दीपावली मनाने की हिन्दू मान्यताएं :
हिन्दू लोग दीपावली का त्यौहार क्यों मानते हैं ??
दोस्तों, इसके उत्तर में इनका कोई एक मत नही है कुछ हिंदुओं का मानना है के,
एक दिन देवता विष्णु ने राजा बलि को पाताल लोक का इंद्र (राजा) बनाया था और उनका देव् लोक सुरक्षित बच गया था. तब विष्णु और इंद्र आदि देवताओं ने मिल के ख़ुशी के दिए जला कर दिवाली मनाई उनके स्वर्ग का सिंघाशन बचे रहने की ख़ुशी में शुरू किया गया यह उत्सव कुछ समय बाद त्यौहार बन गया .
दूसरा मत:-
इसी दिन समुद्र मंथन के समय क्षीर सागर से लक्ष्मी जी पैदा हुई थी और भगवान् विष्णु को अपना पति स्वीकार किया जिसकी ख़ुशी में दिवाली मनाई जाने लगी.
तीसरा मत :-
नरका शुर नाम का एक अनार्य राजा था उसने लगभग 16 हजार आर्य योध्दाओं सहित आर्य स्त्रियों को अपने बस में कर रक्खा था . कृष्ण यद्दीप अनार्य था परंतु वह कौम का द्रोही था और उसने आर्यों की स्त्रियों की मुक्ति हेतु नरका सुर से संघर्स किया और सत्यभामा को धोका देकर अपने मोहपाश में फसा ले गए जिसकी ख़ुशी में दिवाली मनाई जाने लगी.
और चौथा मत: -
ये ही इनका सबसे प्रचलित हैं की राम चंद्र जी 14 वर्ष का बनवास बिता कर लंका के महा राजा रावण की हत्या करके इसी दिन अयोध्या वापस आये उनके आने की ख़ुशी में स्वागत में अयोध्यावासियों ने दीप जला के नगर को सजाया तभी से दिवाली मनाई जाने लगी .
दोस्तों वास्तविकता क्या है जाने:-
दिवाली हिंदुओं का बहोत खर्चीला त्यौहार है इस त्यौहार के बाद कुछ लोग तो मालामाल हो जाते हैं लेकिन अधिकतर लोग तंगी के शिकार भी हो जाते हैं इस लिए हमें सावधान हो जाने की जरुरत है .
त्यौहार के नाम पे कई करोड़ रुपयों के बारूद आतिशबाजी के रूप में नष्ट कर दिए जाते हैं यह किसी भी विकास शील देश के लिए समझदारी का काम नही हो सकता है, यदि इन्ही रुपयों को राष्ट्रीय विकास के लिए खर्च किया जाता तो निशिचत रूप से देश के विकशित होने में मदद मिलती.
पर दोस्तों, इन वैश्य (व्यपारियों) को देश के हित की किसी बात से क्या लेना देना है इनको तो अपने लिए अधिक से अधिक धन इकठ्ठा करने से मतलब है, इस बात से कोई विवाद नही के दिवाली का त्यौहार धन और वयापार से ही खास सम्बन्ध रखता है
दोस्तों, वैश्यों को अधिक लाभ दिवाली के अवसर पर होता है इस लिए उनके लिए दिवाली शुभ हो जाती है बाकि लोगो को इस त्यौहार से क्या मिलता है ??
सही मायने में कुछ नही !! तो इस त्यौहार में उनकी क्या भूमिका है उन्हें क्या कहा जाना चाइये खास कर उन लोगो को जो केवल किसी भी तरह परंपरा का निर्वाह करना आवश्यक मानते हैं
" ये वे ही लोग हैं जिन्हें कहा जाता है बहुजन समाज जिसमे आते हैं हम और आप , जो इस देश के मूलनिवासी समाज हैं "
दोस्तों , इस दृष्टि से उसे उल्लू कहा जा सकता है !! जी हाँ ! इस में कोई संदेह नही के दिवाली के दिन यही मूलनिवासी समाज उल्लू बनता है .
