लिए एक यादगार दिवस का स्वरुप धारण अवश्य कर लिया होगा किन्तु यह घटना एक त्यौहार के रूप में स्थायी   रूप में स्थापित नही हो सकी लेकिन यह तो निश्चित हो चुका है के दीपावली का सम्बन्ध किसी राम से नही है............जय भीम- जय प्रबुद्ध भारत, नमो बुद्धाय!!
द्राैपदी पांच पतियों की पत्नी कैसे बनी?
जीवनमंत्र डेस्क | Apr 17, 2015, 07:26:00 AM IST
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द्राैपदी महाभारत की महत्वपूर्ण पात्र हैैं। यह
पांचाल नरेश राजा द्रुपद की पुत्री थी आैर यज्ञ की
वेदी से प्रकट हुई थी। इसी कारण इनके नाम द्राैपदी,
पांचाली के अलावा यज्ञसेनी भी हैं। द्राैपदी काे
धनुर्विद्या का श्रेष्ठतम प्रदर्शन कर अर्जुन ने स्वयंवर
में हासिल किया था, लेकिन उसे पांचों पांडवों की पत्नी
बनना पड़ा। कारण जब द्राैपदी को लेकर पांडव अपनी
माता के पास पहुंचे ताे काम मेंं व्यस्त कुंती ने कहा जो
लेकर आए हैं, उसे मिलकर बांट लें। इसी कारण द्राैपदी
जिसने अर्जुन का वरण किया था, सभी की पत्नी बनकर
रही।
महाभारत की एक कथा के अनुसार द्राैपदी ने पूर्व जन्म
में भगवान शिव से पति के लिए पांच बार याचना की
थी। उसने अपने पति में पांच गुण चाहे थेे। ये सभी गुण एक
व्यक्ति में संभव न होने के कारण उसे पाचं पतियों की
पत्नी बनने का आशीर्वाद मिला था। यहांं यह भी
महत्वपूर्ण है कि महाभारत के युग में यह परंपरा थी। न
केवल एक पुरुष एकाधिक स्त्रियों से विवाह कर सकता
था बल्कि एक स्त्री भी एक से अधिक विवाह करके समान
रूप से दांपत्य का निर्वहन कर सकती थी। द्राैपदी
महाभारत कथा के केंद्र में होने के कारण इस रूप में
चर्चित हो गई। अन्यथा उस काल के ऐसे अनेक उदाहरण
हैं।

बाबा साहब का दर्द--

बाबा साहब का दर्द--
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बाबासाहब अपने अन्तिम दिनोँ मेँ अकेले रोते हुऐ पाये गये।
बाबासाहेब अम्बेडकर को जब काका कालेलकर कमीशन 1953 मेँ मिलने के लिऐ गया, तब कमीशन का सवाल था कि, आपने सारी जिन्दगी पिछङे वर्ग के ऊत्थान के लिऐ लगा दी। आपकी राय मेँ ऊनके लिऐ क्या किया जाना चाहिए? बाबासाहब ने जवाब दिया कि, अगर पिछङे वर्ग का ऊत्थान करना है तो ईनके अन्दर बडे लोग पैदा करो।
काका कालेलकर यह बात समझ नहीँ पाये। ऊन्होने फिर सवाल किया " बङे लोगोँ से आपका क्या तात्पर्य है?" बाबासाहब ने जवाब दिया कि, अगर किसी समाज मेँ 10 डॉक्टर, 20 वकील और 30 ईन्जिनियर पैदा हो जाऐ, तो उस समाज की तरफ कोई आंख ऊठाकर भी देख नहीँ सकता।"
ईस वाकये के ठीक 3 वर्ष बाद 18 मार्च 1956 मेँ आगरा के रामलीला मैदान मेँ बोलते हुऐ बाबासाहेब ने कहा "मुझे पढे लिखे लोगोँ ने धोखा दिया। मैँ समझता था कि ये लोग पढ लिखकर अपने समाज का नेतृत्व करेगेँ, मगर मैँ देख रहा हुँ कि, मेरे आस-पास बाबुओँ की भीङ खङी हो रही हैँ, जो अपना ही पेट पालने मेँ लगी हैँ।"
यही नहीँ, बाबासाहब अपने अन्तिम दिनोँ मेँ अकेले रोते हुऐ पाये गये। जब वे सोने की कोशिश करते थे, तो उन्हें नीँद नहीँ आती थी।अत्यधिक परेशान रहते थे। परेशान होकर ऊनके स्टेनो नानकचंद रत्तु ने बाबासाहब से सवाल पुछा कि, आप ईतना परेशान क्योँ रहते है? ऊनका जवाब था, "नानकचंद, ये जो तुम दिल्ली देख रहो हो; ईस अकेली दिल्ली मेँ 10,000 कर्मचारी, अधिकारी यह केवल अनुसूचित जाति के है; जो कुछ साल पहले शून्य थे। मैँने अपनी जिन्दगी का सब कुछ दांव पर लगा दिया, अपने लोगोँ मेँ पढे लिखे लोग पैदा करने के लिए।क्योँकि, मैँ समझता था कि, मैँ अकेल पढकर ईतना काम कर सकता हुँ, अगर हमारे हजारो लोग पढ लिख जायेगेँ, तो ईस समाज मेँ कितना बङा परिवर्तन आयेगा। मगर नानकचंद, मैँ जब पुरे देश की तरफ निगाह डालता हुँ, तो मुझे कोई ऐसा नौजवान नजर नहीँ आता है, जो मेरे कारवाँ को आगे ले जा सके। नानकचंद, मेरा शरीर मेरा साथ नहीँ दे रहा हैँ। जब मैँ मेरे मिशन के बारे मेँ सोचता हुँ, तो मेरा सीना दर्द से फटने लगता है।"
जिस महापुरूष ने अपनी पुरी जिन्दगी, अपना परिवार, बच्चे आन्दोलन की भेँट चढा दिये; जिसने पुरी जिन्दगी यह विश्वास किया कि, पढा लिखा वर्ग ही अपने शोषित वंचित भाईयोँ को आजाद करवा सकता हैँ; लेकिन आज नौकरी करने वालो मे ज्यादातर लोगो कां ध्यान समाज के लोगो से हट गया है जिनको अपने लोगों को आजाद करवाने का मकसद अपना मकसद बनाना था।
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मेरे भाइयों अब तो जागो
मिशन से दूर मत भागो।।

Wednesday 26 October 2016

*दीपदानोत्सव :*

*दीपदानोत्सव :*
       
    सभी साथियों को जय भीम नमो बुद्धाय जय भारत

1. सही अर्थ में दीपावली को दीपदानोत्सव कहा जाता है ।

2. यह एक बौद्ध उत्सव है । चक्रवर्ती सम्राट अशोक द्वारा दीपदानोत्सव प्रारंभ किया गया था l

3. इसकी शुरुवात प्रसिद्द बौद्ध सम्राट अशोक ने 258 ईसा पूर्व में की थी ।

4. महामानव बुद्ध अपने जीवन में चौरासी हज़ार गाथाएं कहे थे ।

5. अशोक महान ने चौरासी हज़ार बुद्ध बचन के प्रतिक के रूप में चौरासी हज़ार विहार, स्तूप और चैत्यों का निर्माण करवाया था । पाटलिपुत्र का अशोकाराम उन्होंने स्वयं के निर्देशन में बनवाया था ।

6. सभी निर्माण पूर्ण हो जाने के बाद अशोक महान ने कार्तिक अमावश्या को एक भब्य उद्घाटन महोत्सव का आयोजन किया । इस महोत्सव के दिन सारे नगर, द्वार, महल तथा विहारों एवं स्तूपों को दीप माला एवं पुष्प माला से अलंकृत किया गया तथा सम्राज्य के सारे वासी इसे एक त्यौहार के रूप में हर्सोल्लास के साथ मनाये ।

7. प्रत्येक घरों में स्तूप के मोडल के रूप में आँगन अथवा द्वार पर स्तूप बनाया गया जिसे आज किला, घर कुंडा अथवा घरौंदा कहा जाता है ।

8. इस दिन उपसोथ (भिक्खुओं के सानिध्य में घर अथवा विहार में धम्म कथा सुनना) किया गया, बुद्ध वंदना किया गया तथा भिक्खुओं को कल्याणार्थ दान दिए गए ।

9. इस बौद्ध पर्व को दिप्दानोत्सव कहा गया । इसी दिन से प्रत्येक वर्ष यह त्यौहार मनाये जाने की परंपरा शुरु हुई ।

10. कार्तिक माह वर्षा ऋतू समाप्ति के बाद आता है । इस माह में बरसात के दौरान घर -मोहल्ला में जमा गंदगी, गलियों के कचरे के ढेर, तथा घरों के दीवारों और छतों पर ज़मी फफूंदी, दीवारों पर पानी के रिसाव के कारन बने बदरंग दाग-धब्बे आदि की साफ -सफाई की जाती है । रंग -रोगन किये जाते हैं । इसके बाद एक नई ताजगी का अनुभव होता है । यही कारण है कि अशोक महान ने सभी निर्माणों के उद्घाटन के लिए यह माह चुना था ।

11. कृष्ण पक्ष की अमावश्या की रात्रि घनघोर कालिमा समेटे होती है । यह ब्राह्मणवादी अज्ञान और अन्धकारयुक्त युग का प्रतिक है । इसी दिन स्तूपों विहारों का उद्घाटन कर नगर में दीप जला कर उजाला किया गया । दीपक की लौ प्रकाश ज्ञान और खुशहाली का प्रतिक है । इस प्रकार कार्तिक कृष्ण पक्ष अमावश्य को बुद्ध देशना के प्रेरणा स्रोत नव निर्मित विहारों, स्तूपों का दिप्दानोत्सव के साथ उदघाटन कर अशोक महान ने ब्राह्मणी युग रूपी अंधकार का पलायन और समतामूलक नए युग के आगमन का पुरे जम्बुद्वीप में दुदुम्भी बजा कर स्वागत का सन्देश दिया था ।

12. दिप्दानोत्सव दिवस के दूसरे अथवा तीसरे दिन गोबर्धन पूजा होता है जिसका सम्बन्ध असुर नायक कृष्ण से है । ऋग्वेद में काला असुर कृष्ण और इंद्र के बिच संघर्ष का वर्णन आया है । कृष्ण को देवदमन भी कहते हैं । अतः दीपावली का सम्बन्ध राम से नहीं मूलनिवासी असुर नायक कृष्ण से हैं ।

13. गोबर्धन पूजा के एक दिन बाद बैल पूजा (गाय डाढ) होता है । यह सिन्धु घाटी सभ्यता के समय के सांड पूजा की परंपरा की मज़बूत कड़ी है ।

14. लेकीन मौर्य साम्राज्य के पतन और ब्राह्मण राज के आगमन के बाद दिप्दानोत्सव दिवस का ब्राह्मणी करण कर दिया गया ।

15. बुद्ध पूजा के स्थान पर लक्ष्मी-गणेश पूजा शुरू हो गया । दान के स्थान पर जुंआ प्रारंभ हो गया । शांति की जगह अशांति के प्रतिक पठाखे छूटने लगे । ब्राह्मण-बनिया के गठजोड़ से धनतेरस के नाम पर भोले-भाले लोगों को लूटने की परंपरा बहाल कर दी गई ।

16 बुद्ध के चौरासी हज़ार देशना को चौरासी लाख योनी का नाम दे दिया गया ।

17. इस प्रकार धम्म बंधुओं ! दिप्दानोत्सव का पवित्र बौध पर्व ब्राह्मणी पर्व दीपावली में बदल गया और इसका सम्बन्ध राम -सीता से जोड़ दिया गया ।

*एक नागवंशी विनम्र अपील है सभी से*

18. इस पर्व के गौरव को लौटाने के लिए हमें इसे प्राचीन श्रमण संस्कृति के अनुसार मानना होगा ।

19. गुरु वंदना, सतनाम सत्संग धम्म वंदना, संघ वंदना, पंचशील का घर पर, विहार में सामूहिक पाठ करें ।

20- प्रतिज्ञाओं का पाठ करें । गरीबों, भिक्खुओं को दान दें । साफ श्वेत कपडा पहनें, मीठा भोजन करें, करवाएं, घरों पर सतनाम या पंचशील ध्वज लगायें ।

21-'पठाखा न छोडें, जुआ ना खेलें और मांस मदिरा का सेवन न करे  ।
              जय मूलनिवासी
                🙏भवतु सब्ब मंगलम 🙏

मनुवाद पर, 🐅 अम्बेडकरवाद का वार पे वार.......

