Saturday 10 June 2017

साधू -संत और सैनिक

उदय एक भारतीय
*साधू -संत और सैनिक-.....*

भारत में छोटे बड़े मिला के लगभग एक करोड़ के करीब तथाकथित साधू , संत, आचार्य, पंडा, पुजारी, महात्मा आदि होंगे जिनका मुख्य कार्य ही  धर्म के नाम  लेकर बिना  श्रम  अपना पेट भरना होता है ।

अधिकतर साधू-संत जनता को तरह तरह के प्रवचन और कथा सुना के जिनका शायद ही ये खुद अपने जीवन में पालन करते हों उन प्रवचनों और कथाओं के सुनने के एवज में मोटा धन लेते हैं

यह भी हास्यास्पद होता है की एक तरफ तो ये साधू संत अपने प्रवचनों में जनता से त्याग और अपरिग्रह  की बात करते हैं , धन को मोहमाया बताते हैं किन्तु खुद  बड़ी बड़ी गाड़ियॉ में घूमते और आलीशान बंगलो , मठो / आश्रमो में निवास करते हैं । स्वयं से धन और पुजवाने का मोह नहीं त्यागा जाता इनसे।

फ़र्ज़ी राष्ट्रवादियो की आज भारत की दो मुख्य समस्याएं हैं , एक तो चीन और पाकिस्तान की सीमाओ पर आक्रमण का खतरा

यदि इन एक करोड़ साधू संतो आदि  का सही उपयोग किया जाए तो भारत की ये दोनों समस्याये जड़ से ख़त्म हो सकती हैं ।

देश को बिना किसी खर्च के अच्छे सैनिक और अच्छे श्रमिक मिल सकते हैं ।

यंहा सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण बात यह है की हर साधू संत कुछ ऐसी विशेषता रखने का दावा करता है जो आम इंसानो में नहीं मिलती , इस दृष्टि से इन साधू संतो की एक ऐसी फ़ौज तैयार हो सकती है जो लाजबाब होगी

1- लगभग  हर साधू संत आदि यह मानता है और  उपदेश देता है की शरीर नाशवान है तथा  आत्मा अजर- अमर । ये कहते हैं की  इंसान को भौतिक शरीर का मोह नहीं करना चाहिए । ये बाते एक सैनिक जिसके लिए पग पग पर जिंदगी को खतरे में डालना होता है उसके लिए प्रेरणादायक होगी । चुकी साधू संत मौत से नहीं डरेंगे और दुगने उत्साह से लड़ेंगे ,इन्हें न जीवन का मोह होगा और न मौत का भय । इसलिए सैनिको के रूप में साधू संतो को देशभक्ति का परिचय देने का सुअवसर मिलेगा।

2- साधू संतो को सैनिक बना के देने से एक बहुत बड़ा लाभ यह मिलेगा की सेना पर होने वाले खर्चो में कटौती होगी । साधू संत त्यागी और अपरिग्रही कहे जाते हैं , वे धन और पैसा को मोहमाया मानते हैं परिणाम स्वरूप् उन्हें पैसे यानि सेलरी की कोई इच्छा नहीं होगी न ही पेंशन की टेंशन होगी । सरकार को युद्ध में मारे गए सैनिक के परिवार वालो को आर्थिक सहायता देनी होती है , रिटायर होने पर पेंशन देनी पड़ती है । साधू संतो के बारे में सरकार को इन समस्याओ की चिंता नहीं करनी पड़ेगी ।

3- जैसा की साधू संत दावा करते हैं की उनकी आवश्यकताये सिमित होती है , साधू संत धूप, बरसात, सर्दी गर्मी सब सह सकते हैं । इसलिए एक साधू सैनिक रेगिस्तान में भी उतनी ही सफलता से लड़ेगा जितना की लद्दाख में ।

4- साधू संत गृह त्यागी होते हैं,रिश्ते नाते उनके लिए बंधन होते है । साधू संतो को सैनिक बना देने से बहुत बढ़ा लाभ यह होगा की वे युद्ध के मैदान में निश्चित होके लड़ सकते हैं , उन्हें माँ बाप, भाई बहन, पत्नी बच्चों की याद नहीं आएगी । अधिकतर साधू संत ब्रह्मचर्य का उपदेश देते हैं तो यह बड़ा अच्छा रहेगा की सैनिक बन के उनका ब्रह्मचार्य भी बचा रहेगा ।

5- साधू संतो को सैनिक बनाने के विपक्ष में लोग यह तर्क दे सकते हैं की उनका मानसिक स्तर युद्ध के अनुकूल नहीं होता । पर यदि देखेंगे तो सभी साधू संतो आदि ने युद्ध को आवशयक बताया है ,ग्रन्थ जिन्हें वे दिन रात रटते रहते हैं उनमे युद्ध भरे पड़े है ।  फिर जब कोई साधारण मनुष्य सैनिक में भर्ती होता है तो उसका मानसिक स्तर भी युद्ध के अनुकूल नहीं होता , सेना उसे ट्रेनिंग देती है हथियार चलाने का और युद्ध लड़ने का। साधू संतो को भी ट्रेनिंग देके उन्हें अच्छा योद्धा बनाया जा सकता है ।

यदि सरकार इस तरफ विचार करे तो साधू संतो के रूप में  एक कम खर्चे वाली और जबरजस्त युद्ध करने वाली  सेना तैयार हो सकती है जिससे देश का भी भला होगा और बिना श्रम के सभी भौतिक लाभ लेने वाले साधू -संतो का भी ।


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