स्पष्टीकरण के लिए बिचार कर सकते हैं की " दिवाली के दिन सबसे अधिक पैसा कौन लोग कमाते हैं ?? व्यपार जगत में सबसे बड़ा कब्ज़ा किसका है ?? बाजार की बड़ी बड़ी दुक्कनो में अपने मूलनिवासी समाज के लोगों की दुकाने ढूंढने से भी न मिलेंगी यानि के वे सभी दुकाने वैश्य व्यपारियों की होती हैं मिठाई की दुकान से लेकर कपडा बर्तन घरेलू सभी सामान जेवर आदि की दुकाने सभी सवर्णो की हैं परंतु खरीदारी करने वाला सबसे बड़ा समूह बहुजन समाज मूलनिवासी समाज करता है. दिवाली के दिन खरीदारी करने के लिए यह समाज व्यवस्था करता है की दिवाली पर कुछ ख़रीद सके . और इसी कमाए गए धन का नाम है लक्ष्मी, लक्ष्मी को धन की देवी कहा जाता है , इसी से हिन्दू लोग धन को लक्ष्मी कहते हैं " लक्ष्मी " यानि की आपका "धन" .
तो दोस्तों , देखिये लक्ष्मी का वाहन उल्लू है और दिवाली के दिन हमारा धन यानि बहुजन समाज का धन (लक्ष्मी) बहुजन समाज के माध्यम से अर्थात अपनी सवारी उल्लू के माध्यम से चलकर बनिए के घर चला जाता है इस प्रकार से वैश्य बैठे ही बैठे बहुजन समाज की कमाई दिवाली के अवसर पर प्राप्त कर लेता है तो बताये उल्लू हमारे अलावा और कौन हो सकता है ??
दोस्तों , सच कहें तो लक्ष्मी के सवारी का सही अर्थ भी ये ही है अन्यतः लक्ष्मी जैसी धन की देवी को सवारी सवारी करने के लिए एक उल्लू ही मिला ??
इस धन की देवी की इतने बड़े पैमाने पर पूजा की जाती है फिर भी इस देश की आर्थिक हालात पर तरस आता है , सबसे अधिक भिखारियों की संख्या भारत में ही हैं .
दोस्तों, हम सभी जानते हैं उल्लू एक ऐसा पक्षी है जिसे उजाले में दिखाई नही पड़ता है और दूसरा भयानक बदसूरत भी लक्ष्मी जी को पता नही कैसे उल्लू पसन्द आ गया ??
तो दोस्तों, वैसे तो हिन्दू मत के अनुसार " राम, सीता और लक्ष्मण 14 वर्ष का बनवास काट कर जब आये तो उनके आने की ख़ुशी में नगर वासियों ने दीप सजाया तब से दिवाली की शुरुवात हुई " पर कहानी उन्ही हिन्दू ग्रंथो के अनुसार फिट नही बैठती है ऊपर से इन हिंदुओं के उलटे-पुल्टे क्रिया-कलाप उसे और भी आधारहीन बना देते हैं.
तो यदि यह मान भी लिया जाये की दिवाली अयोध्या से शुरू हुई तो उस दिन राम पूरे 14 वर्ष जंगल में बिताने के बाद अपने घर आये थे तो अयोध्या वासियों ने राम की पूजा अर्चना की होगी और आज भी दिवाली पर राम की पूजा होनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नही है यहाँ तो उलटे लक्ष्मी गणेश की पूजा होति है.....
...आखिर इन सब उलट पलट बातों के पीछे रहयस्य क्या है ?????
अधिक से अधिक धन को प्राप्त करने की चाहत में व्यपार के माध्यम से लोगो को ठगने तक की बात समझ में आती है लेकिन एक त्यौहार के अवसर पर अधिक धन पाने के लिए जुए जैसा निकृष्ट कार्यक्रम भी चलता है और अधिकतर तो अपने पास की लक्ष्मी को गवां देते है ...दोस्तों शुभ-लाभ और सुबह दिवाली दोनों के लिए है लेकिन क्या जुए में सब कुछ हार जाने वाले के लिए भी दिवाली शुभ कही जाएगी ??