मनुवाद पर, 🐅 अम्बेडकरवाद का वार पे वार.......
"अक्ल के अंधे"
"मनुवादी"*********
🔻...जिस धर्म में पिता अपनी पुत्री से बलत्कार करे, बाद में उसे रखैल बनाएे, फीर भी "भगवान ब्रम्हा" कहलाये !
🔻... जिस धर्म में जो कोई अपनी स्त्री को जुआ में दॉव पर लगा कर हार जाये, वो फिर भी "धर्मराज" कहलाये !
🔻...जिस धर्म में बेटा अपनी निर्दोष माँ को फ़र्सा से हत्या कर दे वो तुच्छ "भगवान" का अवतार और परशुराम कहलाये|
🔻....जिस धर्म में एक हीं माता - पिता से जन्में संतान पुत्र "सवर्ण"और पुत्री "शुद्र" हो जाए, माता, बहन, पुत्री, पत्नी शुद्र और ताड़न की अधिकारी हो जाये !! फिर भी ऐसा पाखंडी धर्म का पाखंड उसके दुष्ट अनुयायियों को समझ में न आये!
🔻...जिस धर्म में मलभक्षी सुअर को भगवान का अवतार कहा जाये, किन्तु एक "मानव" ("शुद्र") को उस सूअर से भी "नीच" समझा जाये ! फिर भी ऐसा पाखंडी धर्म का पाखंड उसके दुष्ट अनुयायियों को समझ में न आये !
🔻...जिस धर्म में इंसान की बनायी हुई मुर्ति पर कुत्ता सुअर और चूहे अपना मल- मूत्र विसर्जन करते रहे, फिर भी वो पवित्र रहे | और यदि उसी मंदिर मे एक शूद्र दलित चला जाये तो मंदिर और भगवान दोनो अपवित्र हो जाये ! अर्थात जिस मंदिर की मूर्ति पर कुत्ते टांग उठा कर अपने मुत्र के द्वारा मूत्राभिषेक कर दे, फिर भी वह पत्थर की मुर्ति पवित्र है, किंतु शुद्र मानव की मात्रछाया से ये मेरुपर्वत व नित्यानंद के असंवैधानिक संतान, विदेशी आर्य ,मनुवादी, ब्रहमणवादी व देशद्रोही अशुद्ध एवं अपवित्र हो जांय ! और पवित्र होने के लिये गाय का मुत्र पीयें ! फिर भी ऐसा पाखंडी धर्म का पाखंड उसके दुष्टअनुयायियों को समझ में न आये !
🔻... जिस धर्म में एक बंदर तथाकथित भगवान होकर पृथ्वी पर रहते हुए भी उससे कई गुना बड़ा 'सूर्य' को कोई फ़ल समझते हुये निगलने या खाने को सोचे और वह बंदर भगवान हनुमान कहाये ! फिर भी ऐसा पाखंडी धर्म का पाखंड उसके अज्ञानी एवं मानसिक गुलाम अनुयायियों को समझ में न आये !
🔻...जिस धर्म में दो भगवान विष्णु और शंकर सम्लैंगिक संभोग करने लगे और तीसरा बेटी को भी ना छोड़े फीर भी वो भगवान त्रिदेव कहलाएे ! थु है ऐसे धर्म पर, शर्म करो मनुवादीयों......
🐗🐗🐗🐗🐗🐗🐗
वर्ण-व्यवस्था का भंडाफोड
चलो
चारो वर्ण का
पोस्टमोर्टम करे
🔵 ब्राह्मण  🔵
🐗 ब्राह्मण शब्द को तोड़कर देखें तो
बराह+मन=ब्राह्मण
बराह का मतलब सूअर होता है ( विष्णु ने दश अवतार धारण किया उसमें एक अवतार बराह का था ) यानि कि सूअर की तरह गंदगी से लथपथ और गंदगी का सेवन करने बाला मन मतलब जिसके दिमाग में सिर्फ गंदगी भरी पडी है...वो है ब्राह्मण )
🔵 क्षत्रिय  🔵
🐕 छाती+तिरिया=क्षत्रिय
छाती का मतलब वक्ष-स्थल
और तिरिया का मतलब स्त्री यानि की पराई बहु-बेटियो के सीने की सुंदरता पर मुग्ध होकर उनकी अस्मत लूट लेने बाला
( मतलब बहन बेटीयाँ की ईज्जत पे डाका डालने वाला )
🔵 वैश्य  🔵
वैश्य का मतलब
देह-व्यापारी....
ये सदियों पहले खुद कि बेहन बेटीयों की हीं देह-व्यापार करते थे....
फिर गुलामों का व्यापार किया और आज अपने ईमान का व्यापार कर रहे हैं
( मतलब जिसका कोई ईमान नही.... )
🔵 शूद्र  🔵
🐅 जब शूद्र शब्द को तोड़कर देखते हेैं तो हमारा गौरवशाली इतिहास हमारी आँखों के सामने
"दूध का दूध और
पानी का पानी" की तरह शुद्ध रूप में दिखाई देने लगता है।
शू=शूरवीर
द्र=द्रविड़
यानि शूरवीर द्रविड़
मतलब भारत देश के शांतिप्रिय जीवन व्यतीत करने बाले
दया के सागर
अन्याय के खिलाफ आर्यों से 1500 वर्षों तक वीरता के साथ लड़कर वीरगति को प्राप्त होने वाले उस वंश के संतान हेैं हम मुझे गर्व है कि हम हीं इस देश के मूलनिवासी है

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उत्सवों का अब्राम्हणीकरण जरूरी है....

उत्सवों का अब्राम्हणीकरण जरूरी है....

हिंदुत्व की व्याख्या करने से सुप्रिम कोर्ट ने मना किया. मा. वामन मेश्राम साहब ने पुना मे सभा लेकर आरएसएस के मोहन भागवत से यह सवाल पुछा था कि क्या एससी एसटी ओबीसी हिंदू है? साबीत कर के बताओ. ईस सभा के एक महीने के ही भीतर मोहन भागवत ने सभा लेकर कहा कि, हम सांस्कृतिक दृष्टी से हिंदू है.

 ईसका मतलब यह हूवा कि धार्मिक दृष्टी से हिंदू नही है. तो फिर एक सवाल उठता है की, क्या ब्राम्हणी संस्कृती और भारतीय संस्कृती एक है? तो ईसका जवाब है "नही". क्योंकी ब्राह्मणों की ब्राह्मण संस्कृती है, और हमारी श्रमण संस्कृती है. वो विदेशी अल्पजन है, और हम मुलनिवासी बहुजन. तो हम दोनो की संस्कृती एक कैसे हो सकती है?

मतलब हम सांस्कृतिक दृष्टी से भी हिंदू नही है. अगर ब्राह्मण और हम अलग अलग है, तो हमारे उत्सव ब्राह्मणी उत्सव कैसे हो सकते है?

भारतीय लोग उत्सवप्रिय है, उनपर उत्सवो का काफी प्रभाव है, यह देखकर विदेशी ब्राह्मणो ने हमारे उत्सवों का ब्राह्मणीकरण किया, जिससे हमारा ब्राह्मणीकरण हुआ और हम ब्राह्मणो के गुलाम हुए.

अर्थात, खुद को भारत का सत्ताधीश बनाने के लिए ब्राह्मणो ने हमारे उत्सवो का ब्राह्मणीकरण किया है.

उन्होने उत्सवो का ब्राह्मणीकरण कैसे किया? इसके लिए ब्राह्मणो ने झुठी कथाएं पुराणों के रूप में लिखी और उन कथाओं को हमारे उत्सवों के साथ जोड दिया और इन काल्पनिक कथाओं का जनमानस में जोर शोर से प्रचार प्रसार किया, जिससे हमारे उत्सवों का पहले ब्राह्मणीकरण हुआ और फिर हमारा हुआ.

ब्राह्मणीकरण करने के लिये ब्राह्मणों ने हमारे उत्सवों के नाम भी बदल दिये. विजयादशमी को दशहरा, दिवाली को बलीप्रतिपदा बना दिया.

अर्थात, ब्राह्मणीकरण की प्रक्रिया ही ब्राह्मणों के वर्चस्व का और हमारी गुलामी का मुख्य कारण है. इसलिए, अगर हम व्यवस्था परिवर्तन करना चाहते है, तो हमें हमारे उत्सवों का, परंपराओं का और संपूर्ण संस्कृती का अब्राम्हणीकरण करना होगा. सिर्फ कोरा विरोध करने से कुछ हासील नहीं होगा. इसलिए, वास्तविक इतिहास और तथ्यों को सामने लाने में ही भलाई है.

ब्राह्मण विदेश से है और उनका सिर्फ एक ही उत्सव था- यज्ञ. अगर यज्ञ के बगैर ब्राह्मणों का प्राचीन काल में कोई भी दुसरा उत्सव नहीं था, तो अभी वर्तमान में बाकी उत्सव उनके कैसे हो सकते है??

- डॉ प्रताप चाटसे

सफल जीवन का राज

एक औरत ने तीन संतों को अपने घर के सामने
देखा। वह उन्हें जानती नहीं थी।

औरत ने कहा –
“कृपया भीतर आइये और भोजन करिए।”

संत बोले – “क्या तुम्हारे पति घर पर हैं?”

औरत – “नहीं, वे अभी बाहर गए हैं।”

संत –“हम तभी भीतर आयेंगे जब वह घर पर
हों।”

शाम को उस औरत का पति घर आया और
औरत ने उसे यह सब बताया।

पति – “जाओ और उनसे कहो कि मैं घर
आ गया हूँ और उनको आदर सहित बुलाओ।”

औरत बाहर गई और उनको भीतर आने के
लिए कहा।

संत बोले – “हम सब किसी भी घर में एक साथ
नहीं जाते।”

“पर क्यों?” – औरत ने पूछा।

उनमें से एक संत ने कहा – “मेरा नाम धन है”

फ़िर दूसरे संतों की ओर इशारा कर के कहा –
“इन दोनों के नाम सफलता और प्रेम हैं।

हममें से कोई एक ही भीतर आ सकता है।

आप घर के अन्य सदस्यों से मिलकर तय कर
लें कि भीतर किसे निमंत्रित करना है।”

औरत ने भीतर जाकर अपने पति को यह सब
बताया।

उसका पति बहुत प्रसन्न हो गया और

बोला –“यदि ऐसा है तो हमें धन को आमंत्रित
करना चाहिए।
हमारा घर खुशियों से भर जाएगा।”

पत्नी – “मुझे लगता है कि हमें सफलता को
आमंत्रित करना चाहिए।”

उनकी बेटी दूसरे कमरे से यह सब सुन रही थी।
वह उनके पास आई और बोली –
“मुझे लगता है कि हमें प्रेम को आमंत्रित करना
चाहिए। प्रेम से बढ़कर कुछ भी नहीं हैं।”

“तुम ठीक कहती हो, हमें प्रेम
को ही बुलाना चाहिए” – उसके माता-पिता ने
कहा।

औरत घर के बाहर गई और उसने संतों से पूछा –
“आप में से जिनका नाम प्रेम है वे कृपया घर में
प्रवेश कर भोजन गृहण करें।”

प्रेम घर की ओर बढ़ चले।

बाकी के दो संत भी उनके
पीछे चलने लगे।

औरत ने आश्चर्य से उन दोनों से पूछा –
“मैंने
तो सिर्फ़ प्रेम को आमंत्रित किया था। आप लोग
भीतर क्यों जा रहे हैं?”

उनमें से एक ने कहा – “यदि आपने धन और
सफलता में से किसी एक को आमंत्रित किया होता
तो केवल वही भीतर जाता।

आपने प्रेम को आमंत्रित किया है।

प्रेम कभी अकेला नहीं जाता।
प्रेम जहाँ-जहाँ जाता है, धन और सफलता
उसके पीछे जाते हैं।

इस कहानी को एक बार, 2 बार, 3 बार
पढ़ें ........

