Thursday, 21 January 2021

मूलनिवासी इतिहास

sir Manohar barkade ji ki wall se मूलनिवासी इतिहास *ये है भारत का असली इतिहासl बाकि सब झूठ हैl* इस पोस्ट के अन्दर दबे हुए इतिहास के पन्ने हैl जिसमें *मूलनिवासी द्रविड कौन है? देवी-देवता कौन है?आर्य कौन है?जातिवाद,पूँजीवाद क्या है?*इस पोस्ट को जरूर पड़े. 👉👉🏾👇🏿 *आप द्रविड़ शब्द का अर्थ जानते हो?* कुछ लोग मेरे ख्याल से नहीं जानते होंगेl उनके लिए मैं संक्षिप्त में जानकारी प्रस्तुत कर रहा हूँ। *द्रविड शब्द सभी ने अपने विद्यार्थी जीवन में अवशय पढ़ा होगाl साथ ही यह भी पढ़ा होगा की भारत देश की सभ्यता आर्य और द्रविड लोगों की मिली-जुली सभ्यता हैl* और यह भी पढ़ा होगा की *आर्य बाहर से आये हुए लोग है। हमारे भारतीय इतिहासकार लोगो ने बहुत सारी बातो को दबा दिया हैl भारत में आर्यों का आगमन हुआl ये कौन लोग है? कहाँ से आए?भारत में ये लोग है या नहीl इस बारे में इतिहासकार इतिहास में लिखते नहीं। क्यों? क्योंकी आज भारत देश में इतिहास लिखनेवाले आर्य लोग ही है। लेकिन आप उसे पहचानते नहीं। क्या आपको पता है? आपको शिक्षा कब से मिली ?और आप कौन से वर्ण में आते है? आप इस जाति में क्यों है? आप का इतिहास क्या था? जिस दिन इन बातो को खोजना शुरू करेंगे। आपको उत्तर मिलना शुरू हो जायेगा ।और जब समझ में आएगा तब आपको अहसास होगा की मैं गुलाम हूँ।आर्यों ने हमें घेर रखा हैl अब मैं कुछ करू। क्योंकी द्रविड कोई और नहीं आप ही द्रविड हो।* इतिहास के पन्नोे से *आर्य कोई और नहीं ब्राम्हण,क्षत्रिय,वैश्य ही आर्य है। ये अर्थवा,रथाईस्ट,वास्तारिया जाति के हैl इनका आगमन आज से 4500 साल पहले 2500 ईसा पूर्व भारत में हुआ थाl* ये घुड़-सवारी होते थे और लोहे के तलवार रखते थेl ये अपने साथ गाय भी लेकर आये थे। उस समय *भारत तीन भागो में बटा थाl पश्चिमोत्तर में राजा बलि का राज था। पूर्वोत्तर में राजा शंकर का राज थाl जिसे आप शंकर भगवान कहते होl और दक्षिण में राजा रावण का राज थाl जिसे आप हर साल जलाते हो और खुसिया मनाते होl* आर्य के आगमन के पहले भारत के मूलनिवासी द्रविड लोग थेl उस समय भारत के द्रविड लोग कृषि पशुपालन,पक्के ईटो के घर ,नहाने के लिए स्नानागार, देश-विदेश में ब्यापार ,विज्ञानवादी सोच ,मूर्ती निर्माण कला ,चित्रकारी में कुशल,शांति प्रिय ,एक उन्नत सभ्यता थीl उस समय अन्य देशोसे तुलना करे तो हमारी सभ्यता उनसे काफी विकसित थी।आर्योने सर्वप्रथम राजा बलि के राज में प्रवेश कियाl झुग्गी-झोपडी बनाकर रहने लगेl चोरी-चकारी करना शुरू किया। द्रविड़ो ने राजा से शिकायत कीl द्रविड़ो ने आर्यों को पकड़ कर राजा के सामने हाजिर किये। आर्यों ने पेट का हवाला दियाl राजा बलि दयालु मानवता प्रेमी थे। उसने माफ़ कर दिया और आर्यों के रहने-खाने का बंदोबस्त कर दिया ,और चोरी न करने की सलाह दीl कुछ दिन में राजा और प्रजा के ब्यवहार समझ जाने के बाद आर्यों ने एक योजना बनायीl इसमें *बामन नाम का एक आदमी (जिसे आज विष्णु भगवान कहते है) सभी आर्यों में तेज बुध्दीवान था*l पुरे आर्य ग्रुप के साथ राजा बलि के दरबार पहुचे और कहा राजा साहब हम आपके दरबार में बहुत सुखी हैl पर कुछ और हमें चाहिए दे देते तो बड़ी मेहरबानी होतीl राजा बलि ने कहा मांगो। आर्यों ने कहा राजा साहब हमने सुना है, आपके राज में त्रिवाचा चलता हैl अर्थात तीन वचन। हमें भी त्रिवाचा दीजिये, कही मुकर जायेंगे तो। इस प्रकार आर्यों ने छल-कपट पूर्वक राजा बलि के सामने तीन मांगे रखी। *पहली- राजा साहब हमें ऐसी शिक्षा का अधिकार दो, जिसे चाहे हम दे और न चाहे तो न दे। दूसरी-राजा साहब हमें ऐसा धन का अधिकार दो, जिसे चाहे हम दे न चाहे तो न देl तीसरी- राजा साहब हमें ऐसा राज करने का अधिकार दो, जिसे चाहे उसे राज में बिठाये और न चाहे तो न बिठाये। इसप्रकार आर्यों ने छल-पूर्वक राजा बलि से शिक्षा, धन ,राज करने का अधिकार ले लिए और राज में स्वयं बैठ गए। सैनिक शक्ति में अपने लोगो का कब्ज़ा करवा दिया। फिर राजा बलि को मारकर जमीन में गाढ़ दिया। जिसे कहा जाता है, विष्णु भगवान ने राजा बलि से दान में धरती पर तीन पग जमीन माँगीl ये तीन पग शिक्षा, धन, राज करने का अधिकार हैl जमीन में गाडा इसे बताया जाता है पाताल लोक का राजा बना दिया। आप तो पढ़े-लिखे होl जरा सोचो क्या किसी का पैर इतना बड़ा हो सकता हैl जो पुरी पृथ्वी को ढक ले। और पुरी पृथ्वी पर कब्ज़ा होता, तो विष्णु भगवान को अन्य देश के लोग क्यों नहीं जानते। क्यों नहीं पूजते। इसप्रकार आर्यों ने राजा बलि का राज हड़प लियाl उसी दिन से आर्य और द्रविड(भारत के मूलनिवासी) के बीच युद्ध जारी हैl* इसके बाद *राजा शंकर का राज हड़पने के लिए योजना बनायी। इसके लिए विष्णु ने अपनी बहन की शादी राजा शंकर से करने के लिए सोचा और शादी का प्रस्ताव भेजाl राजा शंकर का सेनापति महिषासुर थाl वो आर्यों की चाल समझ गया था, उसने मना करवा दिया। महिषासुर रोड़ा बन गया। तो आर्य पुत्री पार्वती ने ही महिषासुर को मारने के लिए उसे अपने प्रेम-जाल में फँसाया और खून करने के लिए आठ दिन तक मौका खोजती रहीl नौवे दिन जैसे ही मौका मिला धोखे से त्रिशूलद्वारा हत्या कर दी, और शंकर के पास दासी के रूप में सेवा करने लगी। धीरे-धीरे पार्वतीने अपनी खूबसूरती से शंकर को भी वश में कर लिया। और योजनाबद्ध तरीके से राजा शंकर को नशा की आदत लगा दीl इसप्रकार नशा के आदि होकर राजा शंकर का राज-पाठ से मोह-भंग हो गयाl फिर आर्यों ने उनका भी राज चलाया और नशे से आपका शरीर गर्म हो गया यह कहकर हिमालय पर्वत में रहने की सलाह दीl जिसे आज कैलाश पर्वत कहते है।