Wednesday 12 October 2016

"ख़बरों की खबर"

ख़बरें
जिन्दगीं के
खतरनाक आयामों से
ख़बरदार करती है !

ख़बरें
गलत रास्तों से
होशियार करती हैं !

ख़बरें
इंसान को बुराइयों से
लड़ने को
तैयार करती हैं !

लेकिन
ख़बरें
जब बाजारूँ हो जाये
तब यह
सत्ता की रखैल बन जाती है
एंकर दलाल हो जाते हैं
रिपोर्टर भड़वे हो जाते हैं
तब
समाचारों से
शिष्टाचार गायब हो जाता है
ख़बर अब खबर नहीं रहती
वो कठपुतली बन जाती है
जिसकी डोर
सत्ता और पूँजीपतियों के हाथों
बेच दी जाती है !

तब

मिडिया के नाम पर
पाखंडों का नंगा नाच चलता है !

ब्रेकिंग न्यूज
बहुत कुछ तोड़ देता है !

प्राइम टाइम में
कुछ भी प्राइम नहीं रह जाता !

एंकर खबरों के नाम पर
मर्सिया गाने लगते है !

रिपोर्टर
दरिंदों के सपोर्टर हो जाते हैं !

टीवी
कैंसर का संक्रमण
फ़ैलाने लगता है !

भूख के सवाल
"सीधी-बात" से हल होते हैं !

गरीबी को
ज्योतिषशास्त्र से
दूर किया जाता है !

बेरोजगारी
कावड़ से दूर होने लगती है !

चीख का सौदा होता है
दर्द की बोली लगती है
राष्ट्रवाद बिकने लगता है
जमीर ,
जमीन पर रौंद दिया जाता है
इंसानियत हैवानियत में
तब्दील हो जाती है
टी आर पी के हिसाब से
नफरतें तय की जाती हैं !

दाढ़ी में आतंक
मूंछों में जाती
कपड़ों में धर्म
और
खाने में अधर्म
की खोज होती है !

पाखंडियों और धूर्तों की
कपटपूर्ण बकवासों में
पूरे दिन की असली ख़बरें
गुम हो जाती है !

मंदिरों के घंटों में
झोपड़ों की चीखें
दबा दी जाती है !

शनि के महात्मय में
गरीबी के पै के लिए
कोई जगह नहीं !

न्याय के नाम पर
अन्याय की मार्केटिंग का
यह धंधा तब तक
चलता रहेगा
जब तक
उधोगपतियों के पैसों पर
यह पलता रहेगा !


पत्रकारिता का यह समूह
लुटेरों का गिरोह बन चुका है !

मिटटी को छोड़
हवा में उड़ चुका है !

अपने कर्तव्यों से
यह कबका फिर चूका है !

लोकतंत का चौथा खम्भा
औंधे मुंह गिर चूका है !

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