जुआ खेलने का उद्देश्य भी लक्ष्मी अर्जन करने से ही है किन्तु सोचने की बात यह है के हिन्दू धर्म में त्यौहार के अवसर पर धन कमाने का बिकल्प जुआ बताता है
.....अरे,,, इन्हें तथागत बुद्ध के आष्टांगिक मार्ग से सिख लेनी चाहिए ,सम्यक आजीविका कैसे कमाई जाये यह तथागत बुद्ध ने बड़े ही सरल और स्पष्ट ढंग से बताया है.. .तो दोस्तों, दीपावली के दिन लक्ष्मी (धन) की कामना करने वाले लक्ष्मी की पूजा करते हैं ..सभी लोगो को धन प्राप्त हो न हो किन्तु व्यापारियों के यहाँ तो लक्ष्मी आ ही जाती हैं और जिनके पास लक्ष्मी नही आयीं वह यह मान के प्रसन्न होता है के उसके घर में भले ही धन नही आया किन्तु रात में धन की देवी लक्ष्मी जरूर आयी होंगी जिस से उसका घर धन्य हो गया होगा और उसी रात से सम्पन्नता का वास मान लेते हैं...और दोस्तों , गावँ व देहात में दिवाली की रात के बाद भोर के अँधेरे में महिलाएं सुप पिट पिट कर घर से दरिद्र को बाहर निकलती हैं वे मानती हैं के घर में लक्ष्मी का वास हो गया तो दरिद्र का क्या काम .??
दोस्तों , गरीब घर की महिलाएं जो अपने घर में दरिद्रता एक अनुभव करती हैं और अशिक्षा और धर्मान्धता के करण दरिद्र के असली रूप को नही जान पाती हैं और प्रत्येक वर्ष घर की दरिद्रता को भागने के लिए अंधरे में सुप पिट पीटकर थक जाती हैं किन्तु उनकी दरिद्रता नही जाती है ....
तो क्या ये लक्ष्मी पूजन और सुप पीटने से देश की आर्थिक स्थिति में कोई सुधर हुआ ?? नही !!.
यदि किसी के आर्थिक स्थिति में सुधर होता है तो मात्र वैश्यो का और उन्ही के लिए ये दिवाली शुभ है उन्ही को होने वाला लाभ - शुभ है .
दोस्तों , वास्तव में दीपावली के नाम पे राम नाम की कहानी जोड़ दी गयी है , जबकि राम का दिवाली के साथ कोई सम्बन्ध नही है,,,,,वेदों और हिन्दू ग्रंथो के प्रसिद्ध विद्वान सुरेंद्र अज्ञात जी दिवाली के बारे में लिखते हैं वाल्मीकि रामायण में राम के अयोध्या लौटने में जो वर्णन किया गया है उसमे एक बार भी " दीप " शब्द का प्रयोग नही किया हुआ है वहां लिखा हुआ मिलता है के " राम दिन के समय अयोध्या आये थे उनके स्वागत में अयोध्यावासियों ने उनके रस्ते पे सुगन्धित द्रव्य बिखेरे और फूलों की वर्षा की और चहल - पहल का माहौल था .( देखें -वाल्मीकि रामायण ,युद्ध काण्ड सर्ग १२७)
और दूसरे पुरे रामायण में भी राम के स्वागत में रात आयोजित किये गए किसी भी समारोह का कोई जिक्र उपलब्ध नही होता इससे यह अस्पष्ट हो जाता है के राम का दिवाली कोई समंब्ध नही है.
दोस्तों , एक बात और देखते हैं के राम अयोध्या कब वापस आये यानि के किस महीने में ,,,,भारतीय गणना के अनुसार दीपावली कार्तिक मॉस की अमावस्या के दिन होती है परंतु वाल्मीकि रामायण और पदम पुराण आदि ग्रंथो के अनुसार गणना करने पर राम के अयोध्या में आने का समय फाल्गुन व चैत मॉस सिद्ध होता है न के कार्तिक में (देखें -पंडित हरी शंकर कृत ' त्यौहार पद्धति ' ) ऐसे में दिवाली का राम से दूर दूर तक कोई सम्बन्ध नही रह जाता है....
और साथ में गणेश और लक्ष्मी की पूजा भी की जाती है
हिंदुओं के लिए दीपावली मात्र लक्ष्मी और गणेश की पूजा मात्र है यही हिंदुओं की पहेली है ...