अच्छा लगे तो प्रेम के साथ रहें, 💖💖

प्रेम बाटें, प्रेम दें और प्रेम लें

क्यों कि प्रेम ही
सफल जीवन का राज है। :)
...
नोट : लेख अगर अच्छा लगा हो तो शेयर जरूर करे 👌☝🍃

*कृष्ण का इतिहास: तथा दिपावली में कृष्ण का महत्व।*

*कृष्ण का इतिहास: तथा दिपावली में कृष्ण का महत्व।*

 कहा जाता है कि कृष्ण ने एक मूल निवासी राजा नरकासुर को ठीक इसी दिन मारा था। और इस दिन को दीपावली के रूप में मनाया जाना शुरू किया गया था। कहा जाता है नरकासुर ने 16000 औरतों को बंदी बनाया था और नरकासुर भी यज्ञों के परम विरोधी था। वो विदेशी आर्यों से नफरत करता था। यहाँ पर सोचने कि बात है जो नरकासुर यज्ञ जैसे कृत्यों का विरोधी था वो 16000 औरतों को कैसे बंदी बना सकता था? असल में कृष्ण ने नरकासुर को धोखे से मारा था। जिस के लिए कृष्ण ने नरकासुर के महल में प्रवेश किया उसकी रानी से नरकासुर की मृत्यु का राज जाना और धोखे से नरकासुर का वध कर दिया। बाद में अपनी हवस को पूरा करने के लिए नरकासुर के राज्य से मूल निवासियों की पत्नियों, बेटियों और बहुओं को उठा कर अपने साथ ले गया था। जिसको बाद में ब्राह्मणों ने कृष्ण को भगवान् साबित करने के लिए 16000 औरतों को मुक्त करना बताया। यहाँ पर भी मूल निवासी राजा की मृत्यु को ही दीपावली कह कर मनाया गया। मूल निवासी लोग इस बात का सच ना जान ले इसलिए काल्पनिक कहानियां बनाई गई

🙏🙏जय भीम नमो बुद्धाय🙏🙏
*जागो और जगाओ अंधविश्वास पाखंडवाद भगाओ समाज को जागरुक करें शिक्षित करो संगठित करो*

*लक्ष्मी का इतिहास: तथा दिपावली में लक्ष्मी का महत्व*

*लक्ष्मी का इतिहास: तथा दिपावली में लक्ष्मी का महत्व*


दीपावली के दिन कहा जाता है कि धन कि देवी लक्ष्मी लोगों के घरों में आती है। इस लिए लोगों को अपने घरों में दीपक जलने चाहिए। ये बात भी तर्क संगत नहीं मानी जा सकती क्योकि लक्ष्मी का वाहन उल्लू है जिसको उजाले में कुछ भी दिखाई नहीं देता। तो लक्ष्मी का उल्लू उज्जाले में कैसे उड़ कर घर में आ सकता है? लक्ष्मी के बारे जानकारी मिलती है कि लक्ष्मी समुद्र मंथन से पैदा हुई थी वो भी जवानी में। उसका बचपन कैसे बिता? बचपन में कहा रही? ये बात किसी को पता नहीं है लेकिन ये बात सभी को पता है कि लक्ष्मी ने कई अवतार लिए जैसे सीता, रुक्मणी आदि। अगर वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाये तो ये असंभव सी बात है। कोई भी इंसान इतने सारे अवतार कैसे ले सकता है? असल में लक्ष्मी के बदचलन और आवारा औरत थी, जिसके साथ विष्णु ने विवाह किया और उसके शारीरिक सम्बन्ध बहुत से आर्यों के साथ थे। जिनको कालांतर में ब्राह्मणों ने देवता घोषित कर दिया, लक्ष्मी भेष बदल बदल कर सभी आर्यों कि हवस को पूरा करती थी। उसी को बाद में अवतार कह कर प्रचारित किया गया।

ऊपर लिखित सभी घटनाओं से सिद्ध होता है कि जब जब विदेशी आर्यों ने मूल निवासी नागों के राजाओं पर विजय प्राप्त की तब तब दीपावली बनाई गई। और भारत के सारे मूल निवासी बिना सच जाने विदेशी युरेशियनों की विजय को आज भी पुरे हर्षो उल्लास से मानते है। अब सारे मूल निवासी सोचो क्या दीपावली जैसे त्यौहार हम मूल निवासियों को बनाने चाहिये? क्या हमे हमारे पतन के कारणों का जश्न बनाने का अधिकार है? क्यों ना हम सब मिल कर इन मूल निवासियों पर युरेशियनों की विजय के त्योहारों को बनाना बंद कर दे? हमारी पूरी टीम के लोगों का तो यह मत है कि ऐसे त्योहारों का बहिष्कार होना चाहिए।
🙏🙏जय भीम नमो बुद्धाय🙏🙏
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*राम का इतिहास तथा दिपावली में महत्व*

*राम का इतिहास तथा दिपावली में महत्व*

राम जब रावण नाम के मूल निवासियों के हितैषी राजा का वध कर के वापिस अयोध्या पहुंचा था तब अयोध्या यूरेशियन आर्यों ने रात्रि में दीपक जलाकर मूल निवासियों के हितैषी राजा रावन की मृत्यु का जश्न बनाया था। राम कितनी मर्यादा का पालन करता था ये बात आप लोगों को सची रामायण पढ़ कर पता चल जाएगी। अब आप लोग बोलोगे कि हम सची रामायण को क्यों माने? तो आप लोगों की जानकारी के लिए बता दें, सच्ची रामायण नामक पुस्तक को सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ इंडिया ने मान्यता दी है। जब सुप्रीम कोर्ट सच्ची रामायण को मान्यता दे सकता है तो मूल निवासी सच्ची रामायण को क्यों मान्यता नहीं देते। रामायण के अनुसार राम का जन्म एक यज्ञ के कारण हुआ था। जिसको पुत्रेष्टि यज्ञ कहा गया है, वैदिक काल में यज्ञ का मतलब होता था भोग विलास और सोमरस पान। उस समय के यज्ञ को आप आज की “फुल मून पार्टी” कह सकते हो। जहा पर नशा और सम्भोग का खुला नंगा नाच होता था। उसे यज्ञ कहा जाता था। दशरथ ने भी ऐसे ही एक यज्ञ का आयोजन किया, पुरे भारत से बहुत से ब्राह्मणों को बुलाया गया। दशरथ ने सभी ब्राह्मणों में से तीन ब्राह्मण चुने और अपनी तीनों रानियों को उन ब्राह्मणों को सम्भोग कर के बच्चे अपीडा करने के लिए दिया। दशरथ खुद 60 साल का बुढा था और बच्चे पैदा करने कि क्षमता खो चूका था। इस प्रकार कई दिनों तक उन ब्राह्मणों ने यज्ञ के नाम पर कौशल्या, सुमित्रा और कैकई के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाये और इसके परिणाम स्वरूप राम, लक्ष्मण, शत्रुघ्न और भरत पैदा हुए। रामायण को अगर ध्यान से पढ़ा जाये तो पता चलता है कि राम एक बहुत ही नीच आदमी था। राम अपने बाकि भाइयों से बहुत नफरत और इर्ष्या करता था। राम ने अपने पिता दशरथ के साथ मिल कर भरत को जानबूझ कर उसके नाना के घर भेज दिया था। ताकि राम खुद अयोध्या का राजा बन सके। कैकई जो की एक सच्ची और ईमानदार औरत थी उसको रामायण में बहुत ही नीच औरत बताया गया है। आखिर अपना हक मांगना कौन सी नीचता है? दशरथ ने वचन दिया था कि कैकई कि संतान को राजा बनाएगा। परन्तु दशरथ अपना वचन पूरा नहीं करना चाहता था। अयोध्या काण्ड में इस बात का प्रमाण मौजूद है। राम के मन की स्थिति का भी यहाँ से पता चलता है कि राम भी राजा बनाना चाहता था। इस लिए वो दशरथ का विरोध नहीं करता है। दूसरी तरफ सीता की बात की जाये, तो सीता भी कोई अच्छे चरित्र कि नारी नहीं थी। सीता जमीन से पैदा नहीं हुई थी, क्योकि वैज्ञानिक दृष्टि से किसी भी मनुष्य का पैदा होना असंभव है। सीता जनक की एक रखैल कि बेटी थी, जिसके साथ जनक के नाजायज सम्बन्ध थे। इस बात को सीता ने कई बार रामायण में कहा है सीता कहती है “मैं बचपन से जवानी तक धुल में रही, अज्ञान के कारण मेरे माता पिता ने मेरी कोई परवाह नहीं की” अर्थात सीता कोई चरित्रवान औरत नहीं थी। वो किसी वैश्या या रखैल कि पुत्री थी। जिसको जनक उसकी जवानी में अपने घर ले के आया था। अब बात करते है असुर राज रावण की। रावण कितना बड़ा ज्ञानी और पराक्रमी राजा था ये बात उसके चरित्र से ही पता चल जाती है। रावन को दस आदमियों से भी ज्यादा ज्ञान था। इस लिए रावण के दस सिर प्रचारित किये गए। रावण से विष्णु, ब्रह्मा से लेकर सभी यूरेशियन आर्य डरते थे और उस के साथ आमने सामने की लड़ाई में कई बार हार चुके थे। रावण को उस समय के पुरे चमार दीप के राजा शंकर का आश्रीवाद या सहयोग प्राप्त था। जिसको बाद में वरदान कह कर प्रचारित किया गया। एक बार रावण जब राजा शंकर से मिलने गया तो वापिस लंका आते समय उसकी दृष्टि एक ऋषि कन्या पर पड़ी, रावण उस ऋषि कन्या से विवाह करने के लिए उस कन्या से जोर जबरदस्ती करता है। उसी के परिणाम स्वरुप कन्या रावण को श्राप देती है कि अगर आज के बाद तुमने किसी पवित्र नारी को उसकी इच्छा के बिना छुआ तो तुम्हारा सिर फट जायेगा और पूरा शारीर जल जायेगा। लेकिन बाद में रावण सीता को गोद में उठा का ले जाता है। अगर सीता सत्ती और पवित्र थी तो रावण का सिर क्यों नहीं फटा और उसके पुरे शारीर में आग क्यों नहीं लगी? इस का अर्थ सीधा सा है कि सीता एक दुष्ट चरित्र वाली वैश्या थी। ये बात भी सारी दुनिया जानती थी कि रावण यज्ञ जैसे कु-कृत्यों के खिलाफ था क्योकि यज्ञों के नाम पर होने वाली जीव हिंसा, मंदिर पान और शारीरिक सम्बन्धों कहा तक न्याय संगत है। आज सारा देश “फुल मून पार्टियों” का विरोध करता है, अगर कही कोई “फुल मून पार्टी” मनाता या आयोजन करता मिल जाता है तो उसे पुलिस उठा कर जेल में डाल देती है। तो रावण ने कौन सा बुरा काम किया था? सीता के साथ रावण के शारीरिक सम्बन्ध थे या नहीं इस बात का पता इस बात से चल जाता है कि जब रावण सीता के पास अशोक वाटिका में जाता है तो सीता कहती है “ मैं इस समय तुम्हारे अधिकार में हूँ, तुम राजा जो जो चाहे कर सकते हो” मतलब सीता ने सीधे तौर पर कोई स्वीकृति नहीं दी, लेकिन सीता के रावण के साथ भी शारीरिक सम्बन्ध थे।
अब रावण को मारा कैसे गया ये भी सारी दुनिया जानती है। रावण को धोखे से विभीषन के साथ मिल कर मारा गया। युद्ध में रावण को मारा इस बात का भी कोई प्रमाण मौजूद नहीं है। ब्राह्मणों की लिखी रामायण के अनुसार अंतिम युद्ध सिर्फ रावण और राम के बीच ही हुआ था। बाकि सभी लोग आराम कर रहे थे। और उस समय वहां पर रात जैसा माहौल था। इसका मतलब है कि राम ने रावण को धोखे से मारा रात के समय मारा होगा। विभीष्ण ने रावण का राज्य हड़पने के उदेश्य से रावण को मारने में राम का साथ दिया। क्योकि सिर्फ विभीष्ण को ही लंका के अन्दर जाने और रावण तक पहुँचने का रास्ता मालूम था। जब राम सीता को लेकर वापिस अयोध्या पहुंचा तो उसने भरत को हटा कर अपना राज्य स्थापित किया। भरत पहले ही राम से डरा डरा रहता था तो उसने ज्यादा आना कानी नहीं कि और राम को राजा बना दिया गया। फिर अयोध्या में एक दिन राम की एक दासी राम को आकर कहती है कि “सीता रावण की याद में रो रही है, सीता ने रावण का चित्र बनाया है और उसे सीने से लगा कर आंसू बहा रही है और सीता गर्ववती है” राम का गुस्सा सातवे आसमान पर पहुँच जाता है वो सीता के कमरे में जाता है तो सच में सीता को रावण के चित्र से लिपटे हुए और आंसू बहते हुए पता है। जिस के कारण राम सीता को घर निकल देता है। इस से सिद्ध हो जाता है कि लव और कुश रावण की संतान थे जिनको बाद में अयोध्या से दूर अफ्गानिस्तान में भेज दिया गया था।
राम के द्वारा शम्भुक नामक शुद्र का वध भी एक उलेखनीय तथ्य है। अयोध्या में राम राज्य स्थापित होने के बाद एक दिन एक ब्राह्मण अपने मृत बेटे के शव को उठा कर राम के दरबार में ले कर आता है और राम को बताता है कि उसके गॉव के पास एक शम्भुक नाम का शुद्र भगवान् का नाम ले रहा है जीके कारण ब्राह्मण के बेटे की मृत्यु हो गई। ब्राह्मण का बच्चा अपनी मृत्यु मारा किसी के भगवान् को पूजने या ना पूजने से ब्राह्मण के बेटे का क्या सम्बन्ध? लेकिन नहीं राम ने बिना सोचे समझे ब्राह्मण की बातों में आ कर शम्भुक के आश्रम पर धावा बोल दिया। शम्भुक अकेला था, उसने खुद को राम से हवाले कर दिया और राम ने निर्दयिता पूर्वक शम्भुक का सिर काट कर शम्भुक की हत्या कर दी। राम के समय भी रावण जैसे महाज्ञानी और पराक्रमी राजा को जो मूल निवासियों के हित में सोचता था उसकी मृत्यु को दीपावली के नाम से मनाया गया।


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Saturday 22 October 2016

गुलामी का दोषी कौन?