* इसप्रकार दो राज्यों में आर्यों का कब्ज़ा हो गया। फिर *रावण का राज हड़पने के लिए युद्ध छेढ दिया गया। बिभिशन के दोगलापन के कारण छल से रावण को भी भारी मसक्कत के बाद आखिर में मार दिया गया।* इसप्रकार तीनो राज्यों में आर्यों ने कब्ज़ा कर लिया। *आर्यों ने अपने को देव और भारत के मूलनिवासी(द्रविड) को असुर कहाl इसप्रकार 1500 वर्षो तक चले युद्ध के बाद द्रविड पूर्ण रूप से हार गए। यह युद्ध इतिहास में देवासुर-संग्राम के नाम से प्रसिद्ध है।* *देवासुर-संग्राम के बाद ही जाति व वर्ण व्यवस्था बनायी। आर्यों ने अर्थवा को ब्राम्हण,रथाईस्ट को क्षत्रिय और वस्तारिया जाति को वैश्य(बनिया) घोषित किया और भारत के मूलनिवासी(द्रविड) को शुद्र घोषित किया।* और शुद्र में दो वर्ग बनाये जितने लोगो ने लड़ा-भिड़ा उसे अछूत शुद्र कहा और बाकि को सछुत शुद्र घोषित किया। तथा सामाजिक एकता तोड़ने के लिए उन्होंने सिर्फ शुद्र की ही जाति बनायीl *आज ये जाति लगभग 6743 की संख्या में हैl* इसकी लिस्ट गूगलनेट में देख सकते है। *ब्राम्हण, क्षत्रिय,वैश्य की कोई जाति नहीं होतीl उनका सिर्फ वर्ण ही होता है। जैसे शर्मा, दुबे, चौबे, श्रीवास्तव ,द्विवेदी इनके गोत्र है जाति नहीं*यकिन न हो तो चतुराई से पुछ कर देख लेना। इस *देवासुर-संग्राम में जो लोग लड़-भीड़ कर जंगल में शरण लीl और युद्ध जारी रखाl वो वन शरणागत शुद्र(आदिवासी) ST कहलाये ,और जो लोग लड़-भीड़ कर हार कर वही समाज के बाहर रहने लगे वो (अछूत) SC कहलायेI और बाकि शुद्र सछुत शुद्र कहलायेl जिनमें अन्य (पिछड़ा वर्ग) OBC आता है।* जिसने जैसा संग्राम किया उसे उतना ही घृणित कार्य दिया गया। *रामायण, महाभारत ,चारो वेद ,उपनिषद,पुराण उसी समय के लिखे गए ग्रन्थ है। इस प्रकार जातियाँ द्रविड की सामाजिक एकता तोड़ने के लिए बनायी गयी और देवी-देवता धार्मिक गुलाम बनाने के लिए बनाए गए।* *हम देवी-देवता के रूप में सभी आर्यों की पूजा करते हैl ये सारे देवी-देवता झूठे(false) है। यह सत्य होता तो पुरे विश्व में देवी-देवता मानतेl भारत में ही क्यों?* इसप्रकार *शिक्षा का अधिकार ब्राम्हण ने ले लियाl क्षत्रिय ने राज करने का, वैश्य ने धन का अधिकार ले लिया और शुद्र(द्रविड) मूलनिवासी को तीनो वर्णों की सिर्फ सेवा करने का काम दिया गया। जिसे आपने कहीं न कहीं अवश्य पढा होगाl* इसके बाद *महावीर स्वामी ने जाति व वर्ण ब्यवस्था का विरोध किया थाl (583 ईसा पूर्व में) पर ज्यादा सफल नहीं हुए।* फिर *गौतम बुद्ध ने (534 ईसा पूर्व) बौद्ध धर्म जो मानव जाति का प्रकृति प्रदत धम्म को खोजाl जो शाश्वत धम्म है। जिसने पुरे विश्व के मानव जीवन का कल्याण खोज निकालाl जाति व वर्ण व्यवस्था को लगभग समाप्त कर दिया था। गौतम बुद्ध के बाद मौर्य वंश में चन्द्रगुप्त मौर्य अशोकने बौद्ध धर्म को नई उचाई दीl अशोक के पुत्र-पुत्री ने कई देशो में बौद्ध धम्म का प्रचार-प्रसार कियाl* जो आज के समय में *100 से अधिक देश बौद्ध धर्म को अपना चूके हैl* कही अंशिक तो कही पूर्ण रूप से। *मौर्य वंश के अंतिम बौद्ध राजा बृहदस्थ ने गलती कीl उसने सेनापति के रूप में ब्राम्हण पुष्यमित्र शुंग को घोषित किया। शुंग ने सभी ब्राम्हणो को सेना में भर्ती कर दिया और सेना के सामने अंतिम बौद्ध राजा बृहदस्थ की हत्या कर दीl और 84000 स्तूप तोड़ दिए गए। पुष्यमित्र शुंग का शासनकाल 32 वर्ष (184 ईसा पूर्व -148 ईसा पूर्व)है। लाखो बौद्धो को काट दिया गया ।एक बौद्ध सिर काटकर लाने का इनाम 100 नग सोने के सिक्के रखा गया। भारत की धरती खून से रक्त-रंजित हो गयी।* बहुतो ने दुसरे देश जाकर अपनी जान बचायी। सारे बौद्ध ग्रंथ घर से खोज-खोज कर जला दिए गए। इसप्रकार जिस देश में बौद्ध धम्म ने जन्म लिया उस देश से गायब हो गया। आज भारत में जो भी बौद्ध ग्रंथ, त्रिपिटक लाये गए वो सब अन्य देशो से लाये गए है। बादमें *पुष्यमित्र शुंग ने मनुस्मृति लिखीl जिसमें शुद्रो के सारे मानवीय अधिकार छीन लिए गए। रामायण, महाभारत को फिर से नए ढंग से नमक मिर्ची लगाकर लिखा गया। तब से 2000 साल तक शुद्र (SC/ST/OBC) को शिक्षा और धन का अधिकार नहीं मिला थाl* इस बीच अनेको संत कबीर,गुरुनानक,रविदास,गुरु घासीदास ,और अनेक महापुरुष हुएl जिन्होंने भक्ति मार्ग से लोगों को सत्य का अहसास करायाl लेकिन नैतिक शक्ति-शिक्षा ,राजनितिक शक्ति - वोट देने के अधिकार ,सैनिक व शारीरिक शक्ति-कुपोषण के कारण क्षीण हो गया थाl *ब्राम्हण, पेशवाई में अचूतो की स्थिति अति दयनीय हो गयी थीl इस समय अचूतो को गले में हांड़ी और कमर में झाड़ू बांधकर चलना पडता थाl यह 12 वर्षो तक चलाl 1जनवरी 1818 को 500 महार सैनिकों ने 28000 पेशवाई लगभग युद्ध करके ख़त्म कर दीl जिसमें 22 महार सैनिक शहीद हुए थेl* मुग़ल राजाओ ने