दोस्तों , किन्तु दीपावली का दूसरा पहलू प्रकाश अथवा ज्ञान से है कुछ बौद्ध बिचारको का मानना है की " जब सिद्धार्थ बुद्ध हो गए और लोगो को ज्ञान और उपदेश देने लगे तो लाखो की संख्या में लोग उनके धम्म में दीक्षित होने लगे और यह समाचार जब शुध्दोदन को मिला तो शुध्दोदन ने दर्शन पाने के लिए बुद्ध को बुलावा भेजा और बुद्ध ने वर्षावास के पश्चात आगमन की स्वीकृति दी . वर्षावास के बाद जब वे चले और उनके आने का समाचार जब शुध्दोदन को मिला तो उन्होंने तथागत बुद्ध की अगवानी में दीपो के प्रकाश से अपने नगर को सजाया और तब से ही दिवाली शुरू हुई "
इस सम्बन्ध में इतना ही कहा जा सकता है के हो सकता है के बुद्ध के कपिलवस्तु आने के अवसर पर उत्सव की ख़ुशी मनाई गयी......ख़ुशी के स्मरण में कई सालों तक वैसा ही जश्न मनाया हो किन्तु उसे त्यौहार के रूप में विशाल भारत के सभी वर्ण के लोगो द्वारा स्वीकार करना मुश्किल लगता है क्योंकि जो उच्च वर्णीय लोग हर पल तथागत बुद्ध की जड़ ही काटने पर लगे रहते हैं वे लोग बुद्ध के कपिलवस्तु आने की ख़ुशी में अपने घर में दीपोत्सव क्यों मनाएंगे ???
दोस्तों, तथागत बुद्ध से जुडी उपरोक्त घटना ने कपिलवस्तु के शाक्यों के लिए एक यादगार दिवस का स्वरुप धारण अवश्य कर लिया होगा किन्तु यह घटना एक त्यौहार के रूप में स्थायी रूप में स्थापित नही हो सकी लेकिन यह तो निश्चित हो चुका है के दीपावली का सम्बन्ध किसी राम से नही है............जय भीम- जय प्रबुद्ध भारत, नमो बुद्धाय!!
हिन्दू लोग दीपावली का त्यौहार क्यों मानते हैं ??
दोस्तों, इसके उत्तर में इनका कोई एक मत नही है कुछ हिंदुओं का मानना है के,
एक दिन देवता विष्णु ने राजा बलि को पाताल लोक का इंद्र (राजा) बनाया था और उनका देव् लोक सुरक्षित बच गया था. तब विष्णु और इंद्र आदि देवताओं ने मिल के ख़ुशी के दिए जला कर दिवाली मनाई उनके स्वर्ग का सिंघाशन बचे रहने की ख़ुशी में शुरू किया गया यह उत्सव कुछ समय बाद त्यौहार बन गया .
दूसरा मत:-
इसी दिन समुद्र मंथन के समय क्षीर सागर से लक्ष्मी जी पैदा हुई थी और भगवान् विष्णु को अपना पति स्वीकार किया जिसकी ख़ुशी में दिवाली मनाई जाने लगी.
तीसरा मत :-
नरका शुर नाम का एक अनार्य राजा था उसने लगभग 16 हजार आर्य योध्दाओं सहित आर्य स्त्रियों को अपने बस में कर रक्खा था . कृष्ण यद्दीप अनार्य था परंतु वह कौम का द्रोही था और उसने आर्यों की स्त्रियों की मुक्ति हेतु नरका सुर से संघर्स किया और सत्यभामा को धोका देकर अपने मोहपाश में फसा ले गए जिसकी ख़ुशी में दिवाली मनाई जाने लगी.
और चौथा मत: -
ये ही इनका सबसे प्रचलित हैं की राम चंद्र जी 14 वर्ष का बनवास बिता कर लंका के महा राजा रावण की हत्या करके इसी दिन अयोध्या वापस आये उनके आने की ख़ुशी में स्वागत में अयोध्यावासियों ने दीप जला के नगर को सजाया तभी से दिवाली मनाई जाने लगी .