देश की 2000 वर्ष की गुलामी का दोषी कौन ?
एक बार भंते सुमेधानंद एक सभा में प्रवचन कर रहे थे , उस सभा में से एक ब्राह्मण की आवाज गूंजी कि बौद्ध धम्म के कारण ही हमारा देश गुलाम हुआ था । तब भंते ने उस ब्राह्मण से पूछा -
श्रमण- हे ब्राह्मण ! आप लोग कहते हैं कि बौद्ध धम्म के कारण अपना देश गुलाम हुआ ।
ब्राह्मण - हाँ भंते ! बौद्ध धम्म के कारण ही अपना देश गुलाम हुआ ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! भारत में बुद्ध धम्म की स्थापना कब हुई ?
ब्राह्मण - हे भंते ! लगभग 2530 वर्ष पूर्व ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! भारत में बौद्ध धम्म का साम्राज्य कब तक रहा ?
ब्राह्मण - हे भंते ! लगभग 2200 वर्ष पूर्व तक ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! इन 320 वर्ष के मध्य भारत किसी विदेशी राजा का गुलाम बना ।
ब्राह्मण - नही भंते ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! बौद्ध धम्म का अंतिम सम्राट कौन था ?
ब्राह्मण - हे भंते ! सम्राट बृहद्रथ ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! बृहद्रथ का साम्राज्य कब तक रहा ।
ब्राह्मण - हे भंते ! लगभग 2200 वर्ष पूर्व तक ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! बृहद्रथ की हत्या किसके द्वारा की गई ?
ब्राह्मण - हे भंते ! बृहद्रथ के सेनापति पुष्पमित्र शुंग द्वारा ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! भारतवर्ष पर कब्जा करने के बाद ब्राह्मण पुष्पमित्र शुंग ने क्या घोषणा की थी ?
ब्राह्मण - हे भंते ! जो शूरवीर जितने बौद्धों के सिर कलम करके लायेगा , उसको उतना ही धन दिया जायेगा ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! पुष्पमित्र शुंग के साम्राज्य के बाद कौनसे विधान की रचना की गई ?
ब्राह्मण - हे श्रमण ! 2176 वर्ष पूर्व सुमित भार्गव द्वारा मनुस्मृति की रचना की गई ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! उस मनुस्मृति में कौन कौनसे विधानों की रचना की गई ?
ब्राह्मण - हे भिक्षु ! मनुस्मृति के विधानों ने भारतीय समाज को हजारों जातियों में बाँट कर देश की एकता और शक्ति को छिन्न भिन्न कर दिया , ऊँचनीच और छुआछूत का राज्य कायम हो गया , सभी भारतीय लोग ही एक दूसरे से जलन रखने लगे , सिर्फ चन्द क्षत्रिय वर्ग को छोड़कर समस्त भारतीय लोगों पर हथियार उठाने पर  प्रतिबन्ध लगा दिया , एक दूसरे से बदला लेने के लिए भारतीय लोग ही विदेशी लोगों को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमन्त्रण करने लगे ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! देश की ऐसी राज्य व्यवस्था बौद्ध धम्म के कारण हुई या ब्राह्मण धर्म के कारण ।
ब्राह्मण - हे भंते ! ब्राह्मण धर्म के कारण ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! बौद्ध धम्म कौनसी शताब्दी में समाप्ति के कगार पर था ?
ब्राह्मण - हे भंते ! लगभग 7 वीं शताब्दी में ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! आपके शंकराचार्यों ने कौनसी शताब्दी में घोषणा की थी कि भारत बौद्ध धम्म रहित हो गया ?
ब्राह्मण - हे भंते ! 8 वीं शताब्दी में ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! जब सन् 712 में मुहम्मद बिन कासिम ने सम्राट दाहिर पर आक्रमण किया , तब सम्राट दाहिर के हारने का क्या कारण था ?
ब्राह्मण - हे श्रमण ! एक ब्राह्मण ने कासिम से कहा कि यदि देवी मन्दिर का वह झंडा गिरा दिया जाये तो दाहिर सेना भाग जायेगी । उस समय ब्राह्मणी अन्धविश्वास इतना था कि सेना भाग गई और हम हार गए । इस प्रकार भारत की गुलामी की नींव सन् 712 में एक ब्राह्मण के देशद्रोह के कारण रखी गई ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! जब 7 वीं शताब्दी के बाद महमूद गजनी द्वारा सोमनाथ मन्दिर को लूटा गया , तब देश में किसकी सत्ता थी ?
ब्राह्मण - हे श्रमण ! ब्राह्मण धर्म की ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! जब महमूद गजनी भारत की एक लाख औरतों को बन्दी बनाकर अपने हरम के लिए अपने देश ले गया , तब भारत में किसकी सत्ता थी ?
ब्राह्मण - हे श्रमण ! ब्राह्मण धर्म की ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! जब महमूद ने सोमनाथ के किले के मुख्य दरवाजे पर धाबा बोला , तब ब्राह्मण धर्म की सेना क्या कर रही थी ?
ब्राह्मण - हे श्रमण ! किले की दीवारों पर बैठी सेना इस ख्याल से प्रसन्न हो रही थी कि ये दुस्साहसी मुसलमान अभी चन्द मिनटों में हमारे देवता द्वारा नष्ट कर दिए जायेंगे ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! सन् 1562 में अंवर अर्थात जयपुर के राजा बिहारी मल ने अकबर के सामने क्या किया ?
ब्राह्मण - हे भंते ! राजा बिहारी मल ने बिना तलवार और ढाल उठाये अकबर के आगे घुटने टेक दिए और अपनी बेटी का उससे विवाह भी कर दिया ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! रणथम्भोर , मारवाड़ , बीकानेर , जोधपुर और जैसलमेर के राजाओं ने अकबर के सामने क्या किया ?
ब्राह्मण - हे भंते ! आत्म समर्पण करके अपनी अविवाहित लड़कियां अकबर के हरम के लिए सुपुर्द कर दीं ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! जब गुरु गोविन्द सिंह और शिवाजी क्रमशः पंजाब और महाराष्ट्र में मुगलों से लोहा ले रहे थे , तब ब्राह्मण धर्म की सेना क्या कर रही थी ?
ब्राह्मण - हे श्रमण ! राजपूत , मराठे और दूसरे भारतीय राजा ही गुरु गोविन्द सिंह और शिवाजी के खून के प्यासे बने हुए थे ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! महाराणा प्रताप की सारी जिंदगी किन राजाओं के साथ लड़ती हुई गुजर गई ?
ब्राह्मण - हे भंते ! अकबर के गुलाम भारतीय राजाओं के साथ ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! राणा साँगा ने भारत पर आक्रमण करने के लिए किसको आमन्त्रित किया ?
ब्राह्मण - हे भंते ! बावर को आमंत्रित किया था ।
श्रमण - हे बुद्धिमान ब्राह्मण ! हम भारतीय इतने नपुंसक कैसे बन गए ?
ब्राह्मण - हे भंते ! ब्राह्मणी धर्म के कर्मफल , किस्मत और ब्रह्मसत्य जैसे सिद्धांतों ने भारतीय लोगों को नपुंसक बना दिया ।
श्रमण - हे बुद्धिमान ब्राह्मण ! अब बताइये अपना देश बौद्ध धम्म के कारण गुलाम हुआ या ब्राह्मणी धर्म के कारण ।
ब्राह्मण - हे श्रमण ! ब्राह्मणी धर्म के कारण ।।