भी ब्राम्हणों से साठ-गाठ कर भारत को गुलाम बनाया और ब्राम्हणों के मर्जी से शुद्र को शिक्षा नहीं दीl लेकिन जहांगीर के शासन काल में थाॅमस मुनरो आये थेl यहाँ की अजीब स्थिति देखकर वह दंग रह गए ,उसी के बाद डच,पोर्तूगाली,फ़्रांसिसी,अंग्रेज आये और कंपनी स्थापित कर भारत को गुलाम बनायाl *थाॅमस मुनरो ने सबको शिक्षा देना शुरू कियाl जिसमें पहले व्यक्ति महात्मा ज्योतिबा फुले ने शिक्षा पायीl जो की माली जाति के अन्य पिछड़ा वर्ग से आते हैl शिक्षा पाने के बाद उन्होने अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले को भी पढायाl इसप्रकार सावित्रीबाई फुले सवर्ण महिला ,शुद्र महिला ,अतिशुद्र महिला में शिक्षा पानेवाली पहली महिला बनीl* ये आर्य सवर्ण लोग अपनी पत्नी को भी शिक्षा नहीं देते, क्योंकी उनकी पत्नी भी द्रविड महिला ही है। इसलिए कहा गया है *ढोल ग्वार शुद्र , पशु , नारी ये सब है ताडन के अधिकारीl शुद्रो को शिक्षा 19वी सदी में 1840 के आसपास ही मिलना शुरू हुआl* सारी क्रांति शुद्रोने(द्रविड) ब्रिटिश शासनकाल में ही कीl *रामास्वामी पेरियार , डाॅ. बाबासाहेब आंबेडकर के जीवनकाल में कितनी छुवाछुत थीl किसी से छुपा नहीं है। डाॅ.आंबेडकर अछूत समाज में पहले व्यक्ति है, जिन्होंने पहली बार मेट्रिक पास कियाl ग्रेजुएशन किया ,M.A. किया।देश-विदेश से अनगिणत डिग्रीयाँ हासिल कीl* *डाॅ.आंबेडकर साहब जैसे संघर्ष आज तक किसी ने नहीं किया। अछूत कहे जाने वाले अस्पृश्य समाज को तालाब का पानी पीने का ,मंदिर में प्रवेश का अधिकार नहीं थाl चवदार तालाब का पानी पीने का सामूहिक प्रयास डाॅ.आंबेडकरने पहली बार कियाl* जिसमें अछूतो के संग बहुत मारपीट की गयीl करीब 20अछूत इस हमले में जख्मी हो गए थेl फिर कालाराम मंदिर में प्रवेश किये। बाबा साहब ने कई सभाए ली,कई समितियों का निर्माण किया । *25दिसंबर 1927 को मनुस्मृति का दहन किया गयाl यही वह ग्रंथ है, जिसमें शुद्रो को नरक सा जीवन जीने के लिए तानाशाही आदेश जारी किये गए।* देश स्वतंत्र होनेवाला थाl समय *बाबासाहब से बड़ा कोई विद्वान ही नहीं थाl इसकारण संविधान लिखने का अवसर बाबा साहेब को मिलाl आज अचूतो को ,शुद्रो को ,महिलाओं को जो भी अधिकार मिले है, चाहे कोई भी फील्ड हो सब बाबासाहब के अथक प्रयास से संभव हुआ है। इसे SC/ ST/OBC/मायनॅरिटी माने या न माने ये उनके ऊपर निर्भर है। अनुसूचित जाति कल्याण आयोग, अनुसूचित जनजाति कल्याण आयोग, अन्य पिछड़ा कल्याण आयोग, धार्मिक अल्प संख्यक कल्याण आयोग (SC/ST/OBC/Minirity) के लिए बनाया गया है।* आपको संविधान में सवर्ण कल्याण आयोग कही नहीं मिलेगा। क्यों ? जरा सोचे यह *संविधान भारत के मूलनिवासी (द्रविड) के हित व उनका सम्पूर्ण विकास के लिए बनाया गया है। हर जरुरी अधिकार सविधान में डाले गए है। लेकिन अफ़सोस की मूलनिवासीयों (द्रविड़) ने आज तक संविधान को खोलकर देखा ही नहीं और सवर्ण के साथ ही संविधान को बिना पढ़े घटिया और बदलने की बात करता हैl* वही अन्य देश के राष्ट्रपति,PM ,कानून के जानकार इसे दुनिया की सबसे महान संविधान कहता हैl *बाबसाहेबने संविधान लिखकर मूलनिवासी (द्रविड) को आधी आजादी दी गयी है और आधी आजादी जिस दिन हमारे द्रविड भाई एक हो जायेंगे उस दिन सम्पूर्ण आजादी मिलेगी।आज व्यापार में 95%, शिक्षा में 75%, नौकरी में 75% ,जमीन में 90% इन आर्यों का ही कब्ज़ा है। भाईयों जरा गौर करो SC/ST/OBC/Minirity के लोग कितने % व्यापार में हाथ-पाव जमाये हो? 85% मूलनिवासी (द्रविड) सिर्फ ग्राहक बने हो, दुकानदार तो मुख्य रूप से सवर्ण ही है।* बड़े-बड़े उद्योग ,कंपनी, बड़ी-बड़ी दुकाने हर प्रकार का दुकाने कौन चला रहा हैl गौर करोगे तो सब समझ आ जायेगाl लेकिन दुःख की बात है कि, हमारे भाई दूर की सोच रखते ही नहींl *आज सिख, बौद्ध भी द्रविड हैl इसाई,मुस्लिम भी द्रविड हैl मुग़लकाल में हमारे ही द्रविड भाईयो ने हिंदू धर्म की हीनता देख कर मूस्लिम धर्म को अपनायाl अंग्रेजो के शासनकाल में हमारे द्रविड भाईयों ने ही इसाई धर्म को अपनाया। और सिखों ने अपना अलग सा धर्म बनाया। इसकारण सवर्ण लोग कभी सिख दंगा, कभी इसाई दंगा, कभी मुस्लिम दंगा, कभी बौद्ध पर हमला करता रहता हैl ये सब इनकी सोची-समझी साजिश होती है।* '''67 साल के बाद आज जैसे ही बीजेपी सत्ता में बहुमत से आई है। गौर कीजिये क्या हो रहा हैl धर्म-धर्म रट रही हैl भारत को हिंदुस्तान करना चाहते है। सिख हिन्दू थे, घर वापसी करो ऐशी बाते करते हैl इनके मंत्री बोल रहे है साध्वी, नाथूराम गोडसे देशभक्त हैl जो आपके राष्ट्रपिता को तीन गोली ठोकता है। 4-5 बच्चे पैदा करो एक इनको दो, एक बोर्डर को दो, बाकी अपने पास रखोl कितना सम्मान करते है महिलाओं का सोचो। 2021तक सबको हिन्दू बनाने की धमकी दिये जा रहे हैl तो अल्पसंख्यक कहा जायेंगे। इसीकारण ही बाबासाहब ने अल्पसंख्यक को कुछ विशेष अधिकार दिए थेl ताकि बहुसंख्यक इनपर हावी न हो सके। गीता को राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित करना चाहते हैl क्योंकि पुन: युद्ध करा सके। इतने सारे बेतूके बयान दे रहे है और मोदी चुप है क्यों? *द्रविड अनार्य भाइयो अब एक हो जाओl जय मूलनिवासी

