Wednesday 26 October 2016

उत्सवों का अब्राम्हणीकरण जरूरी है....

उत्सवों का अब्राम्हणीकरण जरूरी है....

हिंदुत्व की व्याख्या करने से सुप्रिम कोर्ट ने मना किया. मा. वामन मेश्राम साहब ने पुना मे सभा लेकर आरएसएस के मोहन भागवत से यह सवाल पुछा था कि क्या एससी एसटी ओबीसी हिंदू है? साबीत कर के बताओ. ईस सभा के एक महीने के ही भीतर मोहन भागवत ने सभा लेकर कहा कि, हम सांस्कृतिक दृष्टी से हिंदू है.

 ईसका मतलब यह हूवा कि धार्मिक दृष्टी से हिंदू नही है. तो फिर एक सवाल उठता है की, क्या ब्राम्हणी संस्कृती और भारतीय संस्कृती एक है? तो ईसका जवाब है "नही". क्योंकी ब्राह्मणों की ब्राह्मण संस्कृती है, और हमारी श्रमण संस्कृती है. वो विदेशी अल्पजन है, और हम मुलनिवासी बहुजन. तो हम दोनो की संस्कृती एक कैसे हो सकती है?

मतलब हम सांस्कृतिक दृष्टी से भी हिंदू नही है. अगर ब्राह्मण और हम अलग अलग है, तो हमारे उत्सव ब्राह्मणी उत्सव कैसे हो सकते है?

भारतीय लोग उत्सवप्रिय है, उनपर उत्सवो का काफी प्रभाव है, यह देखकर विदेशी ब्राह्मणो ने हमारे उत्सवों का ब्राह्मणीकरण किया, जिससे हमारा ब्राह्मणीकरण हुआ और हम ब्राह्मणो के गुलाम हुए.

अर्थात, खुद को भारत का सत्ताधीश बनाने के लिए ब्राह्मणो ने हमारे उत्सवो का ब्राह्मणीकरण किया है.

उन्होने उत्सवो का ब्राह्मणीकरण कैसे किया? इसके लिए ब्राह्मणो ने झुठी कथाएं पुराणों के रूप में लिखी और उन कथाओं को हमारे उत्सवों के साथ जोड दिया और इन काल्पनिक कथाओं का जनमानस में जोर शोर से प्रचार प्रसार किया, जिससे हमारे उत्सवों का पहले ब्राह्मणीकरण हुआ और फिर हमारा हुआ.

ब्राह्मणीकरण करने के लिये ब्राह्मणों ने हमारे उत्सवों के नाम भी बदल दिये. विजयादशमी को दशहरा, दिवाली को बलीप्रतिपदा बना दिया.

अर्थात, ब्राह्मणीकरण की प्रक्रिया ही ब्राह्मणों के वर्चस्व का और हमारी गुलामी का मुख्य कारण है. इसलिए, अगर हम व्यवस्था परिवर्तन करना चाहते है, तो हमें हमारे उत्सवों का, परंपराओं का और संपूर्ण संस्कृती का अब्राम्हणीकरण करना होगा. सिर्फ कोरा विरोध करने से कुछ हासील नहीं होगा. इसलिए, वास्तविक इतिहास और तथ्यों को सामने लाने में ही भलाई है.

ब्राह्मण विदेश से है और उनका सिर्फ एक ही उत्सव था- यज्ञ. अगर यज्ञ के बगैर ब्राह्मणों का प्राचीन काल में कोई भी दुसरा उत्सव नहीं था, तो अभी वर्तमान में बाकी उत्सव उनके कैसे हो सकते है??

- डॉ प्रताप चाटसे

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