*राम राज्य कभी नही आना चाहिए*

*राम राज्य कभी नही आना चाहिए*
                       

  राम के समय को तुम रामराज्य कहते हो। हालात आज से भी बुरे थे। कभी भूल कर रामराज्य फिर मत ले आना! एक बार जो भूल हो गई, हो गई। अब दुबारा मत करना।
   राम के राज्य में आदमी बाजारों में गुलाम की तरह बिकते थे। कम से कम आज आदमी बाजार में गुलामों की तरह तो नहीं बिकता! और जब आदमी गुलामों की तरह बिकते रहे होंगे, तो दरिद्रता निश्चित रही होगी, नहीं तो कोई बिकेगा कैसे ? किसलिए बिकेगा ? दीन और दरिद्र ही बिकते होंगे, कोई अमीर तो बाजारों में बिकने न जाएंगे। कोई टाटा, बिड़ला, डालमिया तो बाजारों में बिकेंगे नहीं।
  स्त्रियां बाजारों में बिकती थीं! वे स्त्रियां गरीबों की स्त्रियां ही होंगी। उनकी ही बेटियां होंगी। कोई सीता तो बाजार में नहीं बिकती थी। उसका तो स्वयंवर होता था। तो किनकी बच्चियां बिकती थीं बाजारों में ? और हालात निश्चित ही भयंकर रहे होंगे। क्योंकि बाजारों में ये बिकती स्त्रियां और लोग--आदमी और औरतें दोनों, विशेषकर स्त्रियां--राजा तो खरीदते ही खरीदते थे, धनपति तो खरीदते ही खरीदते थे, जिनको तुम ऋषि-मुनि कहते हो, वे भी खरीदते थे! गजब की दुनिया थी! ऋषि-मुनि भी बाजारों में बिकती हुई स्त्रियों को खरीदते थे!
  अब तो हम भूल ही गए वधु शब्द का असली अर्थ। अब तो हम शादी होती है नई-नई, तो वर-वधु को आशीर्वाद देने जाते हैं। हमको पता ही नहीं कि हम किसको आशीर्वाद दे रहे हैं! राम के समय में, और राम के पहले भी--वधु का अर्थ होता था, खरीदी गई स्त्री! जिसके साथ तुम्हें पत्नी जैसा व्यवहार करने का हक है, लेकिन उसके बच्चों को तुम्हारी संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होगा! पत्नी और वधु में यही फर्क था। सभी पत्नियां वधु नहीं थीं, और सभी वधुएं पत्नियां नहीं थीं। *वधु नंबर दो की पत्नी थी।* जैसे नंबर दो की बही होती है न, जिसमें चोरी-चपाटी का सब लिखते रहते हैं! ऐसी नंबर दो की पत्नी थी वधु।
  *ऋषि-मुनि भी वधुएं रखते थे!* और तुमको यही भ्रांति है कि ऋषि-मुनि गजब के लोग थे। कुछ खास गजब के लोग नहीं थे। वैसे ऋषि-मुनि अभी भी तुम्हें मिल जाएंगे।
  एक मां अपने छोटे से बच्चे को कह रही थी कि बेटा, तू नौ-नौ बजे उठता है! अरे, ऋषि-मुनि की संतान हो; ब्रह्ममुहूर्त में उठना चाहिए! ऋषि-मुनि हमेशा ब्रह्ममुहूर्त में उठते थे!
उस बेटे ने कहा कि नहीं मां; ऋषि तो कभी आठ बजे के पहले नहीं उठते। मुझे पता है। और मुनि भी कभी नौ बजे के पहले नहीं उठते।
मां ने कहा, तू यह कहां की बातें कर रहा है ? उसने कहा, मुझे मालूम है। ऋषि कपूर आठ बजे उठता है और दादा मुनि अशोक कुमार नौ बजे उठते हैं!
   इन ऋषि-मुनियों में और तुम्हारे पुराने ऋषि-मुनियों में बहुत फर्क मत पाना तुम। कम से कम इनकी वधुएं तो नहीं हैं! कम से कम ये बाजार से स्त्रियां तो नहीं खरीद ले आते! इतना बुरा आदमी तो आज पाना मुश्किल है जो बाजार से स्त्री खरीद कर लाए। आज यह बात ही अमानवीय मालूम होगी! मगर यह जारी थी!
  *रामराज्य में शूद्र को हक नहीं था वेद पढ़ने का! यह तो कल्पना के बाहर की बात थी, कि डाक्टर अंबेदकर जैसा अतिशूद्र और राम के समय में भारत के विधान का रचयिता हो सकता था!* असंभव !! खुद राम ने एक शूद्र के कानों में सीसा पिघलवा कर भरवा दिया था--गरम सीसा, उबलता हुआ सीसा! क्योंकि उसने चोरी से, कहीं वेद के मंत्र पढ़े जा रहे थे, वे छिप कर सुन लिए थे। यह उसका पाप था; यह उसका अपराध था। और *राम तुम्हारे मर्यादा पुरुषोत्तम हैं! राम को तुम अवतार कहते हो! और महात्मा गांधी रामराज्य को फिर से लाना चाहते थे।* क्या करना है? शूद्रों के कानों में फिर से सीसा पिघलवा कर भरवाना है ? उसके कान तो फूट ही गए होंगे। शायद मस्तिष्क भी विकृत हो गया होगा। उस गरीब पर क्या गुजरी, किसी को क्या लेना-देना! शायद आंखें भी खराब हो गई होंगी। क्योंकि ये सब जुड़े हैं; कान, आंख, नाक, मस्तिष्क, सब जुड़े हैं। और दोनों कानों में अगर सीसा उबलता हुआ...!
   तुम्हारा खून क्या खाक उबल रहा है निर्मल घोष! उबलते हुए शीशे की जरा सोचो! उबलता हुआ सीसा जब कानों में भर दिया गया होगा, तो चला गया होगा पर्दों को तोड़ कर, भीतर मांस-मज्जा तक को प्रवेश कर गया होगा; मस्तिष्क के स्नायुओं तक को जला गया होगा। फिर इस गरीब पर क्या गुजरी, किसी को क्या लेना-देना है! धर्म का कार्य पूर्ण हो गया। *ब्राह्मणों ने आशीर्वाद दिया कि राम ने धर्म की रक्षा की। यह धर्म की रक्षा थी! और तुम कहते हो, "मौजूदा हालात खराब हैं!'*
   युधिष्ठिर जुआ खेलते हैं, फिर भी धर्मराज थे! और तुम कहते हो, मौजूदा हालात खराब हैं! आज किसी जुआरी को धर्मराज कहने की हिम्मत कर सकोगे ? और जुआरी भी कुछ छोटे-मोटे नहीं, सब जुए पर लगा दिया। पत्नी तक को दांव पर लगा दिया! एक तो यह बात ही अशोभन है, क्योंकि पत्नी कोई संपत्ति नहीं है। मगर उन दिनों यही धारणा थी, स्त्री-संपत्ति!    
   उसी धारणा के अनुसार आज भी जब बाप अपनी बेटी का विवाह करता है, तो उसको कहते हैं कन्यादान! क्या गजब कर रहे हो! गाय-भैंस दान करो तो भी समझ में आता है। कन्यादान कर रहे हो! यह दान है? स्त्री कोई वस्तु है? ये असभ्य शब्द, ये असंस्कृत हमारे प्रयोग शब्दों के बंद होने चाहिए। अमानवीय हैं, अशिष्ट हैं, असंस्कृत हैं।
   मगर युधिष्ठिर धर्मराज थे। और दांव पर लगा दिया अपनी पत्नी को भी! हद्द का दीवानापन रहा होगा। पहुंचे हुए जुआरी रहे होंगे। इतना भी होश न रहा। और फिर भी धर्मराज धर्मराज ही बने रहे; इससे कुछ अंतर न आया। इससे उनकी प्रतिष्ठा में कोई भेद न पड़ा। इससे उनका आदर जारी रहा।
   भीष्म पितामह को ब्रह्मज्ञानी समझा जाता था। मगर ब्रह्मज्ञानी कौरवों की तरफ से युद्ध लड़ रहे थे! गुरु द्रोण को ब्रह्मज्ञानी समझा जाता था। मगर गुरु द्रोण भी कौरवों की तरफ से युद्ध लड़ रहे थे! अगर कौरव अधार्मिक थे, दुष्ट थे, तो कम से कम भीष्म में इतनी हिम्मत तो होनी चाहिए थी! और बाल-ब्रह्मचारी थे और इतनी भी हिम्मत नहीं? तो खाक ब्रह्मचर्य था यह! किस लोलुपता के कारण गलत लोगों का साथ दे रहे थे? और द्रोण तो गुरु थे अर्जुन के भी, और अर्जुन को बहुत चाहा भी था। लेकिन धन तो कौरवों के पास था; पद कौरवों के पास था; प्रतिष्ठा कौरवों के पास थी। संभावना भी यही थी कि वही जीतेंगे। राज्य उनका था। पांडव तो भिखारी हो गए थे। इंच भर जमीन भी कौरव देने को राजी नहीं थे। और कसूर कुछ कौरवों का हो, ऐसा समझ में आता नहीं। जब तुम्हीं दांव पर लगा कर सब हार गए, तो मांगते किस मुंह से थे? मांगने की बात ही गलत थी। जब हार गए तो हार गए। खुद ही हार गए, अब मांगना क्या है ?
    लेकिन गुरु द्रोण भी अर्जुन के साथ खड़े न हुए; खड़े हुए उनके साथ जो गलत थे।
   *यही गुरु द्रोण एकलव्य का अंगूठा कटवा कर आ गए थे अर्जुन के हित में, क्योंकि तब संभावना थी कि अर्जुन सम्राट बनेगा। तब इन्होंने एकलव्य को इनकार कर दिया था शिक्षा देने से। क्यों? क्योंकि शूद्र था।* और तुम कहते हो, "मौजूदा हालात बिलकुल पसंद नहीं!'
   निर्मल घोष, एकलव्य को मौजूदा हालात उस समय के पसंद पड़े होंगे ? उस गरीब का कसूर क्या था ? अगर उसने मांग की थी, प्रार्थना की थी कि मुझे भी स्वीकार कर लो शिष्य की भांति, मुझे भी सीखने का अवसर दे दो ? लेकिन नहीं, शूद्र को कैसे सीखने का अवसर दिया जा सकता है !!!
   मगर एकलव्य अनूठा युवक रहा होगा। अनूठा इसलिए कहता हूं कि उसका खून नहीं खौला। खून खौलता तो साधारण युवक, दो कौड़ी का। सभी युवकों का खौलता है, इसमें कुछ खास बात नहीं। उसका खून नहीं खौला। शांत मन से उसने इसको स्वीकार कर लिया। एकांत जंगल में जाकर गुरु द्रोण की प्रतिमा बना ली। और उसी प्रतिमा के सामने शर-संधान करता रहा। उसी के सामने धनुर्विद्या का अभ्यास करता रहा। अदभुत युवक था। उस गुरु के सामने धनुर्विद्या का अभ्यास करता रहा जिसने उसे शूद्र के कारण इनकार कर दिया था; अपमान न लिया। अहंकार पर चोट तो लगी होगी, लेकिन शांति से, समता से पी गया।
धीरे-धीरे खबर फैलनी शुरू हो गई कि वह बड़ा निष्णात हो गया है। तो गुरु द्रोण को बेचैनी हुई, क्योंकि बेचैनी यह थी कि खबरें आने लगीं कि अर्जुन उसके मुकाबले कुछ भी नहीं। और अर्जुन पर ही सारा दांव था। अगर अर्जुन सम्राट बने, और सारे जगत में सबसे बड़ा धनुर्धर बने, तो उसी के साथ गुरु द्रोण की भी प्रतिष्ठा होगी। उनका शिष्य, उनका शागिर्द ऊंचाई पर पहुंच जाए, तो गुरु भी ऊंचाई पर पहुंच जाएगा। उनका सारा का सारा न्यस्त स्वार्थ अर्जुन में था। और एकलव्य अगर आगे निकल जाए, तो बड़ी बेचैनी की बात थी।
    *तो यह बेशर्म आदमी, जिसको कि ब्रह्मज्ञानी कहा जाता है, यह गुरु द्रोण, जिसने इनकार कर दिया था एकलव्य को शिक्षा देने से, यह उससे दक्षिणा लेने पहुंच गया!* शिक्षा देने से इनकार करने वाला गुरु, जिसने दीक्षा ही न दी, वह दक्षिणा लेने पहुंच गया! हालात बड़े अजीब रहे होंगे! शर्म भी कोई चीज होती है! इज्जत भी कोई बात होती है! आदमी की नाक भी होती है! ये गुरु द्रोण तो बिलकुल नाक-कटे आदमी रहे होंगे! किस मुंह से--जिसको दुत्कार दिया था--उससे जाकर दक्षिणा लेने पहुंच गए!
और फिर भी मैं कहता हूं, एकलव्य अदभुत युवक था; दक्षिणा देने को राजी हो गया। उस गुरु को, जिसने दीक्षा ही नहीं दी कभी! यह जरा सोचो तो! उस गुरु को, जिसने दुत्कार दिया था और कहा कि तू शूद्र है! हम शूद्र को शिष्य की तरह स्वीकार नहीं कर सकते!
बड़ा मजा है! *जिस शूद्र को शिष्य की तरह स्वीकार नहीं कर सकते, उस शूद्र की भी दक्षिणा स्वीकार कर सकते हो!* मगर उसमें षडयंत्र था, चालबाजी थी।
   उसने चरणों पर गिर कर कहा, आप जो कहें। मैं तो गरीब हूं, मेरे पास कुछ है नहीं देने को। मगर जो आप कहें, जो मेरे पास हो, तो मैं देने को राजी हूं। यूं प्राण भी देने को राजी हूं।
तो क्या मांगा? *मांगा कि अपने दाएं हाथ का अंगूठा काट कर मुझे दे दे!*
   जालसाजी की भी कोई सीमा होती है! अमानवीयता की भी कोई सीमा होती है! कपट की, कूटनीति की भी कोई सीमा होती है! और यह ब्रह्मज्ञानी! उस गरीब एकलव्य से अंगूठा मांग लिया। और अदभुत युवक रहा होगा, निर्मल घोष, दे दिया उसने अपना अंगूठा! तत्क्षण काट कर अपना अंगूठा दे दिया! जानते हुए कि दाएं हाथ का अंगूठा कट जाने का अर्थ है कि मेरी धनुर्विद्या समाप्त हो गई। अब मेरा कोई भविष्य नहीं। इस आदमी ने सारा भविष्य ले लिया। शिक्षा दी नहीं, और दक्षिणा में, जो मैंने अपने आप सीखा था, उस सब को विनिष्ट कर दिया।
             *---ओशो--*
----------------------------------------

*"कहीं हम भूल न जाएँ~*

👉🏾हिन्दू धर्म में वर्ण, वर्ण में शूद्र, शूद्र में जाति, जाति में क्रमिक उंच नीच... और ब्राह्मण के आगे सारे नींच.. अब गर्व से कैसे कहें कि हम हिन्दू हैं  ???
 
*एक मात्र उपाय--*  

शूद्र(obc), अवर्ण(sc/st)
    जाति तोड़ो...समाज जोड़ो

       मन्दिर नहीं, स्कूल चाहिए !
          धर्म नहीं, अधिकार चाहिए !!

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Wednesday 19 October 2016

वर्ण

इस देश में तीन वर्ण हैं , जिन्हें सवर्ण कहा जाता है ।
स + वर्ण = सवर्ण अर्थात वर्ण सहित
चौथा शूद्र है जिसका कोई वर्ण नहीं ।
1. ब्राह्मण
2.क्षत्रिय
3.वैश्य
और
4. शूद्र - (ओबीसी , एससी, एसटी)
👉पहला ब्राह्मण वर्ण में कोई जाति नहीं । केवल गोत्र है , जिनमें आपस में शादी विवाह में कोई रुकावट नहीं।
👉दूसरे वर्ण क्षत्रिय में कोई जाति नहीं , केवल गौत्र है , जिनमें आपस में शादी विवाह में कोई रुकावट नहीं ।
👉इसी प्रकार तीसरा वर्ण वैश्य ।
आपस में इनमें भी कोई जाति व्यवस्था नहीं , केवल गौत्र हैं ,जैसे अग्रवाल , बंसल , कंसल, गुप्ता , गोयल आदि । इनमें भी आपस में शादी विवाह में कोई रुकावट नहीं ।
👉चौथा नम्बर पर आते हैं शूद्र जो ब्रह्मा के पैरों से पैदा हुए बताये जाते हैं हिन्दू शास्त्र और ग्रंथों के अनुसार।
माँ की कोख का कोई जिक्र नहीं ?
शूद में जाति , जाति में गोत्र ,
गोत्र भी 1000 , 2000 नहीं बल्कि लाखों में ।
👉जातियां ?
वह भी सैकड़ों नहीं , हजारों में 6743 जातियां।
👉गूजर , पटेल , पाटीदार , अहीर , यादव , लौधा , किसान , लुहार , कुम्हार , सैनी , माली , कश्यप , कहार ,कुर्मी , चूहड़ा ( बाल्मीकि ) , चमार , तेली , तमौली , नाई ,धौबी , जाधव , जाट , जाटव ,धींवर , महार ,
और अनेकों हजारों जातियां हैं ?
👉इनमें अन्तरजातीय शादी विवाह की बात दूर , संग बैठकर आपस में बात करना भी मुंगेरीलाल के सपने जैसा है।
👉1950 के बाद , वर्तमान परिवेश में आपसी घृणा में कमी तो आयी है ,परंतु आपसी सामंजस्य , प्रेम और प्यार का अभाव यथावत विद्यमान है ।
👉 इन्हीं शूद्रों को हिन्दू शास्त्रों में सेवा करने के लिए जिम्मेदारी सौंपी गयी है।
👉 साहित्य समाज का दर्पण है । सम्बत् 1680 से पहले नारी तथा शूद्रों को बेरहमी से प्रताड़ित किया जाता था ,जो बाद में भी जारी रहा । इसी लिए तुलसीदास की रचनाओं में इनकी प्रताड़ना का स्पष्ट विवरण मिलता हैं :
ढोल गवांर शूद्र पशु नारी
ये सब ताड़न के अधिकारी।
वर्ग व्यवस्था तो हो सकती है परन्तु वर्ण एवं जाति व्यवस्था दुनिया के किसी देश में नहीं है ,अलावा भारत या इससे विभाजित देश ।
और यह व्यवस्था बनाई उन्होंने जो स्वयं को भारत में असुरक्षित समझते थे ।
" विदेशी आर्यंस. " यही अार्य ही सवर्ण है !