एक देश एक चुनाव से खर्चा घटेगा,समय बचेगा,सरकार आराम से विकास के कार्य करेगी।

प्रश्न:- एक देश एक चुनाव से खर्चा घटेगा,समय बचेगा,सरकार आराम से विकास के कार्य करेगी। उतर:- पहली बात तो आपको यह स्पष्ट हो जानी चाहिए कि हमारे सभी नैता भ्रष्ट है(ऐसा ना मानने वाला व्यक्ति नैताऔ के इमानदारी के बारे में कोई उदाहरण बताए,इस पर अलग चर्चा करेगें)।लेकिन जो लोग एसा मानते है कि हाँ नैता भ्रष्ट है।उन लोगो से मेरा यह सवाल है कि फिर प्राईवेट क्षेत्र में आखिर एसा क्या जादू है ?जिसके कारण लोग वहाँ इमानदारी दिखा रहे है।आप ढुंढोगे तो पाओगे कि उनको नौकरी जाने का डर है(यदी आप इससे अलग कारण जानते हो तो बताए)।बस यही कारण है कि प्राईवेट क्षेत्र के लोगो को मजबूरी में इमानदारी दिखानी पड़ती है।बाकि बेइमानी इनमे भी इतनी ही है जितनी नैताओ या अधिकारियों व सरकारी कर्मचारियों में है। तो अब यह बताओ कि भारत के मतदाताओं के पास एसी क्या ताकत है जिससे यह सरकारी लोगो को नौकरी से हटाकर इमानदार बना सके।कुछ भी नहीं है।बस उस सरकारी लोगो (सबंधित विभाग के मत्रीं,विधायक, सासंद) को हटाने के लिए पांच साल तक प्रतीक्षा करनी ही पड़ेगी।और जब चुनाव आते है तो यह सभी नैता कितना माथा टेकते है जन्ता के आगे(इस दौरान यदी जन्ता इनको बोले कि पिछले साल के किसी चुनाव में आपने अमुख वादा किया था लेकिन पुरा नहीं किया,क्यो?बस यही कारण है कि यह नैता लोग थोड़ी बहुत इसी डर के कारण इमानदारी दिखाने को मजबूर होकर विकास करते है )तो अभी हमारे पास मात्र यही एक ओपशन है इन नैताओ को थोड़ा इमानदार बनाने का।लेकिन सभी चुनाव एक साथ हो गए तो यह अधिकार हमारे हाथ से निकल जाएगा और यह नैता और ज्यादा देश को बरबाद करेगें। दुसरी बात हमारे देश में सबसी बड़ी समस्या पेसै या बजट कमी कि नहीं है(यदी होती तो स्वीच बैंक में कालाधन इतना जमा नहीं हो जाता,सडधक छाप नैता करोड़पति नहीं बन जाते) बड़ी समस्या है भ्रष्टाचार।जिसके कारण जो भी बजट है वो पुरा विकास कार्यो में खर्च नहीं होता।(राजीव गाँधी ने खुद कहा था कि 100रु जारी होता है उसमे सिर्फ 15खर्च होता है जो आज भी जारी है)तो हमे यह 85रु भी खर्च हो विकास कार्यो में,इस पर फोक्स करना चाहिए या इस पर कि और टैक्स दें हम सरकार को या खर्चा घटाए सरकार का,,आजादी से लेकर आज तक कितने बड़े -बड़े घोटाले हुए?आप तुलना करके सोचो कि हमे इस बड़ी समस्या घोटालो को रोकना चाहिए या और बजट देना चाहिए इन घोटालो के लिए। लोकतांत्रिक व्यवस्था में सबसे इमानदार जन्ता को माना जाता है(होती भी है तुल्नात्मक रुप से)।इसलिए पुर्ण लोकतंत्र मे सभी नैता अधिकारी जन्ता के हर समय कट्रोंल में रहना जरूरी है वर्ना यह राष्ट्र का विनाश कर देगें(यह हमारे क्रान्तिकारियों के वचन है )।एसे में बहुत सारे लोग इस देश में वोटवापसी पासबुक, जूरीकोर्ट जेसै जरूरी कानून कि मांग कर रहे है।ताकि पुरा लोकतंत्र स्थापित हो।लेकिन सरकार तो "एक देश एक चुनाव" करके जो लोकतंत्र है उनको भी कमजोर कर रही है। और दुख कि बात यह है कि जनता इस अहितार्थ कदम को पैड मिडिआ कि झुठी बातो में आकर हितार्थ समझ बेठी है।

बैंक हमे कैसे कंगाल करते है?

बैंक कैसे हमें कंगाल करते हैं ! संघर्ष की उत्पत्ति इस पृथ्वी पर मनुष्य के जन्म के साथ ही शुरू हुई है ! प्राचीन काल में व्यक्ति अपने विचारों को मनवाने के लिये शारीरिक शक्ति का प्रयोग करते थे ! कालांतर में जब व्यक्ति का ज्ञान विकसित हुआ तो उसने ईट पत्थर के हथियार बनाकर उनका प्रयोग आरंभ कर दिया ! धीरे-धीरे धातु की खोज हुई और युद्ध में धातु के हथियार तीर, भाला, तलवार, आदि प्रयोग किये जाने लगा ! 300 ईसापूर्व बारूद की खोज हुई और बंदूक और तोपों का निर्माण शुरू हो गया ! द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान परमाणु बम, हाइड्रोजन बम, जैसे विकसित हथियार बनाये जाने लगे ! किन्तु यह समस्या सदैव रहती थी कि हथियारों से युद्ध जीतने के बाद भी एक देश दूसरे देश को जीत लेता है तो जीते हुये देशों में प्रयोग किये गये हथियारों के कारण संपत्ति का इतने बड़े स्तर पर नुकसान होता है कि उस संपत्ति के पुनर्निर्माण के लिये बहुत बड़ी मात्रा में धन व्यय करना पड़ता है ! इसीलिये द्वितीय विश्व युद्ध के उपरांत यह विचार किया जाने लगा कि युद्ध का वह कौन सा नया स्वरूप हो जिसके कारण जीते हुए देश की संपत्ति को नुकसान पहुंचाये बिना किसी भी देश को अपना गुलाम बनाया जा सके ! तब दुनिया को चलाने वाले महा शक्तिशाली देशों ने धन अर्थात रुपये को हथियार के तौर पर प्रयोग करने का निर्णय लिया ! इन रास्तों ने एक ऐसी छद्म युद्ध नीति बनाई जिसके द्वारा किसी भी देश के ऊपर हथियारों से आक्रमण न किये जाने के बाद भी उसे अपना गुलाम बनाया जा सके ! इसी व्यवस्था के तहत बैंकों के नये स्वरूप की उत्पत्ति हुई और बैंकों के इस नये स्वरूप संचालन के लिये भारत में भारतीय बैंकिग कंपनी अधिनियम 1949 आ गया ! आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि जिन रुपयों को आप खर्च करते हैं ! वह न तो भारत सरकार की संपत्ति है और न ही भारत सरकार द्वारा इसे मुद्रित ही किया जाता है बल्कि इन सभी रुपयों का मुद्रण, नियंत्रण और संचालन रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा किया जाता है ! तथा जिन बैंकों में आप अपना पैसा रखते हैं यह एक व्यवस्थित साहूकारी व्यवस्था है ! जिस तरह प्राचीन काल में साहूकार के यहां गरीब मजदूर अपना पैसा रखता था और साहूकार बेईमानी से उसे हड़प लिया करता था ! ठीक उसी तरह व्यवस्थित साहूकार के रूप में आपको ब्याज देने का आकर्षण देकर आज बैंक आपका पैसा लेते हैं और आपके पैसे को बड़े-बड़े व्यवसायियों को व्यवसाय करने के लिये लोन के तौर पर दे देते हैं ! यह बड़े-बड़े व्यवसाई अलग-अलग नामों से बड़ी-बड़ी कंपनियां बनाकर व्यवसाय करते हैं और आप और हम जैसे लोग जो इन व्यवसायियों के यहां नौकरी करते हैं ! वह वेतन से बचा हुआ पैसा वापस इन्हीं बैंक को दे देते हैं और बैंक हमारे आपके बचत के पैसे को पुनः एक पूंजी बना कर इन्हीं व्यवसायियों को दे देता है ! जिनके अधीन हम और आप नौकरी करते हैं ! यह क्रम सफलतापूर्वक चलता रहता है ! हमें भी परेशानी नहीं होती है, बैंक को भी नहीं होती है और व्यवसाई को भी नहीं होती है ! लेकिन जब नोटबंदी या आर्थिक मंदी के कारण यह क्रम किसी भी स्थिति में टूट जाता है तो उस स्थिति में व्यवसायी तो घाटा लगने के कारण अपनी कंपनी बंद कर देता है ! जिस कंपनी में उस व्यवसायी का निजी तौर पर कोई पैसा नहीं लगा होता है ! क्योंकि वह कंपनी जिस लोन के पैसे से चलती है वह लोन का पैसा जो बैंक उस कंपनी के मालिक को देता है वह हमारा आपका ही पैसा होता है ! जब कंपनी बंद होती है तो बैंक के लोन का पैसा बैंक को वापस प्राप्त नहीं होता है और उस स्थिति में वह बैंक भी बंद हो जाता है और हम लोग ब्याज के लालच में जिस पैसे को बैंक के पास पूंजी के तौर पर जमा करते हैं वह सारा का सारा हमारे मेहनत का पैसा डूब जाता है ! हमारे आसपास के समाज में हजारों ऐसे उदाहरण मिलते हैं किन लोगों ने सामूहिक रूप से आत्महत्या कर ली क्योंकि जिस बैंक में उनका पैसा जमा था ! वह बैंक आर्थिक मंदी में आकर खत्म हो गया ! यह एक बहुत ही खतरनाक दुष्चक्र है ! इससे यदि निकलना है तो बैंकों के अलावा भी अन्य स्थानों पर अपनी पूंजी को रखने की व्यवस्था पर विचार करिये अन्यथा यह बैंक आपको कभी भी कंगाल कर सकते हैं !

