उदय एक भारतीय
*हरिजन' शब्द की उत्पति*
पहले की बात है, मंदिर में पंडित पदारी हुआ करते थे । उस समय अनुसूचित जाति की पहली संन्तान यदि बेटी होती थी तो उसे पंडित 10-12 साल मे ले जाते थे ।और उसे दान की कन्या समझ कर घर के लोग दान कर देते थे
जब की घर के लोग सब जानते थे कि उसके साथ बहुत गलत होगा । मगर अन्ध विश्वास में बंधे हुये थे। घर के लोग समझ रहे थे कि भगवान को उसकी बेटी की जरूरत है इस कारण भगवान उसे पहले बेटी बना कर भेजा है ।
मंदिर मे जाकर उस अनुसूचित जाति मासूम की हालत क्या हो जाती है।
देखो उस अनुसूचित जाति बेटी को मंदिर मे रखी पत्थर की मूरत से शादी करवाई जाती थी। फिर मंन्दिर के सभी पंडितो के वे लड़की पैर दबाती थी ।और रात मे उन पंडितो के बिस्तर की सेज बनती थी ।
12 साल की बच्ची के साथ बड़े बूढ़े पंडित अपनी हवस को पूरी करते थे
जब वह लड़की मना करने की हिम्मत करती तो उससे कहा जाता की भगवान ने इसी काम के लिये उसे भेजा है । और वह बेचारी पंडितो को नहलाती उनके साथ सेक्स करती न चाहते हुये भी और उसी दलित लड़की का नाम देवदासी दिया ताकि उससे जो भी सन्तान हो उस पर पंडित का नाम न जुड़े और उस सन्तान को भगवान की सन्तान का नाम दिया ताकि कोई उगली न उठा सके उस असहाय बेचारी अनुसूचित जाति बेटी से जो महान्तो की अवैध सन्तान उत्पन होती थी । उसका नाम *''हरिजन''* पड़ा
मै ऐसे भगवान पर थूकता हू जो अपना नाम देकर उस मासूम के साथ इतना बड़ा अत्याचार करवाता रहा दोस्तो जरा सोच कर दोखो क्या उस भगवान को इतने बड़े अत्याचार को रोकना नही चाहिये था।
आज का एक आम आदमी भी इस नियम का विरोध करता इसका मतलब क्या भगवान ही सबसे बड़ा अत्याचारी था ।
इसका मतलब भगवान कही भी नही था । भगवान के नाम पर पंडित लोग अपने फायदे के लिये दलितों को हमेशा सताया है।
यदि भगवान कही था तो उस भगवान से बड़ा कमीना लुच्चा घटिया कोई नही था ।
दोस्तो मुझे तो आज भी उन अनुसूचित जातियो के ऊपर शर्म आती है ।
जो घर मे लड़का हुआ तो उसका नाम रखवाने बिना पढ़े लिखे पंडित के पास जाते है और वह पंडित चैतू दुखिया नाम देता है ।अरे भाइओ जरा सोचो
जीवन भर तुमको देख भाल करनी है
अपने हिसाब से अच्छा नाम रखो आओ सभी मिलकर ऐसे अन्धविश्वास
को दूर करे !और जीवन की नयी ज्योति जलाए।
दूसरे ग्रुप मे भेजे!
Jai Bheem jai bharat jai mool nivasi
*हरिजन' शब्द की उत्पति*
पहले की बात है, मंदिर में पंडित पदारी हुआ करते थे । उस समय अनुसूचित जाति की पहली संन्तान यदि बेटी होती थी तो उसे पंडित 10-12 साल मे ले जाते थे ।और उसे दान की कन्या समझ कर घर के लोग दान कर देते थे
जब की घर के लोग सब जानते थे कि उसके साथ बहुत गलत होगा । मगर अन्ध विश्वास में बंधे हुये थे। घर के लोग समझ रहे थे कि भगवान को उसकी बेटी की जरूरत है इस कारण भगवान उसे पहले बेटी बना कर भेजा है ।
मंदिर मे जाकर उस अनुसूचित जाति मासूम की हालत क्या हो जाती है।
देखो उस अनुसूचित जाति बेटी को मंदिर मे रखी पत्थर की मूरत से शादी करवाई जाती थी। फिर मंन्दिर के सभी पंडितो के वे लड़की पैर दबाती थी ।और रात मे उन पंडितो के बिस्तर की सेज बनती थी ।
12 साल की बच्ची के साथ बड़े बूढ़े पंडित अपनी हवस को पूरी करते थे
जब वह लड़की मना करने की हिम्मत करती तो उससे कहा जाता की भगवान ने इसी काम के लिये उसे भेजा है । और वह बेचारी पंडितो को नहलाती उनके साथ सेक्स करती न चाहते हुये भी और उसी दलित लड़की का नाम देवदासी दिया ताकि उससे जो भी सन्तान हो उस पर पंडित का नाम न जुड़े और उस सन्तान को भगवान की सन्तान का नाम दिया ताकि कोई उगली न उठा सके उस असहाय बेचारी अनुसूचित जाति बेटी से जो महान्तो की अवैध सन्तान उत्पन होती थी । उसका नाम *''हरिजन''* पड़ा
मै ऐसे भगवान पर थूकता हू जो अपना नाम देकर उस मासूम के साथ इतना बड़ा अत्याचार करवाता रहा दोस्तो जरा सोच कर दोखो क्या उस भगवान को इतने बड़े अत्याचार को रोकना नही चाहिये था।
आज का एक आम आदमी भी इस नियम का विरोध करता इसका मतलब क्या भगवान ही सबसे बड़ा अत्याचारी था ।
इसका मतलब भगवान कही भी नही था । भगवान के नाम पर पंडित लोग अपने फायदे के लिये दलितों को हमेशा सताया है।
यदि भगवान कही था तो उस भगवान से बड़ा कमीना लुच्चा घटिया कोई नही था ।
दोस्तो मुझे तो आज भी उन अनुसूचित जातियो के ऊपर शर्म आती है ।
जो घर मे लड़का हुआ तो उसका नाम रखवाने बिना पढ़े लिखे पंडित के पास जाते है और वह पंडित चैतू दुखिया नाम देता है ।अरे भाइओ जरा सोचो
जीवन भर तुमको देख भाल करनी है
अपने हिसाब से अच्छा नाम रखो आओ सभी मिलकर ऐसे अन्धविश्वास
को दूर करे !और जीवन की नयी ज्योति जलाए।
दूसरे ग्रुप मे भेजे!
Jai Bheem jai bharat jai mool nivasi
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