आरक्षण क्यों जरुरी है

** *72 करोड़ ओबीसी और 32 करोड़ एस.सी/एस.टी जागो* **

*जो बोलते है आरक्षण की वजह से जॉब नही मिल रही वो अवश्य जानले कि तुम्हारी जॉब कोन हडप रहा है..*

** *जानो और जागो* **

*"आरक्षण --- जिसकी जितनी संख्या भारी,*
*उसकी उतनी हिस्सेदारी"*

** *देश का SC/ST/OBC समाज जिनकी संख्या (87.5%) है वो अब जाग गया है.***

** *भारत में लोकतंत्र लागू है पर इन 66 वर्ष में सरकारों ने यहां ब्राह्मणतंत्र स्थापित कर लिया है, ये रहे सबूत **

*(1) राष्ट्रपति - प्रणव मुखर्जी - ब्राह्मण*

*(2) प्रधानमंत्री - नरेंद्र मोदी - बनिया*

*(3) ग्रहमंत्री - राजनाथ सिंह - ठाकुर*

*(4) विदेशमंत्री - सुषमा स्वराज - ब्राह्मण*

*(5) वित्तमंत्री - अरूण जेटली - ब्राह्मण*

*(6) रक्षामंत्री - मनोहर पारीकर - ब्राह्मण*

*(7) सड़क एवं परिवाहन मंत्री - नितिन गडकरी - ब्राह्मण*

*(8) महिला एवं बालविकास मंत्री - मेनका गांधी - वैश्य*

*(9) लोकसभा स्पीकर - सुमित्रा महाजन - ब्राह्मण*

*(10) प्रधानमंत्री के मुख्यसचिव - न्रपेंद्र मिश्रा - ब्राह्मण*

*(11) राष्ट्रपति कार्यालय में कुल 49 अधिकारी काम करते है. जिनमें SC/ST/OBC के होने थे 45, जबकि है केवल 0.सामान्य के होने थे 5, जबकि है 49.*

*(12) प्रधानमंत्री कार्यालय में कुल 53 अधिकारी काम करते है, जिनमें SC/ST/OBC के होने थे 47, जबकि हैं केवल 0. सामान्य के होने थे 6, जबकि है 53.*

*(13) विदेशी दूतावास में कुल 140 अधिकारी काम करते हैं, जिनमें SC/ST/OBC के होने थे 91, जबकि है केवल 0, सामान्य के होने थे 21 , जबकि है 140.*

*(14) भारत सरकार में कुल 84 सचिव हैं, जिनमें SC/ST/OBC के होने थे 75, जबकि है केवल 0. सामान्य के होने थे 8 , जबकि है 84.*

*(15) भारत सरकार के केंद्रीय मंत्रिमंडल में कुल 27 मंत्री हैं. जिनमें SC/ST/OBC के होने थे 24 , जबकि है केवल 1, सामान्य के होने थे 3, जबकि है 20.*

*टाप 10 मंत्रीयों में सो एक भी ओबीसी नहीं.*

*(16) भारत में कुल 4657 आई.ए.एस. हैं. जिनमें ओबीसी के होने थे 3027, जबकि हैं केवल 655. सामान्य के होने थे 699, जबकि है 2993.*

*(17) देश के 18 राज्यों के हाईकोर्ट में कुल 481 जज हैं, जिनमें ओबीसी के होने थे 313, जबकि हैं केवल 36. सामान्य जाति को होने थे 72, जबकि है 426.*

*(18) मध्यप्रदेश के हाईकोर्ट में कुल 30 जज हैं. जिनमें से SC/ST/OBC के होने थे 20, जबकि है केवल 0. सामान्य जाति के होने थे 5 , जबकि है 30.*

*(19) भारत के सुप्रीम कोर्ट में कुल 23 जज हैं. जिनमें ओबीसी के होने थे 15, जबकि हैं केवल 0. सामान्य जाति के होना थे 3, जबकि हैं 23.*

*(20) भारत के 46 विश्वविद्यालयों में कुल 108 कुलपति हैं . जिनमें ओबीसी के होने थे 70, जबकि है केवल 0. सामान्य के होने थे 16, जबकि है 108*

*(21) बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU ) में कुल 670 प्रोफेसर हैं, जिनमें ओबीसी के होने थे 435, जबकि हैं केवल 0. सामान्य जाति के होने थे 100, जबकि हैं 670.*

*(22) दिल्ली विश्वविद्यालय ( DU) में  कुल 249 प्रोफेसर हैं. जिनमें ओबीसी के होने थे 162, जबकि हैं केवल 0. सामान्य जाति के होने थे 37, जबकि हैं 249.*

*(23) जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में कुल 470 प्रोफेसर हैं. जिनमें से ओबीसी के होने थे 305, जबकि हैं केवल 2. सामान्य जाति के होने थे 70, जबकि हैं 426.*

*(24) आई.आई.एम. लखनऊ में कुल 40 प्रोफेसर हैं, जिनमें से ओबीसी के होने थे 26, जबकि हैं केवल 1. सामान्य जाति के होने थे 6, जबकि है 30.*

*(25) भारत सरकार के कार्मिक मंञालय की रिपोर्ट 13 फरवरी 2012 के अनुसार दिनांक 01/12/10 तक विभिन्न वर्गों की नौकरी में संख्या और प्रतिनिधित्व निम्न है.*

प्रथम श्रेणी में  :-
वर्ग.     संख्या    आरक्षण अस्तित्व मे
*Open (12.5%) - 0%     75.5%,*
*OBC   (65%) - 27%      8.4%*
*SC/ST(22.5%)22.5%   16.1%*

द्वितीय श्रेणी में :- आरक्षण अस्तित्व
Open (12.5%) - 0%    82.2%,
OBC    (65%) - 27%     6.1%
SC/ST(22.5%)22.5%   11.7%

तीसरी श्रेणी में :- आरक्षण अस्तित्व
Open (12.5%) - 0%  71.9%
OBC  (65%) - 27%  14.8%
SC/ST(22.5%)22.5% 13.3%

चतुर्थ श्रेणी में :- आरक्षण अस्तित्व
Open (12.5%) - 0%         69%
OBC (65%) - 27%        15.2%
SC/ST(22.5%) 22.5%  15.8%

(26) देश के उद्योग जगत की विभिन्न कंपनियों के बोर्ड मेम्बरों की स्थिति निम्न हैं.
*Gen -12.5% -  है -92.6%*
*Sc/St-22.5%- है -3.5%*
*OBC- 65% -   है-3.8%*

(29) देश में आरक्षण की स्थिति :-

वर्ग.      संख्या   आरक्षण
*Sc -   15% -    15%*
*St -    7.5% -   7.5%*
*Obc-  65%  -   27%*

(30) मध्यप्रदेश में वर्तमान में आरक्षण की स्थिति :-

वर्ग.      संख्या      आरक्षण
*एससी -  16%   -  16%*
*एसटी -   20%   - 20%*
*ओबीसी- 65%   - 14%*

*जबकि ओबीसी को केरल में 40%, बिहार में 34%, कर्नाटका में 32% और महाराष्ट्रा में 32% आरक्षण है.*

*(31) सवर्णों का नौकरी में 79% हिस्सा होने के बाद भी हाल ही में राजस्थान हाईकोर्ट ने संविधान के विरूद्ध जाकर उन्हे 14% आरक्षण दिया है.*

*(33) संविधान द्वारा गठित मंडल कमीशन ने SC/ST/OBC के कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण दिया, परन्तु सुप्रीमकोर्ट ने 16 नबम्वर 1992 को फैसला देकर उस पर रोक लगा कर  धोका किया है.*

*(33) हाल ही में गुजरात, राजस्थान और उ.प्र. हाईकोर्ट ने तथा सुप्रीमकोर्ट ने आरक्षण के संबंध में संविधान के विरूद्ध फैसले दिये हैं. इससे लगता है कि लोकतंत्र , संविधान और आरक्षण बड़े खतरे में है.*

*(34) 100 दिन के लिये मुझे सत्ता दे दो. यदि काला धन वापस नहीं ला पाया तो मुझे फांसी दे देना -- नरेंद्र मोदी -- 3 फरवरी 2013*

*(35) 3% ब्राह्मण, जो ग्राम पंचायत का चुनाव भी नहीं जीत सकता है वो देश की पंचायत ( संसद) पर कब्जा जमायें बैढ़ा है..*

*(36) सरकारी विद्यालयों का निजीकरण नहीं बल्कि निजी विद्यालयों का राष्ट्रीयकरण होना चाहिये.*

*(37) पाकिस्तान में पेट्रोल 26 रू. लीटर है तो भारत में 78 रू. लीटर क्यों ?*

*(38) संस्क्रत से पी.एच.डी. किया हुआ एक ओबीसी को मंदिर में पूजा करवाने का अधिकार नहीं है, लेकिन एक पांचवी फेल ब्राह्मण को सभी अधिकार है , क्यों ? 5000 सालो से चला से चला आ रहा ये कैसा आरक्षण है ?*

*(39) देश के 4 बड़े मंदिरों में प्रतिदिन 8 करोंड़ रू.की चढौत्री आती है. इस पर 100% अधिकार ब्राह्मणों का ही क्यों ? मंदिरों की संपत्ति देशवासियों में बाट दी जाये तो सभी करोड़पति हो जायें.*

*(40) म.प्र. सरकार पर 125 हजार करोड़ का कर्ज है. प्रत्येक व्यक्ति पर 12000 रू.है.*

*(41) अमेरिका देखा, पेरिस देखा, और देखा जापान .कनाडा देखा, चाईना देखा, सब देखा मेरी जान..*

*मगर न देखी उजड़ी खेती, और मरता किसान ......*

*(42) किसान प्रेम प्रसंग के कारण आत्महत्या कर रहें - राधामोहन सिंह - केंद्रीय क्रषिमंत्री*

*(43) म.प्र. में किसानों की फसल का 2136 करोड़ का बीमा हुआ. 141 करोड़ रू. की प्रीमियम कंपनी को दी गई. जब किसानों को मुआबजा देने की बारी आई तो केवल 1.65 करोड़ रू ही क्यों  दिये गये ??*

*(44) केंद्र की पिछली सरकार में क्रषि बजट 20,208 करोड़ रू. था, मोदी सरकार ने 13,523 करोड़ रू. कर दिया. कटौती - 7685 करोड़ रू. की.*

*(45) भारत में एक दिन में 46 किसान आत्महत्या करते है.1995 से 2013 के बीच 2,96,438 किसान आत्महत्या कर चुके हैं.*

*(46) भारत सरकार के स्वास्थ बजट में पिछली सरकार में 35,163 करोड़ रू. का प्रावधान था. इस बार मोदी सरकार ने 29,653 करोड. रू. का प्रावधान किया है. कटौती - 5510 करोड़ रू.की.*

*(47) पुलिस सुधार फंड में 1500 करोड़ की कटौती.*

*(48) इस सरकार नें एससी/एसटी के बजट में 32000 करोड़ की कटौती की है.*

*(49) करदाताओं के पैसे पर मौज कर रहे है उद्योगपति- रघुराज रंजन - गवर्नर भारतीय रिजर्व बैंक.*

*(50) देश में प्रतिवर्ष 35 लाख युवा ग्रेजुएट होते है, तथा 65 लाख युवा 12 वीं पास करते हैं. परन्तु सरकार ने 30 लाख जॉव की छटनी की है.*

*(53) अर्जुन सेन गुप्ता कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार :- देश में 29 करोड़ लोग भुखमरी के शिकार हैं, 83 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन जी रहे हैं.*

*लेख की साम्रगी - विभिन्न समाचार पत्रों, मंडल आयोग की रिपोर्ट, लोकसभा में लगाये प्रश्न,I'm आर.टी.आई.,विभिन्न कमीशनों की रिपोर्ट और विभिन्न लेखकों की पुस्तकों पर आधार