Saturday, 4 January 2020

*नज़रिया: ‘आरक्षित सीटों से आने वाले नेता निकम्मे साबित हुए हैं’*

*Part-1*

*संसद और विधानसभाओं में आरक्षित सीटों की वजह से चुनकर आने वाले लगभग बारह सौ जनप्रतिनिधियों ने* अपने समुदाय को लगातार निराश किया है. दलित और आदिवासी हितों के सवाल उठाने में ये जनप्रतिनिधि बेहद निकम्मे साबित हुए हैं.

लेकिन इसमें उनकी कोई ग़लती नहीं है उनका ऐसा करना एक संरचनात्मक मजबूरी है *क्योंकि उनका चुना जाना उनके अपने समुदाय के वोटों पर निर्भर ही नहीं है.*

मिसाल के तौर पर *जिग्नेश मेवानी वडगाम सीट पर 15 प्रतिशत दलित वोटर की वजह से नहीं, 85 प्रतिशत ग़ैर-दलित वोटरों के समर्थन से चुने गए हैं.*

*उस सीट के सारे दलित मिलकर भी कभी किसी को जिता नहीं सकते.*

*सुरक्षित सीटों पर कोई भी ऐसा जनप्रतिनिधि चुनकर नहीं आ सकता,* जो दलित या आदिवासी हितों के लिए आक्रामक तरीके से संघर्ष करता हो, और ऐसा करने के क्रम में अन्य समुदायों को नाराज़ करता हो. *रिज़र्व सीटें हमेशा दुर्बल जनप्रतिनिधि ही पैदा कर सकती हैं.*

*संसद और विधानसभा में सीटों के रिज़र्वेशन की व्यवस्था पर सवाल उठाने का समय आ गया है.*

बेहतर होगा कि ये *सवाल ख़ुद अनुसूचित जाति और जनजाति के अंदर से आएं.* इस सवाल पर राष्ट्रीय बहस होनी चाहिए.

*समुदाय के लिए करते क्या हैं?*

2009 में भारतीय संसद ने हर दस साल पर होने वाली एक औपचारिकता फिर निभाई. *वही औपचारिकता, अगर कोई ग़ज़ब न हुआ तो, 2019 में फिर निभाई जाएगी.*

*हर दस साल पर, संसद एक संविधान संशोधन विधेयक पारित करती है, जिसके तहत लोकसभा और विधानसभाओं में अनुसुचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षण को दस साल के लिए बढ़ा दिया जाता है और फिर राष्ट्रपति इस विधेयक को अनुमोदित करते हैं. संविधान का अनुच्छेद 334, हर दस साल पर दस और साल जुड़कर बदल जाता है.*

*इसी प्रावधान की वजह से लोकसभा की 543 में से 79 सीटें अनुसूचित जाति और 41 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए रिज़र्व हो जाती हैं. वहीं, विधानसभाओं की 3,961 सीटों में से 543 सीटें अनुसूचित जाति और 527 सीटें जनजाति के लिए सुरक्षित हो जाती हैं.*

*इन सीटों पर वोट तो सभी डालते हैं, लेकिन कैंडिडेट सिर्फ एससी या एसटी का होता है.*

लोकसभा और विधानसभाओं में *आज़ादी के समय से ही* अनुसूचित जाति और जनजाति का उनकी *आबादी के अनुपात में प्रतिनिधित्व रहा है.*

*सवाल यह उठता है कि इतने सारे दलित और आदिवासी सांसद और विधायक अपने समुदाय के लिए करते क्या हैं?*

नेशनल क्राइम रेकॉर्ड्स ब्यूरो के इस साल जारी आंकड़ों के मुताबिक *इन समुदायों के उत्पीड़न के साल में 40,000 से ज़्यादा मुकदमे दर्ज हुए.* यह आंकड़ा साल दर साल बढ़ रहा है. जाहिर है कि *इन आंकड़ों के पीछे एक और आंकड़ा उन मामलों का होगा, जो कभी दर्ज ही नहीं होते हैं.*

*क्या दलित उत्पीड़न की इन घटनाओं के ख़िलाफ़ दलित सांसदों या विधायकों ने कोई बड़ा, याद रहने वाला आंदोलन किया है?*

*ऐसे सवालों पर, संसद कितने बार ठप की गई है और ऐसा रिज़र्व कैटेगरी के सांसदों ने कितनी बार किया है?*

हमने देखा है कि तेलंगाना से आने वाले *दसेक सांसदों ने कई हफ़्ते तक संसद की गतिविधियों को बाधित रखा.*

*कोई वजह नहीं है कि लगभग सवा सौ एससी और एसटी सांसद अगर चाह लें तो संसद में इससे कई गुना ज़्यादा असर पैदा कर सकते हैं.* लेकिन भारतीय संसद के इतिहास में ऐसा कभी हुआ नहीं है.

इसी तरह, *सरकारी नौकरियों और शिक्षा में अनुसूचित जाति और जनजाति को आबादी के अनुपात में आरक्षण मिला हुआ है*

लेकिन *केंद्र और राज्य सरकारें अक्सर यह सूचना देती हैं कि इन जगहों पर कोटा पूरा नहीं हो रहा है.*

*ख़ासतौर पर उच्च पदों पर, अनुसूचित जाति और जनजाति के कोटे का हाल बेहद बुरा है.* जैसे कि हम देख सकते हैं कि *देश की 43 सेंट्रल यूनिवर्सिटी में एक भी वाइस चांसलर अनुसूचित जाति का नहीं है या कि केंद्र सरकार में सेक्रेटरी स्तर के पदों पर अक्सर एससी या एसटी का कोई अफसर नहीं होता.*

*शासन के उच्च स्तरों पर अनुसूचित जाति और जनजाति की अनुपस्थिति क्या अनुसूचित जाति और जनजाति के सांसदों के लिए चिंता का विषय है?* अगर वे इसके लिए चिंतित हैं, तो उन्होंने सरकार पर कितना दबाव बनाया है? *क्या इस सवाल पर कभी संसद के अंदर कोई बड़ा आंदोलन या हंगामा हुआ?* ज़ाहिर है कि ऐसा कुछ नहीं हुआ.

चूंकि सरकारी नौकरियों की संख्या लगातार घट रही है और हाल के वर्षों में *निजी क्षेत्र में आरक्षण की मांग उठी है,*

*लेकिन क्या अनुसूचित जाति और जनजाति के सांसदों और विधायकों के लिए यह कोई मुद्दा है?*

इसी तरह की एक मांग *उच्च न्यायपालिका में आरक्षण की भी है. ख़ासकर संसद की कड़िया मुंडा कमेटी की रिपोर्ट में न्यायपालिका में सवर्ण वर्चस्व की बात आने के बाद से यह मांग मज़बूत हुई है. लेकिन क्या अनुसूचित जाति और जनजाति के सांसदों ने कभी इस मुद्दे पर संसद में पुरज़ोर तरीक़े से मांग उठाई है?*

*120 से ज़्यादा एससी और एसटी सांसदों के लिए किसी मुद्दे पर संसद में हंगामा करना और दबाव पैदा करना मुश्किल नहीं है. इन सांसदों का एक ग्रुप भी है और जो अक्सर मिलते भी हैं लेकिन देश ने कभी इन सांसदों को अपने समुदायों के ज़रूरी मुद्दों पर आंदोलन छेड़ते नहीं देखा है.*

http://www.bbc.com/hindi/india-42455275

Saturday, 18 May 2019

हिन्दू धर्म के पांच खूंटे:

*यादव शक्ति पत्रिका* ने हिंदू धर्म में कुल 5 खूंटों का जिक्र किया है।आप लोग भी पढ़िए क्या हैं हिंदू धर्म के 5 खूंटे.... जिनसे ब्राह्मणों ने सभी  SC ST OBC जो सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े हुए लोगों को बांध रखा है..