दोस्तों वास्तविकता क्या है जाने:-
दिवाली हिंदुओं का बहोत खर्चीला त्यौहार है इस त्यौहार के बाद कुछ लोग तो मालामाल हो जाते हैं लेकिन अधिकतर लोग तंगी के शिकार भी हो जाते हैं इस लिए हमें सावधान हो जाने की जरुरत है .
त्यौहार के नाम पे कई करोड़ रुपयों के बारूद आतिशबाजी के रूप में नष्ट कर दिए जाते हैं यह किसी भी विकास शील देश के लिए समझदारी का काम नही हो सकता है, यदि इन्ही रुपयों को राष्ट्रीय विकास के लिए खर्च किया जाता तो निशिचत रूप से देश के विकशित होने में मदद मिलती.
पर दोस्तों, इन वैश्य (व्यपारियों) को देश के हित की किसी बात से क्या लेना देना है इनको तो अपने लिए अधिक से अधिक धन इकठ्ठा करने से मतलब है, इस बात से कोई विवाद नही के दिवाली का त्यौहार धन और वयापार से ही खास सम्बन्ध रखता है
दोस्तों, वैश्यों को अधिक लाभ दिवाली के अवसर पर होता है इस लिए उनके लिए दिवाली शुभ हो जाती है बाकि लोगो को इस त्यौहार से क्या मिलता है ??
सही मायने में कुछ नही !! तो इस त्यौहार में उनकी क्या भूमिका है उन्हें क्या कहा जाना चाइये खास कर उन लोगो को जो केवल किसी भी तरह परंपरा का निर्वाह करना आवश्यक मानते हैं
" ये वे ही लोग हैं जिन्हें कहा जाता है बहुजन समाज जिसमे आते हैं हम और आप , जो इस देश के मूलनिवासी समाज हैं "
दोस्तों , इस दृष्टि से उसे उल्लू कहा जा सकता है !! जी हाँ ! इस में कोई संदेह नही के दिवाली के दिन यही मूलनिवासी समाज उल्लू बनता है .
स्पष्टीकरण के लिए बिचार कर सकते हैं की " दिवाली के दिन सबसे अधिक पैसा कौन लोग कमाते हैं ?? व्यपार जगत में सबसे बड़ा कब्ज़ा किसका है ?? बाजार की बड़ी बड़ी दुक्कनो में अपने मूलनिवासी समाज के लोगों की दुकाने ढूंढने से भी न मिलेंगी यानि के वे सभी दुकाने वैश्य व्यपारियों की होती हैं मिठाई की दुकान से लेकर कपडा बर्तन घरेलू सभी सामान जेवर आदि की दुकाने सभी सवर्णो की हैं परंतु खरीदारी करने वाला सबसे बड़ा समूह बहुजन समाज मूलनिवासी समाज करता है. दिवाली के दिन खरीदारी करने के लिए यह समाज व्यवस्था करता है की दिवाली पर कुछ ख़रीद सके . और इसी कमाए गए धन का नाम है लक्ष्मी, लक्ष्मी को धन की देवी कहा जाता है , इसी से हिन्दू लोग धन को लक्ष्मी कहते हैं " लक्ष्मी " यानि की आपका "धन" .
तो दोस्तों , देखिये लक्ष्मी का वाहन उल्लू है और दिवाली के दिन हमारा धन यानि बहुजन समाज का धन (लक्ष्मी) बहुजन समाज के माध्यम से अर्थात अपनी सवारी उल्लू के माध्यम से चलकर बनिए के घर चला जाता है इस प्रकार से वैश्य बैठे ही बैठे बहुजन समाज की कमाई दिवाली के अवसर पर प्राप्त कर लेता है तो बताये उल्लू हमारे अलावा और कौन हो सकता है ??
दोस्तों , सच कहें तो लक्ष्मी के सवारी का सही अर्थ भी ये ही है अन्यतः लक्ष्मी जैसी धन की देवी को सवारी सवारी करने के लिए एक उल्लू ही मिला ??
इस धन की देवी की इतने बड़े पैमाने पर पूजा की जाती है फिर भी इस देश की आर्थिक हालात पर तरस आता है , सबसे अधिक भिखारियों की संख्या भारत में ही हैं .