🙏🙏जय भारत 🙏🙏भीम

Thursday 13 October 2016

Rss के बारे में

👉🏻 *इंडिया का सबसे बड़ा गद्दार व आतंकवादी संगठन RSS  की पोल खोलों ....*✍🏻
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
👉🏻 RSS का असली नाम  रेसियल सुपिरियरिटी सिस्टम अर्थात उच्च जातिय व्यवस्था है राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ नहीं |
👉🏻 RSS ने अपने कार्यालय पर तिरंगा झंडा लहराना *52 वर्षो* के बाद शुरु किया है|
👉🏻 RSS का आज़ादी के आंदोलन से कोई सरोकार नहीं है ।
👉🏻 जब 15 अगस्त को देश आजाद हुआ तब RSS ने स्वाधीनता दिवस मनाने से इंकार किया था और 1947 से लेकर 2002 तक नागपुर मुख्यालय पर तिरंगा कभी नहीं फहराया।
👉🏻 वर्ष 2002 के बाद बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश के बाद तिरंगा फहराया गया ।
👉🏻 सरदार पटेल ने RSS पर जब प्रतिबन्ध (बैन) लगाया था तब उसने (RSS) ने बैन हटाने के लिए जो हलफनामा दिया था उसमे निम्नलिखित मुख्य बातें थी ~
1) कि वो भारत के संविधान को मानेगा, जिसको वो नहीं मानता था और आज भी नहीं मानता है | इसीलिए स्वयं सेवक गैर संवैधानिक बयान देते है ।
2) संविधान में निहित राष्ट्रीय प्रतीकों का विरोध नहीं करेगा, जिसके वो हमेशा खिलाफ रहा और आज भी है |
3) RSS कभी भी राजनीति में नहीं आएगा, परंतु आज वो सरकार में है ।
👉🏻 कुल मिलाकर RSS देशद्रोही संस्था है जो तब भी थी और आज भी देश का सामाजिक ताना बाना बिखेरना चाहती है।
👉🏻 जब भी कोई RSS वाला देशभक्ति की बात करे, उसे कहिए
*"केस नंबर 176, नागपुर, 2001"*
वह शर्म से सिर झुका लेगा | हां, यह तभी होगा अगर उनमें लाज बची हो |
👉🏻 सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट और संविधान विशेषज्ञ नितिन मेश्राम की हजारों किताबों की शानदार लाइब्रेरी में इस केस का जजमेंट रखा है |
👉🏻 26 जनवरी 2001 को तीन युवक नागपुर में RSS के हेडक्वार्टर पहुंचे | उनके पास भारत का राष्ट्रीय ध्वज था | वे उस बिल्डिंग पर पहली बार राष्ट्रीय झंडा फहराना चाहते थे | वहां मौजूद RSS के बड़े नेताओं ने ऐसा नहीं करने दिया और पुलिस केस कर दिया | उनकी सरकार थी, पुलिस ने झंडा जब्त कर लिया | आखिरकार कोर्ट ने तीनों को बरी कर दिया | सबसे बड़ी बात.... आदेश में दर्ज है कि झंडे को पूरी मर्यादा के साथ हिफाजत में रखा जाए |
👉🏻 इस घटना की शर्म की वजह से अब RSS ने कहीं कहीं राष्ट्रीय झंडा फहराना शुरू कर दिया है |
👉🏻 RSS एक विश्व का सबसे बड़ा आतंकवादी संगठन है । हम OBC, SC, ST, MINORITY तथा अदर गैर मनुवादी भारतीय को आर्थिक + सामाजिक +मानसिक और यहाँ तक की शारीरिक तौर से हिन्दू नाम की चादर ओढ़ाकर गुलाम बना रखा है।
☸ RSS का मकसद तथागत बुद्ध, सम्राट अशोक, ज्योतिबा फूले, पेरियार रामास्वामी नायकर, ललई सिंह यादव, कबीर,  नानक, रविदास, शिवाजी सावित्री बाई फुले, शाहू महाराज, बाबू जगदेव तथा अन्य भारतीय मूल के महापुरुषों के संघर्षो को नेस्तनाबूत करना है ।
👉🏻 RSS संगठन भारत के संविधान को बदल कर अपना मनुवादी संविधान हम भारतीयों पर लागू करके सिर्फ और सिर्फ अपना मनुवादी राज्य निर्मित करना चाहता है |
☸ आओ मूल भारतीयों हम सब साथ मिलकर इस भारत के सबसे बड़े आतंकवादी संगठन *"RSS"* को पूरी तरह जड़ से उखाड़ फेके और इस महान भारतवर्ष की रक्षा करें ।

🙏🏻🙏🏻☸ *जय 💚 भारत* ☸🙏🏻🙏🏻
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Wednesday 12 October 2016

करवाचौथ एक अंधविश्वास

🍂करवाचौथ: एक अन्धविश्वास🍃

करवाचौथ व्रत या पत्नी को गुलामी का अहसास दिलाने का एक और दिन?
'श्रद्धा या अंधविश्वास'
दोस्तों क्या महिला के उपवास रखने से पुरुष की उम्र बढ़ सकती है?
क्या धर्म का कोई ठेकेदार इस बात की गारंटी लेने को तैयार होगा कि करवाचौथ जैसा व्रत करके पति की लंबी उम्र हो जाएगी? मुस्लिम नहीं मनाते, ईसाई नहीं मनाते, दूसरे देश नहीं मनाते और तो और भारत में ही दक्षिण, या पूर्व में नहीं मनाते लेकिन इस बात का कोई सबूत नहीं है कि इन तमाम जगहों पर पति की उम्र कम होती हो और मनाने वालों के पति की ज्यादा,
क्यों इसका किसी के पास जवाब नही है?
यह व्रत ज्यादातर उत्तर भारत में प्रचलित हैं, दक्षिण भारत में इसका महत्व ना के बराबर हैं, क्या उत्तर भारत के महिलाओं के पति की उम्र दक्षिण भारत के महिलाओं के पति से कम हैं ?
क्या इस व्रत को रखने से उनके पतियों की उम्र अधिक हो जाएगी?
क्या यह व्रत उनकी परपरागत मजबूरी हैं या यह एक दिन का दिखावा हैं?
दोस्तों इसे अंधविश्वास कहें या आस्था की पराकाष्ठा?
पर सच यह हैं करवाचौथ जैसा व्रत महिलाओं की एक मजबूरी के साथ उनको अंधविश्वास के घेरे में रखे हुए हैं।
कुछ महिलाएँ इसे आपसी प्यार का ठप्पा भी कहेँगी और साथ में यह भी बोलेंगी कि हमारे साथ पति भी यह व्रत रखते हैं। परन्तु अधिकतर महिलाओं ने इस व्रत को मजबूरी बताया हैं।
एक आम वार्तालाप में मैंने खुद कुछ महिलाओं से इस व्रत के बारे में पूछा उनका मानना हैं कि यह पारंपरिक और रूढ़िवादी व्रत है जिसे घर के बड़ो के कहने पर रखना पड़ता हैं क्योंकि कल को यदि उनके पति के साथ संयोग से कुछ हो गया तो उसे हर बात का शिकार बनाया जायेगा,
इसी डर से वह इस व्रत को रखती हैं।
क्या पत्नी के भूखे-प्यासे रहने से पति दीर्घायु स्वस्थ हो सकता है?
इस व्रत की कहानी अंधविश्वासपूर्ण भय उत्पन्न करती है कि करवाचौथ का व्रत न रखने अथवा अज्ञानवश व्रत के खंडित होने से पति के प्राण खतरे में पड़ सकते हैं, यह महिलाओं को अंधविश्वास और आत्मपीड़न की बेड़ियों में जकड़ने को प्रेरित करता है।
कुछ लोग मेरे इस स्टेटस पर इतनी लंबी-चौड़ी बहस करेगे लेकिन एक बार भी नहीं बतायेगे कि, ऐसा क्यों है कि, सारे व्रत-उपवास पत्नी, बहन और माँ के लिए ही क्यों हैं? पति, भाई और पिता के लिए क्यों नहीं.?
क्योंकि धर्म की नज़र मे महिलाओं की जिंदगी की कोई कीमत तो है पत्नी मर जाए तो पुरुष दूसरी शादी कर लेगा, क्योंकि सारी संपत्ति पर तो व्यावहारिक अधिकार उसी को प्राप्त है। बहन, बेटी मर गयी तो दहेज बच जाएगा। बेटी को तो कुल को तारना नहीं है, फिर उसकी चिंता कौन करे?
अगर महिलाओं को आपने सदियों से घरों में क़ैद करके रख के आपने उनकी चिंतन शक्ति को कुंद कर दिया हैं तो क्या अब आपका यह दायित्व नहीं बनता कि, आप पहल करके उन्हें इस मानसिक कुन्दता से आज़ाद करायें?
मैंने कुछ शादीशुदा लोगों से पूछना चाहता हूँ की क्या आज के युग में सब पति पत्निव्रता हैं?
आज की अधिकतर महिलाओं की जिन्दगी घरेलू हिंसा के साथ चल रही हैं जिसमें उनके पतियों का हाथ है।
ऐसी महिलाओं को करवाचौथ का व्रत रखना कैसा रहेगा?
भारत का पुरुष प्रधान समाज केवल नारी से ही सब कुछ उम्मीद करता हैं परन्तु नारी का सम्मान करना कब सोचेगा?
इस व्रत की शैली को बदलना चाहिए जिससे महिलाएँ दिन भर भूखी-प्यासी ना रहे,
एक बात और
मैंने अपनी आँखो से अनेक महिलाओ को करवा चौथ के दिन भी विधवा होते देखा है जबकि वह दिन भर करवा चौथ का उपवास भी किये थी,
दो वर्ष पहले मेरा मित्र जिसकी नई शादी हुई और पहली करवाचौथ के दिन ही घर जाने की जल्दी मे एक सड़क हादसे में उसकी मृत्यु हो गई, उसकी पत्नी अपने पति की दीर्घायु के लिए करवाचौथ का व्रत किए हुए थी, तो क्यों ऐसा हुआ?
करवा चौथ के आधार पर जो समाज मे अंध विश्वास, कुरीति, पाखंड फैला हुआ है, उसको दूर करने के लिए पुरुषों के साथ खासतौर से महिलाए अपनी उर्जा लगाये तो वह ज्यादा बेहतर रहेगा।
मुझे पता है मेरे इस लेख पर कुछ लोग मुझपर ही उँगली उठाएंगे, धर्म विरोधी भी कहेंगे लेकिन मुझे कोई फर्क नही पड़ता,
क्योंकि मैंने सच लिखने की कोशिश की है, मैं हमेशा पाखंड पर चोट करता रहा हूँ और कारता रहूँगा ।
मैं वही लिखता हूँ जो मैं महसूस करता हूँ।
इस सम्बन्ध मे आपसे अनुरोध है की इस पाखंड को खत्म करने मे पुरजोर समर्थन दे।
🙏🏿🙏

ख़बरों की खबर

"ख़बरों की खबर"

ख़बरें
जिन्दगीं के
खतरनाक आयामों से
ख़बरदार करती है !

ख़बरें
गलत रास्तों से
होशियार करती हैं !

ख़बरें
इंसान को बुराइयों से
लड़ने को
तैयार करती हैं !

लेकिन
ख़बरें
जब बाजारूँ हो जाये
तब यह
सत्ता की रखैल बन जाती है
एंकर दलाल हो जाते हैं
रिपोर्टर भड़वे हो जाते हैं
तब
समाचारों से
शिष्टाचार गायब हो जाता है
ख़बर अब खबर नहीं रहती
वो कठपुतली बन जाती है
जिसकी डोर
सत्ता और पूँजीपतियों के हाथों
बेच दी जाती है !

तब

मिडिया के नाम पर
पाखंडों का नंगा नाच चलता है !

ब्रेकिंग न्यूज
बहुत कुछ तोड़ देता है !

प्राइम टाइम में
कुछ भी प्राइम नहीं रह जाता !

एंकर खबरों के नाम पर
मर्सिया गाने लगते है !

रिपोर्टर
दरिंदों के सपोर्टर हो जाते हैं !

टीवी
कैंसर का संक्रमण
फ़ैलाने लगता है !

भूख के सवाल
"सीधी-बात" से हल होते हैं !

गरीबी को
ज्योतिषशास्त्र से
दूर किया जाता है !

बेरोजगारी
कावड़ से दूर होने लगती है !

चीख का सौदा होता है
दर्द की बोली लगती है
राष्ट्रवाद बिकने लगता है
जमीर ,
जमीन पर रौंद दिया जाता है
इंसानियत हैवानियत में
तब्दील हो जाती है
टी आर पी के हिसाब से
नफरतें तय की जाती हैं !

दाढ़ी में आतंक
मूंछों में जाती
कपड़ों में धर्म
और
खाने में अधर्म
की खोज होती है !

पाखंडियों और धूर्तों की
कपटपूर्ण बकवासों में
पूरे दिन की असली ख़बरें
गुम हो जाती है !

मंदिरों के घंटों में
झोपड़ों की चीखें
दबा दी जाती है !

शनि के महात्मय में
गरीबी के पै के लिए
कोई जगह नहीं !

न्याय के नाम पर
अन्याय की मार्केटिंग का
यह धंधा तब तक
चलता रहेगा
जब तक
उधोगपतियों के पैसों पर
यह पलता रहेगा !


पत्रकारिता का यह समूह
लुटेरों का गिरोह बन चुका है !

मिटटी को छोड़
हवा में उड़ चुका है !

अपने कर्तव्यों से
यह कबका फिर चूका है !

लोकतंत का चौथा खम्भा
औंधे मुंह गिर चूका है !
"ख़बरों की खबर"

ख़बरें
जिन्दगीं के
खतरनाक आयामों से
ख़बरदार करती है !

ख़बरें
गलत रास्तों से
होशियार करती हैं !

ख़बरें
इंसान को बुराइयों से
लड़ने को
तैयार करती हैं !

लेकिन
ख़बरें
जब बाजारूँ हो जाये
तब यह
सत्ता की रखैल बन जाती है
एंकर दलाल हो जाते हैं
रिपोर्टर भड़वे हो जाते हैं
तब
समाचारों से
शिष्टाचार गायब हो जाता है
ख़बर अब खबर नहीं रहती
वो कठपुतली बन जाती है
जिसकी डोर
सत्ता और पूँजीपतियों के हाथों
बेच दी जाती है !

तब

मिडिया के नाम पर
पाखंडों का नंगा नाच चलता है !

ब्रेकिंग न्यूज
बहुत कुछ तोड़ देता है !

प्राइम टाइम में
कुछ भी प्राइम नहीं रह जाता !

एंकर खबरों के नाम पर
मर्सिया गाने लगते है !

रिपोर्टर
दरिंदों के सपोर्टर हो जाते हैं !

टीवी
कैंसर का संक्रमण
फ़ैलाने लगता है !

भूख के सवाल
"सीधी-बात" से हल होते हैं !

गरीबी को
ज्योतिषशास्त्र से
दूर किया जाता है !

बेरोजगारी
कावड़ से दूर होने लगती है !

चीख का सौदा होता है
दर्द की बोली लगती है
राष्ट्रवाद बिकने लगता है
जमीर ,
जमीन पर रौंद दिया जाता है
इंसानियत हैवानियत में
तब्दील हो जाती है
टी आर पी के हिसाब से
नफरतें तय की जाती हैं !