*👥 हिन्दू धर्म(ब्राह्मण धर्म) के पांच खूॅटे :-*

(1)  पहला खूॅटा:- *ब्राह्मण*

  हिन्दू धर्म में ब्राह्मण जन्मजात श्रेष्ठ मानता है चाहे चरित्र से वह कितना भी खराब क्यों न हो, हिन्दू धर्म में उसके बिना कोई भी मांगलिक कार्य हो ही नहीं सकता।किसी का विवाह करना हो तो दिन या तारीख बताएगा ब्राह्मण, किसी को नया घर बनाना हो तो भूमिपूजन करायेगा ब्राह्मण, किसी के घर बच्चा पैदा हो तो नाम- राशि बतायेगा ब्राह्मण,
किसी की मृत्यु हो जाय तो क्रियाकर्म करायेगा ब्राह्मण, भोज खायेगा ब्राह्मण, बिना ब्राह्मण से पूछे बौद्ध हिलने की स्थिति में नहीं है। इतनी कड़ी मानसिक गुलामी में जी रहे हिन्दू से विवेक की कोई बात करने पर वह सुनने को भी तैयार नहीं होता।
पिछडों/एससी/एसटी के आरक्षण का विरोध करता है ब्राह्मण, पिछड़ा वर्ग " बौद्ध " की शिक्षा, रोजगार, सम्मान का विरोध करता है ब्राह्मण !!
इतना होने के बावजूद भी वह  बौद्धो का प्रिय और अनिवार्य बना हुआ है क्यों ?? घोर आश्चर्य !!! या ये कहें कि दुनिया का आठवां अजूबा !!!
जो हिन्दू ब्राह्मण रूपी खूॅटा से बॅधा हुआ है।

(2) दूसरा खूॅटा: *ब्राह्मण शास्त्र:*

  यह जहरीले साॅप की तरह  बौद्ध समाज के लिए जानलेवा है।
मनुस्मृति जहरीली पुस्तक है।
वेद, पुराण, रामायण आदि में भेद-भाव, ऊॅच-नीच, छूत-अछूत का वर्णन मनुष्य-मनुष्य में किया गया है।
*ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मण,*
*भुजा से क्षत्रिय,*
*जंघा से वैश्य,*
*पैर से शूद्र* की उत्पत्ति बताकर शोषण -दमन की व्यवस्था शास्त्रों में की गयी है, हिन्दू-शास्त्रों मे स्त्री को गिरवी रखा जा सकता है, बेचा जा सकता है, उधार भी दिया जा सकता है।  बौद्ध समाज इन शास्त्रों से संचालित होता रहा है।

(3)  तीसरा खूॅटा: *हिन्दू धर्म के पर्व/त्योहार:*

हिन्दू धर्म के पर्व/त्योंहार आर्यों द्वारा इस देश के पिछड़ा वर्ग (मूलवासियों) की गयी निर्मम हत्या पर मनाया गया जश्न है।आर्यों ने जब भी और जहाॅ भी मूलवासियों पर विजय हासिल की, विजय की खुशी में यज्ञ किया, यही पर्व कहा गया, पर्व ब्राह्मणों की विजय और त्योहार मूलवासियों के हार की पहचान है। त्योहार का मतलब होता है, तुम्हारी हार यानी मूलवासियों की हार।इस देश के मूल निवासी अनभिज्ञता की वजह से पर्व-त्योहार मनाते हैं और न ही  किसी को अपने इतिहास का ज्ञान है और न ही अपमान का बोध। सबके सब ब्राह्मणवाद के खूॅटे से बॅधे हैं।अपना मान सम्मान और इतिहास सब कुछ खो दिया है।अपने ही अपमान और विनाश का उत्सव मनाते हैं और शत्रुओं को सम्मान और धन देते हैं। यह चिन्तन का विषय है।
होली, होलिका की हत्या और बलात्कार का त्योहार, दशहरा- दीपावली- रावण वध का त्योहार।
नवरात्र- महिषासुर वध का त्योहार।किसी धर्म में त्योहार पर शराब पीना और जुआ खेलना वर्जित है । पर हिन्दू धर्म में होली में शराब और दीपावली पर जुआ खेलना धर्म है। बौद्ध समाज इस खूॅटे से पुरी तरह बॅधा हुआ है।

(4) चौथा खूॅटा- *देवी देवता:*

  -हिन्दू धर्म में 35 करोड़ देवी-देवता बताये गये हैं।पाप-पुण्य, जन्म-मरण, स्वर्ग-नरक, पुनर्जन्म, अगले जन्म का भय बताकर काल्पनिक देवी-देवताओं की पूजा- आराधना का विधान किया गया है।
मन्दिर-मूर्ति, पूजा, दान-दक्षिणा देना अनिवार्य बताया गया है।
बौद्ध समाज इस खूॅटे से बॅधा हुआ है और चमत्कार, पाखण्ड, अंधविश्वास, अंधश्रद्धा से जकड़ा हुआ है।

(5) पाॅचवां खूॅटा : *तीर्थस्थान*

-ब्राह्मणों ने देश के चारों ओर तीर्थस्थान के हजारों खूॅटे गाड़ रखे हैं।इन तीर्थस्थानों के खूॅटे से टकराकर मरना पुण्य और स्वर्ग प्राप्ति का सोपान बताया गया है।इस धारणा पर भरोसा कर सभी ब्राह्मणों के मानसिक गुलाम obc/sc/st बौद्ध के लोग बिना बुलाये तीर्थस्थानों पर पहुँच जाते है जहाँ इनका तीर्थ स्थलों के मालिक ब्राह्मण आस्था की आड़ में हर प्रकार का शोषण करते हैं।

    *समाधान:-* ब्राह्मणवाद के इन खूॅटो को उखाड़ने के लिए समस्त बौद्ध(obc/sc/st) को एक जुट होकर चिन्तन-मनन और विचार-विमर्श करना होगा।किसी भी मांगलिक कार्य में ब्राह्मण को न बुलाने से, ब्राह्मणशास्त्रों को न पढ़ने से, न मानने से, हिन्दू (ब्राह्मण)त्योहारों को न मनाने से, काल्पनिक हिन्दू देवी-देवताओं को न मानने, न पूजने से, तीर्थस्थानों में न जाने, दान-दक्षिणा न देने से ब्राह्मणवाद के सभी खूॅटे उखड़ सकते हैं। ब्राह्मणवाद से समाज  मुक्त हो सकता है और मानववाद यानी बौद्ध धर्म तथागत बुद्ध/बोधिसत्व बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर विकसित हो सकता है। इस पर obc/sc/st समाज यानी बोधिसमाज को चिन्तन-मनन करने की आवश्यकता है।
    तो आइए विदेशी आर्य ब्राह्मणों को दान मान मतदान न देकर  ब्राह्मणवाद से मुक्ति और मानववाद  यानी Buddhwad को विकसित करने का सकल्प लें।
साभार                                       🙏साधुवाद🙏

Friday, 25 January 2019

गणतंत्र के नाम पर षडयंत्र ?

गणतंत्र के नाम पर षडयंत्र ?

आखिर वास्तविक रूप में गणतंत्र का देश क्यों नही बना भारत देश ?

साथियों गणतंत्र का अर्थ होता है कि ऐसा राष्ट्र जिसकी सत्ता जनसाधारण में समाहित हो । साथियों क्या  उस जनसाधारण को ये अधिकार मिले ? उस जनसाधारण को यह अधिकार आज तक क्यों नहीं मिले ?

आप लोगों का ये उत्तर हो सकता है कि जनसाधारण ही वोट डालकर सरकारों को चुनता है तो फिर उसके द्वारा चुनी गई सरकारें ,उस जनसाधारण के लिए काम क्यों नहीं करती ?