दोस्तों, हम सभी जानते हैं उल्लू एक ऐसा पक्षी है जिसे उजाले में दिखाई नही पड़ता है और दूसरा भयानक बदसूरत भी लक्ष्मी जी को पता नही कैसे उल्लू पसन्द आ गया ??
तो दोस्तों, वैसे तो हिन्दू मत के अनुसार " राम, सीता और लक्ष्मण 14 वर्ष का बनवास काट कर जब आये तो उनके आने की ख़ुशी में नगर वासियों ने दीप सजाया तब से दिवाली की शुरुवात हुई " पर कहानी उन्ही हिन्दू ग्रंथो के अनुसार फिट नही बैठती है ऊपर से इन हिंदुओं के उलटे-पुल्टे क्रिया-कलाप उसे और भी आधारहीन बना देते हैं.
तो यदि यह मान भी लिया जाये की दिवाली अयोध्या से शुरू हुई तो उस दिन राम पूरे 14 वर्ष जंगल में बिताने के बाद अपने घर आये थे तो अयोध्या वासियों ने राम की पूजा अर्चना की होगी और आज भी दिवाली पर राम की पूजा होनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नही है यहाँ तो उलटे लक्ष्मी गणेश की पूजा होति है.....
...आखिर इन सब उलट पलट बातों के पीछे रहयस्य क्या है ?????
अधिक से अधिक धन को प्राप्त करने की चाहत में व्यपार के माध्यम से लोगो को ठगने तक की बात समझ में आती है लेकिन एक त्यौहार के अवसर पर अधिक धन पाने के लिए जुए जैसा निकृष्ट कार्यक्रम भी चलता है और अधिकतर तो अपने पास की लक्ष्मी को गवां देते है ...दोस्तों शुभ-लाभ और सुबह दिवाली दोनों के लिए है लेकिन क्या जुए में सब कुछ हार जाने वाले के लिए भी दिवाली शुभ कही जाएगी ??
जुआ खेलने का उद्देश्य भी लक्ष्मी अर्जन करने से ही है किन्तु सोचने की बात यह है के हिन्दू धर्म में त्यौहार के अवसर पर धन कमाने का बिकल्प जुआ बताता है
.....अरे,,, इन्हें तथागत बुद्ध के आष्टांगिक मार्ग से सिख लेनी चाहिए ,सम्यक आजीविका कैसे कमाई जाये यह तथागत बुद्ध ने बड़े ही सरल और स्पष्ट ढंग से बताया है.. .तो दोस्तों, दीपावली के दिन लक्ष्मी (धन) की कामना करने वाले लक्ष्मी की पूजा करते हैं ..सभी लोगो को धन प्राप्त हो न हो किन्तु व्यापारियों के यहाँ तो लक्ष्मी आ ही जाती हैं और जिनके पास लक्ष्मी नही आयीं वह यह मान के प्रसन्न होता है के उसके घर में भले ही धन नही आया किन्तु रात में धन की देवी लक्ष्मी जरूर आयी होंगी जिस से उसका घर धन्य हो गया होगा और उसी रात से सम्पन्नता का वास मान लेते हैं...और दोस्तों , गावँ व देहात में दिवाली की रात के बाद भोर के अँधेरे में महिलाएं सुप पिट पिट कर घर से दरिद्र को बाहर निकलती हैं वे मानती हैं के घर में लक्ष्मी का वास हो गया तो दरिद्र का क्या काम .??
दोस्तों , गरीब घर की महिलाएं जो अपने घर में दरिद्रता एक अनुभव करती हैं और अशिक्षा और धर्मान्धता के करण दरिद्र के असली रूप को नही जान पाती हैं और प्रत्येक वर्ष घर की दरिद्रता को भागने के लिए अंधरे में सुप पिट पीटकर थक जाती हैं किन्तु उनकी दरिद्रता नही जाती है ....
तो क्या ये लक्ष्मी पूजन और सुप पीटने से देश की आर्थिक स्थिति में कोई सुधर हुआ ?? नही !!.
यदि किसी के आर्थिक स्थिति में सुधर होता है तो मात्र वैश्यो का और उन्ही के लिए ये दिवाली शुभ है उन्ही को होने वाला लाभ - शुभ है .