दाढ़ी में आतंक
मूंछों में जाती
कपड़ों में धर्म
और
खाने में अधर्म
की खोज होती है !

पाखंडियों और धूर्तों की
कपटपूर्ण बकवासों में
पूरे दिन की असली ख़बरें
गुम हो जाती है !

मंदिरों के घंटों में
झोपड़ों की चीखें
दबा दी जाती है !

शनि के महात्मय में
गरीबी के पै के लिए
कोई जगह नहीं !

न्याय के नाम पर
अन्याय की मार्केटिंग का
यह धंधा तब तक
चलता रहेगा
जब तक
उधोगपतियों के पैसों पर
यह पलता रहेगा !


पत्रकारिता का यह समूह
लुटेरों का गिरोह बन चुका है !

मिटटी को छोड़
हवा में उड़ चुका है !

अपने कर्तव्यों से
यह कबका फिर चूका है !

लोकतंत का चौथा खम्भा
औंधे मुंह गिर चूका है !

आरक्षण के बारे में

मेरठ। उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण समाज ने जाति आधारित आरक्षण खत्म करने की मांग की है। उत्तर प्रदेश ब्राह्मण महासभा ने रविवार को मेरठ में सवर्ण समाज महासम्मेलन में जाति आधारित आरक्षण खत्म करने और आर्थिक आधार पर आरक्षण लागू किये जाने की माँग की।

http://www.nationaldastak.com/story/view/brahmins-again-talking-about-reservation-on-the-basis-of--economical-condition-

ब्राह्मण जाति आधारित आरक्षण को ही खत्म करने कि बात करते हैं

कभी भी जातियों को खत्म करने कि बात नहीं करते

जाति आधारित संगठनों को यह लोग बढावा देते हैं
अपने ब्राह्मणवादी मिडिया दवारा जाति आधारित संगठन का प्रचार प्रसार करते हैं
नेताओं से उस जातिगत संगठन को डोनेशन देते हैं
ताकि जातियाँ मजबूत हो सके
जातियाँ मजबूत होगी
तो ब्राह्मणवाद मजबूत होगा
लोग जातियों में बंट कर अपनी न्याय कि  लड़ाई अलग अलग लडेगें
तो यह सब को अलग अलग करके मारेगें
अत्याचार करेगें
सबको तोड कर खुद राज करेगें
और किसी को भी जीवन जीने नहीं देगें
सबको रोटी कपड़ा मकान में उलझा कर रखेंगे
हमारे लोगों को संस्कृत पढायेगें
इनके बच्चों को प्राइवेट स्कुलों में
कान्वेंट में अंगेजी शिक्षा देगें

साथियों ऐसा नहीं है कि यह जातिगत आधार पर आरक्षण को खत्म करने कि मांग कर रहें हैं

और आर्थिक आधार लाना चाहते हैं
यह एक षडयंत्र के तहत हो रहा है

हमारे लोगों का ध्यान भटका कर यह लोग हमें माञ आरक्षण कि लड़ाई में ही लगाना चाहते हैं
जबकि एक तरफ
इन्होंने
निजीकरण के माध्यम से
ठैका प्रथा के माध्यम से
पीपीपी मोड के माध्यम से
बैकलॉग खत्म करके
प्रमोशन में आरक्षण को न्यायपालिका के माध्यम से खत्म करके
उच्च शिक्षा
जैसे
मेडिकल
इंजिनियरिंग
MBA
PHD
लगभग सभी का निजिकरण करके मेनेजमेंट कोटे से मतलब पैसे से
सारा का सारा
प्रतिनिधित्व (आरक्षण ) खत्म कर दिया है
साथियों आरक्षण कोई खैरात नहीं है
यह संवैधानिक अधिकार है
जो शासन प्रशासन में हमारे लोगों कि
वंचित समाज कि
पिछड़ों कि
जनसंख्या के हिसाब से भागीदारी है
इसका आधार
गरीबी नहीं है
इसका आधार आर्थिक नहीं है

इसका आधार है
1)सामाजिक और
 2)शैक्षणिक पिछड़ापन

यह गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम नहीं है
उदाहरण के रूप में एक बाप के चार बेटे हैं
और उसके पास चार बिघा जमीन है

तो वह बाप कि बेटों के लिए एक एक बिघा हिस्सेदारी है
इसी तरह हमारी भारत में जनसंख्या के हिसाब से शासन प्रशासन में हिस्सेदारी है

साथियों बार बार आरक्षण का नाम लेकर
जातिगत आरक्षण को खत्म करने का नाम लेकर हमें गुमराह किया जा रहा है

हकिकत में
हमारे लोगों को माञ 49% प्रतिशत में समेट दिया गया है
15% लोग 51% आरक्षण का फायदा ले रहें हैं

आप लोगों नें आये दिनों में पढा होगा कि
ओबीसी कि मेरीट
जनरल से ऊपर जा रही है
परन्तु ओबीसी का वह केंडिडेट  सामान्य से ऊपर नम्बर ला रहा है
उसको रोस्टर रूल के तहत
उनको 51% अनारक्षित कोटे में जाना चाहिए था
परन्तु उसको आरक्षित कोटे में ही रखा जा रहा है
इसका मतलब यह हुआ कि हमारे लोगों को जो सामान्य से ज्यादा नम्बर ला रहें हैं
उनकों अगर अनारक्षित कोटे में नहीं लिया जा रहा है
इसका सिधा मतलब यह है कि
हमारे लोगों को ही नुकसान हो रहा है
और यह15% लोग सिधा सिधा 51% आरक्षण ले रहें हैं

इसलिए यह एक षडयंत्र के रूप में हैं
समझने विचार करने कि जरूरत है
समाज को आरक्षण (प्रतिनिधित्व ) क्या है
उसका मतलब बताने कि जरूरत है
संविधान के आर्टिकल 340 341 व 342 क्या है
आरक्षण का आधार क्या है
रोस्टर रूल क्या है
इसका प्रचार प्रसार करने कि जरूरत है
हमारे समाज को जानकार बनाने कि जरूरत है
ताकि वो संवैधानिक हकों कि रक्षा कर सके

Tuesday 11 October 2016

Who is reponsible of 2000 years slavery?

The country's 2,000 years of slavery of the blame?
Bhante Sumedhanand sermon was once a gathering, the gathering of the Buddhist Dhamma a Brahmin's voice echoed throughout the country because of the slave was born. Bhante then asked him Brahmin -
Srmn- O Brahmin! You say that your country became a slave of the Buddhist Dhamma.
Brahmin - yes Bhante! Buddhist Dhamma because my country became a slave.
Shramana - O Brahmin! When was the Buddha Dhamma in India?
Brahmin - O Bhante! About 2530 years ago.
Shramana - O Brahmin! Dhamma Buddhist empire in India was how long?
Brahmin - O Bhante! Until 2200 years.
Shramana - O Brahmin! The 320 years between India captive to a foreign king.
Brahmin - Bhante not.
Shramana - O Brahmin! Who was the last emperor of the Buddhist Dhamma?
Brahmin - O Bhante! Brihadratha emperor.
Shramana - O Brahmin! When the empire was Brihadratha.
Brahmin - O Bhante! Until 2200 years.
Shramana - O Brahmin! Brihadratha were killed by whom?
Brahmin - O Bhante! Sunga Pushpmitr Brihadratha by the commander.
Shramana - O Brahmin! India Brahmin Pushpmitr Sung after capturing what was announced?
Brahmin - O Bhante! The heads of the mighty and bring the Buddhists, the more money will be given to him.
Shramana - O Brahmin! Sunga Pushpmitr legislation which was created after the empire?
Brahmin - O shramana! Sumit Bhargava 2176 years ago was created by Manu.
Shramana - O Brahmin! What has been the creation of legislation that Manu who?
Brahmin - Hey Randy! Thousands of Indian society into castes Manu legislation by distributing the country's unity and strength was incised, and untouchability Oocnic state was established, the Indian people were jealous of each other, all except just the few warrior class India bans on people to take up arms, to take revenge from the other Indian people invitation for foreign people started to attack India.
Shramana - O Brahmin! The polity of the country due to the Buddha's Dhamma or righteousness Brahmin.
Brahmin - O Bhante! The Brahmin.
Shramana - O Brahmin! Century Buddhist Dhamma which was on the verge of completion?
Brahmin - O Bhante! Around the 7th century.
Shramana - O Brahmin! What's your shankaracharyas century Buddhist Dhamma announced that India was free?
Brahmin - O Bhante! In the 8th century.
Shramana - O Brahmin! Muhammad bin Qasim in 712 AD when the Emperor Dahir invaded, the emperor Dahir of losing what was the reason?
Brahmin - O shramana! Qasim said that if a Brahmin temple of the goddess, when he dropped the flag will be part Dahir army. Brahmani superstition was that the army ran away and we lost. Thus the foundation of slavery in India in the year 712 by a Brahmin because of treason laid.
Shramana - O Brahmin! After the 7th century by Mahmud Ghazni Somnath looted, whose power in the country was
Brahmin - O shramana! Brahmin religion.
Shramana - O Brahmin! Mahmud Ghazni when a million women in detention in India for his harem took their land, and whose power was in India?
Brahmin - O shramana! Brahmin religion.
Shramana - O Brahmin! Dhaba at the main gate of the fortress of Somnath Mahmood said the army was doing the Brahmin?
Brahmin - O shramana! Sitting on the walls of the fortress troops was pleased with the idea that Muslims still daring few minutes we will be destroyed by God.
Shramana - O Brahmin! In 1562, the year that the Jaipur ruler Bihari Mal Anvr Akbar did before?
Brahmin - O Bhante! King without a sword and shield raised Bihari Mal succumbed Akbar and his daughter was married to him, too.
Shramana - O Brahmin! Ranthambhore, Marwar, Bikaner, Jodhpur and Jaisalmer Akbar before kings did?
Brahmin - O Bhante! By surrender their unmarried girls proceeded to hand over to Akbar's harem.
Shramana - O Brahmin! When Guru Gobind Singh and Shivaji were fighting the Mughals in Punjab and Maharashtra respectively, the Brahmin's army was doing?
Brahmin - O shramana! Rajputs, Marathas and other Indian blood thirsty king Shivaji and Guru Gobind Singh were made.
Shramana - O Brahmin! Maharana Pratap had fought all his life through which the kings?
Brahmin - O Bhante! Ghulam Akbar Indian kings.
Shramana - O Brahmin! Rana Sanga who invaded India to be invited?
Brahmin - O Bhante! Beaver invited.
Shramana - O wise Brahmin! We Indians have become so impotent, how?
Brahmin - O Bhante! Brahmanical religion, karma, luck and principles Brhmsaty made impotent the Indian people.
Shramana - O wise Brahmin! Now tell your country or Brahmanical religion of slaves because of the Buddha's Dhamma.
Brahmin - O shramana! The Brahmanical religion .. 

रावण का ही दहन क्यों?

_*रावण का ही दहन क्यो?*
__इन्द्रदेव ने ऋषि गौतम की पत्नी अहिल्या के साथ बलात्कार किया उसका दहन क्यो नही?
__राजा पाण्डु ने माधुरी के साथ बलात्कार किया उसका दहन क्यो नही?
__पराशर ऋषि ने केवट की लड़की सत्यवती के साथ बलात्कार किया उसका दहन क्यो नही?
__बृहस्पति की पत्नी तारा का चन्द्र ने अपहरण करके बलात्कार किया उसका दहन क्यो नही?
__ब्रह्मा ने अपनी पुत्री सरस्वती के साथ जबरदस्ती वर्षो तक बलात्कार किया उसका दहन क्यो नही??
__राजा नरक की रानियों के साथ कृष्ण ने जबरदस्ती सहवास/विवाह रचाया उसका दहन क्यो नही?
__कृष्ण ने अपने मामा रामण की पत्नी के साथ खुल्लम खुल्ला अवैध सम्बन्ध बनाया उसका दहन क्यो नही?
__भीष्म ने अम्बा;अम्बीका; अम्बालिका का अपहरण किया उसका दहन क्यो नही?
__राम के पूर्वज राजा दण्ड ने शुक्राचार्य की पुत्री अरजा के साथ बलात्कार किया उसका दहन क्यो नही?
__वायु देवता ने राजर्षि कुशनाश की कन्याओं के साथ बलात्कार करने कि कोशिश की उसका दहन क्यो नही?
__वीष्णु ने जालन्घर की पत्नी वृन्दा के साथ बलात्कार किया उसका दहन क्यो नही?
__आज बलात्कार इसीलिए तो नहीं रूक रहा है क्योकि हम बलात्कारियों की पूजा करते है;और जिस रावण ने अपनी बहन का बदला लेने के लिए सीता को ले गया पर उसे छुआ तक नहीं उसे सम्मान पूर्वक संभाला उस रावण को जलाते हैं!_

मूलनिवासी इतिहास

sir Manohar barkade ji ki wall se मूलनिवासी इतिहास *ये है भारत का असली इतिहासl बाकि सब झूठ हैl* इस पोस्ट के अन्दर दबे हुए इतिहास के प...