मेरा ये भी सवाल है कि क्या इस देश का जनसाधारण अपनी बुद्धि के अनुसार, अपने विवेक के अनुसार वोट डालने में सक्षम है ? आप भले ही यह कहे कि हां सक्षम है , लेकिन व्यवहारिक रूप में ये बात सत्य नहीं है । आखिर व्यवहारिक रूप में ये बात सत्य क्यों नहीं है ? क्योंकि इस देश की सरकारों ने जनसाधारण के पक्ष में इस देश का माहौल पैदा ही नहीं होने दिया ।

इस देश का जनसाधारण अपने वोट का इस्तेमाल प्रचार-प्रसार, पैसा,बहाव, कौन जीतेगा , कौन जीत रहा है आदि पर निर्भर करता है और यह माहौल इस देश के राजनेता, पत्रकार,पुंजीपती, सामंतवादी, मुफ्तखोर, मुनाफाखोर,राजचोर, ब्राह्मणवादी आदि मिलकर तैयार करते है , इस माहौल से देश की सरकारें तय होती है ।

क्या हमारे संविधान निर्माताओं का यही लक्ष्य और उद्देश्य था ? उनका लक्ष्य यदि ये नहीं था तो फिर क्या था ? वह लक्ष्य देश की आजादी के 72 वर्षों में भी क्यों नहीं हासिल हो पाया ? इन 72 वर्षों में देश के साथ गद्दारी किस किस ने की और क्यों की ? वह देश का दुश्मन कौन है जिसने देश के जनसाधारण को आजादी की सांस नहीं लेने दी ? फिर कैसे कह सकते है कि देश में गणतंत्र है ?

सबसे ज्यादा बेरोजगार और सबसे ज्यादा भूखे यहीं पर है फिर कैसे कह सकते है कि गणतंत्र है ? गणतंत्र का अर्थ है , जनता के लिए, जनता के द्वारा, जनता का शासन। यदि गणतंत्र का यही अर्थ है तो इस देश में छोटी छोटी बच्चियों के साथ क्यों बलात्कार हो रहे है और वो भी उनकी इच्छा के विरुद्ध ? क्या उनके लिए इस देश का गणतंत्र मर गया है ? यदि यह गणतंत्र मर गया है तो फिर गणतंत्र गणतंत्र क्यों चिल्लाया जा रहा है ? यह षडयंत्र क्यों जारी है ? क्या गणतंत्र जैसे शब्दों से ही संतुष्ट हो जाना उचित है ?

इस देश में न्याय पाने के लिए आम आदमी अपनी पूरी जिंदगी लगा देता है तो भी उसे न्याय नहीं मिल पाता और बहुत से तो ऐसे लोग हैं कि वे न्याय लेने की सोच भी नहीं सकते ,न्याय तो उनके लिए बहुत ही दूर की बात है । आखिर अभी भी इस देश में ऐसा हाल क्यों है ? बहुत से लोगों एफ आई आर भी दर्ज नहीं होती , इस देश में जब एफआईआर भी जब सही तरीके से लिखी नहीं जाती , तो फिर गणतंत्र का क्या अर्थ रह जाता है ?

गण शब्द का अर्थ है संख्या या समूह, गणतंत्र या गणराज्य का शाब्दिक अर्थ है बहुसंख्यक का शासन , लेकिन इस देश का बहुसंख्यक हर जगह उत्पीड़न का शिकार है । देश में सुई से लेकर जहाज बनाने के श्रमिक के तौर पर यह बहुसंख्यक वर्ग ही योगदान देता है , लेकिन इस वर्ग के लिए न अच्छे स्कूल है और ना ही चिकित्सा के अच्छे प्रबन्ध है । इसके साथ यह भेदभाव क्यों है ? क्या गणतंत्र में यह भेदभाव उचित है ? इस भेदभाव वाले तंत्र को गणतंत्र कहा जा सकता है ? नहीं, नहीं कदापि नहीं । आइए सच्चे अर्थों में , वास्तविक रूप में गणतंत्र स्थापित करें ।

इस देश का बहुसंख्यक बहुजन समाज आज भी इस देश का हुक्मरान नहीं है , जबकि संख्या में वह बहुसंख्यक हैं । बहुसंख्यक वर्ग के हाथ में देश की शासन सत्ता होनी चाहिए। इस बहुसंख्यक वर्ग को किसने अलाचर और बेबस किया है और क्यों किया है ?  इस शैतानी करने वाले को कब दण्ड मिलेगा ? इस देश का बहुसंख्यक वर्ग अनुसूचित जाति, जनजाति, और अन्य पिछड़ा वर्ग आज भी भेदभाव का शिकार है , इस देश में संविधान में मौजूद अधिकार भी उसे नहीं मिल पा रहे । इनके अधिकारों से इस लोकतंत्र में कौन खिलवाड़ कर रहा है ? यह शैतानी करने वाला कौन है ? क्या गणतंत्र में यह शैतानी जायज है ?

गणतंत्र का मतलब सरकार के उस रुप से है जहां राष्ट्र का मुखिया राजा नहीं होता , लेकिन भारत में सत्तापक्ष के लोग निरंकुश हो रहे है ? संविधान के नीति नियमों से खिलवाड़ करके संविधान विरोधी निर्णय दे रहे है ? क्या गणतंत्र में ये जायज है ? मुझे नहीं लगता कि ऐसे नौटंकी टाईप गणतंत्र की हमें जरूरत है । संविधान को पूर्ण रूप से लागू करने से ही गणतंत्र स्थापित हो सकता है ।

भारत के प्रधानमंत्री से मेरा आग्रह है कि कल इस बात की चर्चा करिए कि कहां कहां पर संविधान को मौजूदा सरकार ने फेल किया है ? कहां कहां पर इस देश के बहुसंख्यक बहुजन समाज के अधिकारों से धोखाधड़ी की गई है ? इस धोखाधड़ी से देश में गणतंत्र स्थापित नहीं हो सकता ।

देश में बहुत सारी राजनैतिक पार्टियां भी गणतंत्र में बाधा है , वहां मठाधीश, सुप्रीमों, परिवारवाद की पराकाष्ठा जोरों पर है , लोकतंत्र के नाम पर एक फुटी कौड़ी भी नहीं है , ऐसे लोगों से क्या उम्मीद कर सकते है गणतंत्र की ?

देश की बहुसंख्यक जनता से अपील है कि आइए इस नौटंकीबाज गणतंत्र का पर्दाफाश करें और सच्चे अर्थों में, वास्तविक रूप में गणतंत्र स्थापित करने का प्रयास करें और इसके लिए लोगों को कन्विन्स करें , लामबंद करें । इस लामबंदी के लिए अधिक से अधिक त्याग और समर्पण करें ।

Sunday, 13 January 2019

मूलनिवासी एकता की जरुरत क्यों?

    😊राज की बात😊

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🙏मूलनिवासी एकता की जरुरत कयों? 🙏

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😊सवर्णों को मिलने जा रही 10 % "आरक्षण बिल" या "आरक्षण विधेयक" को लोकसभा में 300 से भी ज़्यादा मतों से भारी भरकम कामयाबी मिली है एवं राज्यसभा में भी पारित हो गई ।

😊इस संबंध में यदि "संविधान संशोधन" भी करना पड़े तो वह भी शायद कर ही लेगा ।

😊सवर्णों के लिए आरक्षण का प्रावधान के मायने एवं दूरगामी प्रभाव आनेवाले समय में भारत की जातीय - सामाज़िक राजनीति में कुछ भी क्यों न हो , किंतु एक बात बिल्कुल सत्य है कि इस देश के SC , ST , OBC एवं MINORITIES समाज़ के प्रायः सभी राजनेता क्षेत्रीय दलों में या राष्ट्रीय दलों में राजनीति में आने के बाद से सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने एवं अपने परिवार के राजनीतिक भविष्य , महत्वाकांक्षा एवं उत्थान की बातों को ही सर्वाधिक प्रधानता व प्राथमिकता हमेशा दी गई है।

😊बहुजनों की 85 % आबादी की आर्थिक उन्नति , शैक्षणिक उन्नति , सामाज़िक उन्नति , राजनीतिक उन्नति , प्रशासनिक उन्नति ,  न्यायिक उन्नति या अन्यान्य उन्नति के लिए हमारे कथित व तथाकथित मूलनिवासी बहुजन नेताओं व राजनेताओं ( कोईरी , कुर्मी , यादव , जाटव , मराठा , पासवान , गुर्जर , जाट , मुस्लिम नेतागण ) ने गंभीरता से कभी भी ध्यान नहीं दिया।