दोस्तों , वास्तव में दीपावली के नाम पे राम नाम की कहानी जोड़ दी गयी है , जबकि राम का दिवाली के साथ कोई सम्बन्ध नही है,,,,,वेदों और हिन्दू ग्रंथो के प्रसिद्ध विद्वान सुरेंद्र अज्ञात जी दिवाली के बारे में लिखते हैं वाल्मीकि रामायण में राम के अयोध्या लौटने में जो वर्णन किया गया है उसमे एक बार भी " दीप " शब्द का प्रयोग नही किया हुआ है वहां लिखा हुआ मिलता है के " राम दिन के समय अयोध्या आये थे उनके स्वागत में अयोध्यावासियों ने उनके रस्ते पे सुगन्धित द्रव्य बिखेरे और फूलों की वर्षा की और चहल - पहल का माहौल था .( देखें -वाल्मीकि रामायण ,युद्ध काण्ड सर्ग १२७)
और दूसरे पुरे रामायण में भी राम के स्वागत में रात आयोजित किये गए किसी भी समारोह का कोई जिक्र उपलब्ध नही होता इससे यह अस्पष्ट हो जाता है के राम का दिवाली कोई समंब्ध नही है.
दोस्तों , एक बात और देखते हैं के राम अयोध्या कब वापस आये यानि के किस महीने में ,,,,भारतीय गणना के अनुसार दीपावली कार्तिक मॉस की अमावस्या के दिन होती है परंतु वाल्मीकि रामायण और पदम पुराण आदि ग्रंथो के अनुसार गणना करने पर राम के अयोध्या में आने का समय फाल्गुन व चैत मॉस सिद्ध होता है न के कार्तिक में (देखें -पंडित हरी शंकर कृत ' त्यौहार पद्धति ' ) ऐसे में दिवाली का राम से दूर दूर तक कोई सम्बन्ध नही रह जाता है....
और साथ में गणेश और लक्ष्मी की पूजा भी की जाती है
हिंदुओं के लिए दीपावली मात्र लक्ष्मी और गणेश की पूजा मात्र है यही हिंदुओं की पहेली है ...
दोस्तों , किन्तु दीपावली का दूसरा पहलू प्रकाश अथवा ज्ञान से है कुछ बौद्ध बिचारको का मानना है की " जब सिद्धार्थ बुद्ध हो गए और लोगो को ज्ञान और उपदेश देने लगे तो लाखो की संख्या में लोग उनके धम्म में दीक्षित होने लगे और यह समाचार जब शुध्दोदन को मिला तो शुध्दोदन ने दर्शन पाने के लिए बुद्ध को बुलावा भेजा और बुद्ध ने वर्षावास के पश्चात आगमन की स्वीकृति दी . वर्षावास के बाद जब वे चले और उनके आने का समाचार जब शुध्दोदन को मिला तो उन्होंने तथागत बुद्ध की अगवानी में दीपो के प्रकाश से अपने नगर को सजाया और तब से ही दिवाली शुरू हुई "
इस सम्बन्ध में इतना ही कहा जा सकता है के हो सकता है के बुद्ध के कपिलवस्तु आने के अवसर पर उत्सव की ख़ुशी मनाई गयी......ख़ुशी के स्मरण में कई सालों तक वैसा ही जश्न मनाया हो किन्तु उसे त्यौहार के रूप में विशाल भारत के सभी वर्ण के लोगो द्वारा स्वीकार करना मुश्किल लगता है क्योंकि जो उच्च वर्णीय लोग हर पल तथागत बुद्ध की जड़ ही काटने पर लगे रहते हैं वे लोग बुद्ध के कपिलवस्तु आने की ख़ुशी में अपने घर में दीपोत्सव क्यों मनाएंगे ???
दोस्तों, तथागत बुद्ध से जुडी उपरोक्त घटना ने कपिलवस्तु के शाक्यों के लिए एक यादगार दिवस का स्वरुप धारण अवश्य कर लिया होगा किन्तु यह घटना एक त्यौहार के रूप में स्थायी रूप में स्थापित नही हो सकी लेकिन यह तो निश्चित हो चुका है के दीपावली का सम्बन्ध किसी राम से नही है............जय भीम- जय प्रबुद्ध भारत, नमो बुद्धाय!!
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