😊जिसके कारण आज़ इस देश की विशाल मूलनिवासी बहुजन जनता की स्थिति भयावह बनी हुईं है।

😊मूलनिवासी बहुजन  समाज़ एवं मूलनिवासी बहुजन राजनीतिक नेताओं का नेतृत्व बिल्कुल समाज के प्रति गद्दारी भरा रहा है ।

😊सारे के सारे मूलनिवासी बहुजन समाज अपनी - अपनी जाति के बहुजन नेताओं के साथ अलग - अलग राजनीतिक पार्टियों से जुड़े हुए हैं।

😊जाति के आधार पर अलग - अलग समर्थक बने हुए हैं।

सभी मूलनिवासी बहुजन समाज़ के लोगों एवं मूलनिवासी बहुजन नेताओं का अपना अलग - अलग जातीय एवं राजनीतिक दलगत  कुनबा है।

😊वे सभी लोग ( चाहे जनता हों या नेता ) आपस में सामाज़िक रूप से एवं राजनैतिक रुप से एकताबद्ध नहीं है और होना भी नहीं चाहते हैं ।

🙏जिससे मूलनिवासी बहुजन समाज को हासिए पर खड़ा कर दिया है।🙏

😊मूलनिवासी बहुजन के नेताओं - राजनेताओं को अपना राजनैतिक अस्तित्व के लिए ब्राह्मणवाद का गोद ही प्यारा लग रहा है।

🤝 इसके विपरीत , इस देश के सवर्ण जाति की आम जनता एवं सवर्ण जाति के नेता - राजनेता गण विभिन्न राजनीतिक पार्टियों में अलग - अलग रहने एवं राजनीति करने  बावज़ूद भी अपनी सवर्ण जाति व समाज़ के हितों का पोषण करने में लगे रहते हैं।

😊इन सारी बातों से मूलनिवासी बहुजन समाज एवं मूलनिवासी बहुजन समाज के नेताओं के लिए एक बड़ी सीख , सबक एवं शिक्षा लेनी चाहिए थी, किंतु मूलनिवासी बहुजन समाज एवं मूलनिवासी बहुजन समाज के नेताओं को इससे कोई मतलब या सरोकार ही नहीं है। सिवाय अपना काम बनता भाड़ में जाए बहुजन जनता।

😊इसीलिए मूलनिवासी बहुजन समाज को अभी और दुर्दिन देखना पड़ेगा।

😊इस देश के SC , ST , OBC एवं MINORITIES समाज़ के सभी मूलनिवासी बहुजन समाज के लिए कितनी शर्म की बात है।

😊मूलनिवासी बहुजन समाज के नेताओं के लिए मानो खुशखबरी भरा कामयाबी मिला हो।  लोकसभा एवं राज्यसभा , दोनों सदनों में सवर्णों का "आरक्षण बिल" या "आरक्षण विधेयक" बहुमत , ध्वनिमत एवं करतल ध्वनि से पारित हो जातीं है एवं उस "बिल" या "विधेयक" के पक्ष में मूलनिवासी बहुजन समाज के नेता गण भी वोटिंग करते हैं !

😊राजनीतिक रूप से एवं राजनीतिक शक्ति के दृष्टिकोण से विभिन्न दलों के हमारे बहुजन नेता गण कितने मक्कार , गद्दार , स्वर्ण वफादार एवं समाज को दिग्भ्रमित करने वाला है।

अब बस ! बहुत हो गया गंदी राजनीति भरा खेल !

😊अब तो यह होना चाहिए एवं करना चाहिए कि इस देश के SC , ST , OBC , MINORITIES जाति एवं समाज़ के आम बहुजन नागरिक काँग्रेस , बीजेपी , राजद , सपा , बसपा , जदयू या अन्यान्य सभी राष्ट्रीय पार्टियों एवं क्षेत्रीय पार्टियों के अपने बहुजन नेताओं ( कोईरी , कुर्मी , यादव , जाटव , पटेल , मराठा , जाट , गुर्जर , पासवान , दलित , आदिवासी नेताओं ) से मोहभंग कर लें एवं मूलनिवासी बहुजन समाज़ ( SC , ST , OBC , MINORITIES ) के बुद्धिजीवियों को व्यवस्था परिवर्तन के लिए नया विकल्प पर गौर करने की आवश्यकता है।

😊"जिसमें केवल और केवल मूलनिवासी बहुजन समाज के ही नेतृत्व कर्ता हो " राष्ट्रीय स्तर की पार्टी स्थापित करने के दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए।

😊इस तरह की पार्टी ही मूलनिवासी बहुजन समाज को अपना हक व हकूक दिला पायेगा। इस राष्ट्रीय स्तर की पार्टी के नेता गण इतने ईमानदार , कर्मठ , स्वार्थरहित , ज़िम्मेदार , संवेदनशील , योग्य , पारदर्शी , नीतिवान , नैतिक साहसी , निर्भीक, ज़िम्मेवार एवं लोकतांत्रिक हो कि उनका एकमात्र उद्देश्य समस्त बहुजनों एवं राष्ट्र का समग्र विकास व उत्थान करना हो।

😊मूलनिवासी बहुजनों का "राष्ट्रीय स्तर की राजनीतिक दल " होने का सबसे बड़ा लाभ व फ़ायदा यह होगा कि देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में लोकसभा चुनाव , विधानसभा चुनाव या अन्यान्य  जन प्रतिनिधि चुनाव में वोटिंग या मतदान के दौरान बहुजन मतों या वोट का बिखराव भी नहीं होगा एवं बहुजन नेताओं का अलग - अलग कुनबा भी कुकुरमुत्ते की तरह नहीं पनपेंगी।

😊यह समय की मांग है। इस देश की मूलनिवासी बहुजन ( SC , ST , OBC , MINORITIES ) समाज ,  मूलनिवासी बहुजन नेताओं , बहुजन बुद्धिजीवियों , बहुजन सामाज़िक कार्यकर्त्ताओं , बहुजन विचारकों , बहुजन चिंतकों को इन विषयों पर गभीर , सार्थक एवं तार्किक बौद्धिक चिंतन करना ही होगा।

😊"मूलनिवासी बहुजन समाज का राष्ट्रीय राजनीतिक दल" को मजबूत रुप से खड़ा करने के अवधारणा को धरातल पर मूर्त्त रूप देना ही पड़ेगा।

ऐसा नहीं करने से इस देश की मूलनिवासी बहुजन जनता एवं बहुजन नेता भविष्य में भी काँग्रेस - काँग्रेस , बीजेपी - बीजेपी , राजद - राजद , जदयू - जदयू  , सपा - सपा , बसपा - बसपा , लोजपा - लोजपा , झामुमो - झामुमो , आजसू - आजसू , अपना दल - अपना दल , तृणमूल - तृणमूल , अगप - अगप , डीएमके - डीएमके , अन्ना द्रमुक - अन्ना द्रमुक , सीपीआई - सीपीआई , सीपीएम - सीपीएम इत्यादि दलों का फुटबॉल बनकर किक खाने को तैयार रहना पड़ेगा।

😊उन्हीं सभी दलों का महज़ राजनीतिक खेल खेलते रह जाऐंगे एवं उन्हीं में उलझकर रह जाऐंगे ।

😊इस देश की मूलनिवासी बहुजन समाज एवं बहुजन नेताओं के लिए यही एक आख़िरी एवं मज़बूत जातीय , सामाज़िक एवं  राजनीतिक विकल्प है कि वे यथाशीघ्र वक़्त की नज़ाकत को समझते हुए एवं भाँपते हुए  इस ओर मजबूती से कदम बढ़ायें।

😊राष्ट्रीय स्तर पर अपनी मज़बूत सामाज़िक - राजनीतिक हैसियत एवं उपस्थिति दर्ज़ करायें ।

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मूलनिवासी इतिहास

sir Manohar barkade ji ki wall se मूलनिवासी इतिहास *ये है भारत का असली इतिहासl बाकि सब झूठ हैl* इस पोस्ट के अन्दर दबे हुए इतिहास के प...